बाबा साहब डा . आंबेडकर के नाम का अपनी सविधानुसार इसिेमाल किया गया ।
दलित विकास और कलयाण के नाम पर जो भी दलित नेता सविंरि भारत में सामने आए , वह राजनीति में सथातपि होकर जब सत्ा तक पहुंचे तो वह भी जमीनी हकीकतों को भूलकर अपने और परिवार के हित में लग गए । दलितों के मुद्ों पर जिन दलों को काम करना था , उनहोंने वह नहीं किया । इसका परिणाम 2014 के चुनाव में दिखा और देश के दलितों ने भाजपा नेता नरेंद्र मोदी पर अपना भरोसा जताया । प्धानमंरिी बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने देश के दलित समाज के लिए पिछले चार साल में जो काम किए , उससे दलितों में नया भरोसा पैदा हुआ । दलित समाज के लिए मोदी सरकार द्ारा उठाये गए कदम और उन कदमों की वजह से दलित समाज की बदलती कसथतियों को देखकर घबराये भाजपा विरोधी अब दलितों को भ्रमित करके , अपनी और मोड़ने की कोशिश में लग गए हैं ।
यहां कहना गलत नहीं लगता है कि आधुनिक भारत की राजनीति में सत्ा पर सथातपि होना और अपने वर्चसव को बनाये रखने के लिए जातियों और जातियों के ध्ुवीकरण का समीकरण महतवपूर्ण हो गया है । जातियों के समीकरण की रणनीति राजनीतिक सवाथमा और वयैककिक हित लाभ के उद्ेशय से बनाए जा रहे हैं एवं इसके लिए राषट्र हित को भी किनारे कर दिया गया है । आज कुछ लोग मारि अपने राजनीतिक सवाथशों के कारण जिस तरह से देश के दलित समाज का इसिेमाल कर रहे है , उसे देखकर दलितों के मसीहा डा . आंबेडकर के उन विचारों पर फिर से धयान देना होगा , जिन विचारों में दलित कलयाण की वासितवक भावना और सोच परिलतक्ि होती है । डा . आंबेडकर को सिर्फ एक जाति के नेता के रूप में नहीं देखा जा सकता है । यद्यपि उनहोंने दलितों के लिए सतत संघर्ष किया , पर उनहोंने समग् हिनदू समाज की चिंता की । वह दूरदशशी भी थे और उनका दृकषटकोण वयापक भी था । दलितों के हितचिंतन ने उनको उनही लोगों के हितों से बांधकर नहीं रखा और इसी वजह से उनहोंने समपूणमा समाज
की उन्नति को ही राषट्र की उन्नति का आधार माना ।
वर्तमान दौर में दलित कलयाण के नाम पर सामने आए तमाम नेता डा . आंबेडकर का नाम लेकर दलित समाज को भ्रमित करके अपने सवाथशों की पूर्ति के लिए प्यासरत हैं । ऐसे नेता डा . आंबेडकर के मूल विचारों से अनजान हैं और उनहें यह भी नहीं पता कि दलित समाज के कलयाण के लिए बाबा साहब का उद्ेशय कया था और वह किस तरह से दलित समाज के कलयाण को राषट्र के समपूणमा विकास से समबद करके देखते थे ? ऐसे दलित नेताओं का शायद भी पता होगा कि बाबा साहब का पूरा जीवन इस बात का उदहारण है कि वयककि का दृढनिर्णय ही उसका निर्माण करता है , उसकी जाति , पारिवारिक निर्धनता , असुविधाएं और समाज का विरोध उसकी प्िति को रोक नहीं सकता । डा . आंबेडकर का कहना था कि समाज का नेतृतव करना आसान नहीं है । समाज का नेतृतव करने के लिए वयककि को गुनी और परिश्रमी होना चाहिए । सफल नेतृतव के लिए डा . आंबेडकर ने कहा था कि जिसमें धैर्य नहीं , वह नेतृतव नहीं कर सकता । अगर कोई राजनीतिक क्ेरि में कार्य करना चाहता है तो उसे राजनीति का गहन अधययन करना होगा । लोगों को लगता है कि नेता बनना सरल है , पर मेरे विचार से नेता बनना आसान नहीं है । दलित समाज के युवकों के लिए डा . आंबेडकर ने आह्ाहन किया था कि अपने ऊपर विशवास करो , अपने प्यत्ों पर विशवास करो और अपनी बुतद एवं क्मता से कठिनाइयों को पार करो । ज्ञान सबसे पतवरि वसिु है । इसका अर्थ यह है कि दलित समाज के युवक भी शिक्ा हासिल करके आगे आए और अपनी मेहनत की दम पर समाज और राषट्र कलयाण में अपनी ऊर्जा को लगाए । पर कया वर्तमान में ऐसा हो रहा है ? या दलित समाज के कथित नेता कया डॉ आंबेडकर के सपनों का भारत बनाने के लिए प्यत्शील हैं ? कया दलित समाज के कलयाण समबनधी मांगों में राषट्र कलयाण का भाव भी मौजूद है ?
समाज और सामाजिक कसथतियों एवं मानव
vizSy 2024 17