में 51 सीटों में से 15 अनुसूचित जनजाति ( एसटी ) और 36 अनुसूचित जाति ( एससी ) के लिए आरवक्त हैं । जेडीएस ने 2008 , 2013 और 2018 के चुनावों के रिजलट देखें तो जेडीएस को खास आरवक्त सीटों पर जीत नहीं मिली थी । वहीं कांग्ेस और बीजेपी तीन सीटों के अंतर से कांटें की ट्कर पर थी । जितनी बार कांग्ेस ने सरकार बनाई , आरवक्त सीटों की संखय् के मामले में बीजेपी की अपेक्् उसका प्रदर्शन कहीं बेहतर रहा । 2008 में , जब बीएस येदियुरपप् ने बीजेपी का नेतृति किया , तो भगवा प्टटी ने आरवक्त 51 में से 29 सीटों पर जीत हासिल की थी । जबकि कांग्ेस को 17 सीटें मिली थीं । 2013 में सिद्धारमैया की कांग्ेस
सरकार सत्् में आई । तब कांग्ेस ने कुल आरवक्त सीटों में से 27 सीटें जीती थीं , वहीं बीजेपी को महज 8 सीटों से ही संतोष करना पड़् था ।
2018 में कांग्ेस की 8 सीटें कम हो गईं और प्टटी ने महज 19 सीटें जीतीं । बीजेपी की सीटों की संखय् सुधरी और यह 23 पर पहुंच गई । हालांकि कांग्ेस ने जडीएस के साथ संयु्त रूप से सरकार बनाई लेकिन यह ग्ठबंधन जय्दा दिनों तक नहीं चल पाया । लेकिन अबकी बार भाजपा आरवक्त सीटों पर बड़ी सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है , जिससे राजय में पुनः भाजपा सरकार का ग्ठर किया जा सके । राजय में एससी और एसटी के बीच भी कई उप-संप्रदाय हैं , िषयों
से भाजपा के उममीदवारों का चयन केवल जीतने की क्मता पर निर्भर करता है ।
वैसे भाजपा की जीत में सबसे बड़ा संकट प्टटी में मौजूद गुटबाजी का है । गुटबाजी का एक नमूना चिकमगलूर में उस समय सभी ने देखा जब पूर्व मुखयमंत्री और लिंगायत नेता बीएस येदियुरपप् को अपनी विजय संकलप यात्रा प्टटी कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण ्रवगत करनी पड़ी । इसके अलावा येदियुरपप् के बेटों को लेकर भी प्टटी के नेता एकमत नहीं है । गुटबाजी का प्रभाव कार्यकर्ता ्तर तक है और यह गुटबाजी आए-दिन मीडिया में चर्चा का विषय बन रही है । हालांकि गुटबाजी को रोकने और प्रदेश से लेकर ्र्रीय ्तर पर
vizSy 2023 49