और न ही शूद्र अ्पृ्य थे । समय परिवर्तन के साथ उत्र वैदिक काल में सनातन धर्म में मौलिक गुणों के ्र्र पर वयैस्तक हितों को संतुषट करने वाले मानवीय गुणों को प्रश्य दिया जाने लगा , जिससे कुछ विकृत मानयताएं उतपन्न हो गयी । यज् की प्रधानता ्र्वपत होने के साथ ही हिनदू जीवनशैली में शुद्धता एवं ्िचछता को अधिक महति दिया जाने लगा । एक ही परिवार में चारों वर्ण के लोग सद्य होते थे । कार्य के आधार पर ही दृढ़ता के साथ वर्ण सुनिश्चत था । वयिसाय बदलने के साथ वर्ग बदलने की भी वयि्र् थी । मधयकाल के पहले तक हिनदू समाज में न तो अ्पृ्यता का प्रादुर्भाव हुआ
ता और न ही हिनदू समाज में दलित जैसी कोई जाति या वर्ग था ।
भारत में अ्पृ्यता का उदय विदेशी मुस्लम आरि्ंताओं के शासनकाल में हुआI इसका एकमात्र कारण था हिनदुओं का सब कुछ लूटकर , उन पर भारी अतय्चार , वयवभचार के उपरांत उनको मृतयुदंड से डराकर , इ्ल्म ्िीकार कराना था । हिनदू धर्म ग्ंरों में प्रवक्पतता एवं हिनदू समाज के प्रति भयानक दुर्भावना के सनदभना में तरय्तमक अधययन के लिए इतिहास के उन पृष्ठों को पलटा जाए जो यह प्रमाणित करते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब देश के पश्चमी तट पर एक शरण्रटी के रूप में रोजी-रोटी प्रापत
करने के लिए अरब देशों की मुस्लम जनसंखय् हिनदु्र्र के सनमुख नतम्तक थी । ईमान पर कुर्बान होने का ढोंग करने वाले लोग इ्ल्मी जेहाद में इतने अंधे हो गए कि आ्तीर के सांप की तरह इस देश को डसने लगे । उनके चरणबद्ध आरिमणों का प्रहार झेलते हुए हिनदु्र्र ने कड़ा प्रतिउत्र दिया , लेकिन विदेशी मुस्लम आरि्ंताओं के द््रा प्रारूपित आंतरिक कलह एवं वैमर्यता के कारण हिनदू समाज की कमजोर पड़ गयी दीवार अभेद्य नहीं रही ।
विदेशी मुस्लम आरि्ंता आरिमणकारियों का ्ि्वभमानी , धर्माभिमानी एवं र्षट्र्वभमानी हिनदू धर्म रक्कों से लगातार हुए संघर्ष के बाद
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