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्र्वपत एवं ्िपोषित समरसता को समापत करने में सफल रहे । हिनदू धर्म के उपादान ( आधार भूमि ) हैं-वेद , उपनिषद , ्मृवतयां तथा परमपरा से चला आ रहा शिषट्चार । हिनदू धर्म के पुराणादि ग्नरों में वि्ि मानव कलय्ण की जो संभावनाएं निहित हैं , वे किसी मत विशेष से आबद्ध नहीं हैं । हिनदू धर्म केवल वि्ि्सों और सिद्धानतों का समुच्य नहीं है । हिनदू धर्म प्रकृति का पोषक एवं उससे पोषित रहा है , अतएव इसे प्राकृतिक मानकों पर आधारित सामाजिक वयि्र्ओं का सिद्धानत कहा जाता है । इसे सम्त मतों की जननी भी कहा जाता
है , जिसका प्रसार सं्कृत वाङ्मय में निहित है ।
हिनदू सं्कृवत का आधार भारतीय जीवन- पद्धति है , जो प्रकृति प्रदत् है । यह प्रकृतिधर्मा इसलिए कहलाती है ्योंकि हिनदू धर्म का दस लक्ण या तति प्राकृतिक मानकों पर आधारित सामाजिक वयि्र्ओं का सिद्धानत है । हिनदू धर्म के उसके सम्त उपांग या लक्ण प्राकृतिक नियमों का अनुपालन करते हैं और सनातन मानवीय आधय्सतमक ऊर्जा को बचाए रखते हैं । हिनदू सं्कृवत के उतर्र के संघर्ष एवं प्रयास को आज देश में चाहे जिस दृसषट से देखा जाए , किनतु हिनदुओं के इस प्रयास के पीछे भी वि्ि
कलय्ण का ही भाव निहित है । इस सं्कृवत में सहिषणुता के ्ि्भाविक एवं प्राकृतिक भाव हैं । इसमें मानव के आपसी संग्ठर के भी प्राकृतिक भाव और सामाजिक समरसता के गुण प्रापत होते हैं । लेकिन प्राचीन भारत में जिस तरह से अरब के विदेशी आरि्ंताओं ने हमले किए , उन हमलों ने भारत की प्राचीन सं्कृवत को नषट करके रख दिया । मुस्लम और अंग्ेजी शासकों ने अपने ्ि्र्थ , लिपस् और लालच के लिए भारत और भारत की सं्कृवत को चोट पहुंचाई और हिनदुओं को बांट दिया । इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि प्राचीन हिनदू लोकजीवन एवं समाज में मात्र चार वर्ण , 117 गोत्र और कुल 36 जातियां थी , किनतु वर्तमान भारत सरकार के गजट के अनुसार आज देश में 6500 जातीय एवं पचास हजार से अधिम उप जातियां हैं ।
भारत की दलित जातियां एवं प्राचीन वैदिक कालीन शूद्र
दलित श्द का शाब्दक अर्थ है- दलन किया हुआ । इसके तहत वह हर वह वयस्त आ जाता है जिसका शोषण-उतपीडन हुआ है । यह श्द हिंदू सामाजिक वयि्र् में सबसे निचले पायदान पर स्रत हजारों िषयों से अ्पृ्य समझी जाने वाली जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयोग होता है । भारतीय संविधान में इन जातियों को अनुसूचित जाति नाम से जाना जाता है । वैदिक काल के साहितय या धर्म ग्ंरों में कहीं भी दलित श्द नहीं पाया जाता है । देश के प्राचीन इतिहास पर विहंगम दृसषट डाली जाए तो वर्तमान हिनदू जीवन पद्यति का ्िवणनाम युग वैदिक काल था । तथाकथित कई लेखकों का विचार है कि जातिवाद का मूल कारण वेद और मनु ्मृवत है , परनतु वैदिक काल और प्राचीन भारत में जातिवाद या छुआछूत के अस्तति से तो विदेशी लेखक भी ्पषट रूप से इंकार करते है । प्राचीनकाल में वर्ण होते थे लेकिन वर्ण वर्तमान में जाति या वर्ग का रूप धारण कर लिया । वैदिक या प्राचीन काल में मनुषय की रि्ह्मण , क्वत्रय , वै्य एवं शूद्र , चार तरह की
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