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एक बना है तो इसकी एकता को बनाए रखने के लिए आगे प्यास कयों नहीं किए जा सकते हैं ?
डा . आंबेडकर के इस विचार पर चिंतन करते हुए भारत के वर्तमान दृशय पर धयान दिया जाए तो दलितों पर होने वाले कथित अतयाचार को लेकर तमाम दलित नेता तनाव में नजर आ रहे हैं । जनता के बीच अपने कथित तनाव की चिंता जताने वाले तमाम नेता एक सुनियोजित रणनीति के तहत यह प्चारित करने में लगे हैं कि भाजपा नेता और प्धानमंरिी नरेंद्र मोदी के राज में दलित सुरतक्ि नहीं हैं और अगर दलितों का कलयाण करना है तो मोदी सरकार को सत्ा से दूर करना होगा । प्धानमंरिी नरेंद्र मोदी के कामकाज और नीतियों को कथित रूप से दलित विरोधी बताने वाले दलित नेता लगातार एक नया नारा " जय भीम-जय मीम " लगाते हुए मोदी सरकार के खिलाफ " दलित-मुकसलम राजनीतिक गठबंधन " बनाने की मुहिम भी चला रहे हैं , जिसका कथित रूप से लक्य सत्ा हासिल करके उस दलित समाज का समग् कलयाण करना है , जो सविंरििा के बाद से लगातार अपने विकास की राह देख रहा हैI
सविंरि भारत में शुरू हुई लोकताकनरिक प्तकया में दशकों तक दलितों को कांग्ेस के पारमपरिक वोट बैंक के रूप में देखा जाता रहा । दलितों और मुकसलमों को डरा-समझा कर वोट हासिल करने और फिर सत्ा सुख उठाने वाली कांग्ेस ने , दोनों विशों का दशकों तक शोषण किया और उनहें अपने हित के लिए इसिेमाल किया । समय परिवर्तन के साथ दलित वोट बैंक अपने वासितवक हितों के लिए कांग्ेस से टटूट कर , उन दूसरे दलों के पास पहुंच गया , जो कि राजनीति में दलित समाज का समग् कलयाण करने और उनके समुचित विकास के तथाकथित लक्य को लेकर सामने आए । पर दलित कलयाण के नाम पर आने वाले ऐसे तमाम दलों ने भी दलितों का सिर्फ वोट बैंक के रूप में इसिेमाल किया और सवतहिों के साथ ही दलित विकास को अवैध कमाई और धन हासिल करने का एक माधयम बना दिया । खेदजनक यह भी है कि इसके लिए
16 vizSy 2024