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अनुसूचित जाततरषों का राष्ट्रवादरी इतिहास
रतीय सं्कृवत और समाज पर
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धय्र दिया जाए तो यह कहना
गलत नहीं लगता कि दासता और गुलामी की जंजीरों में जकड दिए गए हिनदू समाज के अंदर , भारत पर राज करने वालों के खिलाफ जब विद्रोह की जि्ला हद से जय्दा भड़कने लगी , तो उसका परिणाम शासक वर्ग पर दिखने लगा । विद्रोह की इस आग को उसी समाज ने जलाया था , जिस समाज को अरब से आए मुस्लम आरि्ंताओं ने अपनी क्रूरता के बल पर अपनी सेवा के लिए पैदा कर दिया था । इस समाज को दलित समाज का नाम दिया गया था और यह वह समाज था , जिसे हिनदू सभयता से दूर करने के लिए कुचरि रचे गए थे । आखिर वह कौन से कारण थे और वह कैसी परिस्रवतयां थी , जिसकी वजह से दलित जाति के लोगों ने शासन और सत्् के खिलाफ विद्रोह की आवाज उ्ठ् करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी ? यह जानने और समझने लिए हमें भारतीय सनातन सं्कृवत और समाज को जानना जरुरी है ।
भारत में हिन्ू समाज एवं उसका ताना-बाना
प्राचीन भारत में हिनदू धर्म , सं्कृवत एवं जीवन-पद्धति का चिंतन सामाजिक समरसता पर आधारित था । हिनदू धर्म के जिन ततिों का उललेख वैदिक वाङ्मय में हुआ है उनसे यह ्पषट होता है कि भौतिक एवं आधय्सतमक जगत् की समसषट को इस सनातन धर्म ने आतमसात् कर रखा है । हिनदू धर्म के जिन दस लक्णों या ततिों के बारे में जानना आि्यक है , वह इस प्रकार है-धृति ( धैर्य ), क्मा , दम ( साधना ,
तप्य् एवं योग ), अ्तेय ( चोरी न करना ), शौच ( ्िचछता एवं पवित्रता ), इसनद्रय-वरग्ह , धी ( आधय्सतमक ज््र ), विद्या ( भौतिक ज््र ), सतय तथा अरिोध ( अहिंसा ) I इन ततिों के
अनुककूलन में सामाजिक समरसता के वय्पक प्रभाव का अनुमान एवं अवलोकन करने के बाद ही वाह्य शक्तयों ने भारत पर आरिमण कर इन पर प्रतयक् रूप से प्रहार किया और भारत की
40 vizSy 2023