बनाये गए लोगों के प्रति घड़ियाली आंसू बहाये और उनके हितों के नाम पर , उनको हिनदू समाज से अलग करके " दलित " श्ेणी प्रदान की । कालांतर में दलित श्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाने लगा जिनहें एक साजिश के तहत हिनदू समाज से अलग कर दिया गया था । यह समझना जरुरी है कि दलित और वंचित में एक बड़ा अंतर यह है कि वंचित कोई भी हो सकता है किनतु सभी वंचित दलित नहीं हो सकते हैं । इस प्रकार हिनदू समाज को अपमानित और विखंडित करने के अभिप्राय से विदेशी मुस्लम आरि्ंताओं और विदेशी शासक अंग्ेजों ने रिमशः अ्पृ्य और दलित नामक जाति संिगयों की
रचना की और दलितों को अपने हितों के लिए सिर्फ एक उपकरण बना कर रख दिया ।
अनुसूचित जातियों की संवैधानिक परिभाषा
सामानय रूप में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए जो भाव लोगों के मन में आते हैं , उन भावों के आधार पर दलित का अर्थ अ्पशना , अछूत , अ्िछत् , निम्न एवं गिरा हुआ लगाया जाता हैI इस आधार पर अगर देखा जाए तो गिरता वही है , जो ऊंचाई पर होता है । इस आधार पर अगर दलित गिरे हुए और दयनीय स्रवत में हैं तो कभी वह अि्य ऊंचाई पर रहे होंगे । वामपंथी और भरत विरोधी इतिहासकारों के कथित चिंतन की सतयता को अगर समझा जाए तो ि््ति में मधयकाल के दौरान रि्ह्मण एवं क्वत्रयों को अ्िचछ कार्य करवा कर समाज में उनहें गिराया गया । गंदे क्ययों के साथ उनके दमन एवं दलन के उपरांत उनहें दलित की पहचान दी गयी । इस आधार पर देखा जाए तो दलित ि््ति में महान लोगों की श्ेणी में आते हैं । अब अगर भारत में संवैधानिक आधार पर दलित की परिभाषा पर धय्र दिए जाए तो अनुसूचित जातियां वह हैं जो सामाजिक , आर्थिक और शैक्वणक आधार पर पिछड़ती चली गयी । हालांकि ्ितंत्र भारत में अ्पृ्यता के आधार पर दलित समाज तो खड़ा हो गया पर बारहवीं शत््दी के पहले भारत में न तो दलित था न ही अ्पृ्यता और न अ्िचछ कार्य के आधार पर किसी का मूलय्ंकन किया जाता था । भारत के हिनदू समाज में अ्पृ्यता और अ्िचछ कार्य के आधार पर किसी का मूलय्ंकन करने का काम बारहवीं शत््दी के बाद शुरू हुआ और इसके लिए अरब से आए मुस्लम आरि्ंताओं की हिनदू समाज को तोड़ने की नीतियां थी , जिस पर अंग्ेजों ने अपनी मोहर लगायी और फिर इनही नीतियों की वजह से भारत में पांच नए िगयों या चेहरों का जनम हुआ , जिनहें वर्तमान में मुस्लम , अ्पृ्य , जनजाति , सिख और ईसाई वर्ग के रूप में पहचाना जाता है ।
स्वतंत्ि् संग््म एवं अनुसूचित वर्ग का योगदान
भारत के ्ितंत्रता संग््म में दलित समाज के योगदान को किसी भी सूरत में नाकारा नहीं जा सकता हैI ्ितंत्रता का पहला बिगुल 1857 में बजा था । मेर्ठ से शुरू हुई विद्रोह की रि्ंवत में सर्वाधिक रूप से दलित समाज ( खटिक , जाटव , बालमीवक ) के लोगों ने अपनी भागीदारी दिखाई थी । विद्रोह के कारण शुरू हुई इस पहली रि्ंवत में दलित समाज की सहभागिता देखा कर अंग्ेजों ने दलित समाज के अंदर आने वाली जातियों को जरायम पेशा वाली जाति के रूप में वचसनहत कर दिया , जबकि चंद्र शेखर आजाद , भगत सिंह ,, सुभाष चंद्र बोस जैसे रि्ंतकारियों को अपराधी की संज्् दे दी थी । देखा जाए तो ्ितंत्रता संग््म में दलित समाज के हजारों लोगों का महतिपूर्ण योगदान रहा । एक तरह जहां चौराचौरी कांड में दलित समाज की महतिपूर्ण भूमिका रही , वही जालियाँवाला बाग हतय्कांड के उत्रदायी जनरल डायर की हतय् करने वाले उधम सिंह भी दलित समाज के थे । जालियाँवाला बाग में हुए कांड में जिनहोंने सहादत दी थी , उनमें सर्वाधिक दलित समाज के लोग थे , जिनके नामों की सूची आज भी देखी जा सकती है । ि््ति में देखा जाए तो इतिहास के पृष्ठों पर दलित जाति वर्ग में आने वाली जातियों के वर्णन तो मिलते हैं , किनतु उसे गौरवबोध के सनदभना में नहीं देखा जाता है । मधय प्रदेश के माणडि में बना भंगी दरवाजा अथवा आगरा का कालू मदारी , पंजाब के भंगी मिसल के हरी सिंह की गाथा को देखा और समझा जाता है , किनतु जो ि््तविक ्िरुप दलित समाज के इन ्ितंत्रता सेनानियों को मिलना चाहिए था , वह अब तक नहीं मिला है । भारत के इतिहास में दलित समाज के संघर्ष को उचित ्र्र नहीं दिया गया पर तथाकथित इतिहासकारों ने मुस्लम , तुर्क एवं मुग़ल विदेशी आतंकियों , लूटेरों , हतय्रों एवं धोखेबाज अंग्ेजों को अमर बना दिया गया । �
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