‘ बहिषकृत भारत ’, ‘ समता ’ और ‘ प्रबुद्ध भारत ’ जैसे पत्र और पत्रिकाओं का संपादन विभिन्न समय में किया है । वे विधिवेत्् और राजनीतिक है । डॉ . अमबेडकर कुशल संग्ठरकर्ता हैं । अग्त 1936 में इंडिपेंडेंट लेबर प्टटी और आल इंडिया सीडूयूलूड क््ट फेडरशन का ग्ठर करते हैं । आनदोलनकर्ता भी हैं । अ्पृ्य समाज का सार्वजनिक ्रलों पर भागीदारी हो , इसके लिए महार सतय्ग्ह जैसे आनदोलन भी करते हैं ।
उनके राजनीतिक जीवन की वैचारिक दृसषट सामानय तौर पर दो अि्र्ओं में विभाजित की जा सकती है । पहली अि्र् वह है जहाँ पर डॉ . अमबेडकर भारतीय र्षट्रीय कांग्ेस के विरोध में हैं और वरिटिश सरकार या सं्र्ओं में पदाधिकारी है । उनके चिंतन के केंद्र में अ्पृ्य समाज का हित है । उनके लिय मुस्लम लीग की तरह पृथक निर्वाचन चाहते हैं । इसलिए
किसी के साथ सहयोग ले लेते हैं । अपने चिंतन के दूसरी अि्र् में , जब वे प्रारूप समिति के अधयक् बनते है , तब उनके विचारों में र्षट्रीयता दिखती है । र्षट्र निर्माण और र्षट्र का एकीकरण ही उनके चिंतन का आयाम बनता है । संविधान सभा में सामान नागरिक संहिता , भाषा , केंद्र के पास शक्त केनद्रण जैसे विषयों पर मुखर और ्पषट हैं जिसमें एक सश्त भारत चाह रहें हैं । विधि मंत्री के रूप में प्वक्त्र से अपने समाज के वापस आने का आह््र हो या इ्ल्म न ्िीकार करने की सलाह हो , वे र्षट्रीय हित को धय्र देते हैं । यहां पर डॉ . अमबेडकर एक र्षट्रीय नेता के रुप में उभरते हैं और उनकी राजनीतिक ्िीकार्यता बढ़ जाती है ।
डॉ . अमबेडकर का चिंतन भी रिवमक का परिणाम है । समता मूलक समाज निर्माण की सोच भारतीय चिंतन परमपरा से ही है । वे प्राचीन और अद्यतन के बीच सामाजिक सुधारक के भाव से एक कड़ी हैं । उनका संघर्ष आतमसमम्र का संघर्ष है । इस संघर्ष में शिक्् को अनिवार्य कड़ी के रूप में देखते हैं । चूँकि उनकी उच् शिक्् विदेश से ही प्रापत है , इसलिए उनके चिंतन पर प््च्तय विचारों का प्रभाव है और वे उसे श्ेष्ठ भी मानते हैं । डॉ . अमबेडकर के चिंतन का केंद्र बिंदु सामजिक सुधार ही है । वे भारतीय सामाज में प्रचलित अ्पृ्यता का अंत चाहते हैं और प्रतयेक ्तर पर इसका प्रतिरोध करते हैं और जनचेतना का प्रसार करते हैं ।
वर्तमान समय में आभासी दुनिया की लोकप्रियता एक प्रतीक है । बाबा साहब की जंयती 14 अप्रैल को सोशल मीडिया एकदम सजी दिखती है । सभी दलों और सामाजिक समूहों के लोग उनको श्द्ध्ंजलि देते हैं । यह उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक विविशता का प्रतीक है । सरकार ने डॉ . अमबेडकर के विचारों के प्रसार व् प्रचार के लिए उनके जीवन से समबंवधत ्र्र ( जनमभूमि , शिक्् भूमि , दीक्् भूमि , महापरिनिर्वाणभूमि और चैतय भूमि ) को पंचतीर्थ के रूप में विकसित किया है । सरकार के वरददेशानुसार 26 नवमबर को 2015 से संविधान दिवस के रूप में मनाया जाने लगा
है । यह उनके संविधान में योगदान की ्िीकारोक्त है ।
आि्यकता है कि डॉ . अमबेडकर को समग्ता में पढ़ा और लिखा जाए । वे काफी रुचिकर लेखक सिद्ध हो सकते है । राजनीतिक लाभ के लिए उनहें केवल सामाजिक नय्य की सीमा में सीमित कर दिया गया है । वे भारत के राजनीतिक आदर्श तो बन गये है लेकिन वे वैचारिक और विद्ति में बहुत पीछे छूट गये हैं । उनके आर्थिक विचार विशेषकर भारत में विदेशी ऋण की सम्य् , केंद्र-राजय संबंध , इ्ल्म पर विचार और शुद्र कौन थे , विदेश और सुरक्् , म््सना और बुद्ध जैसे विषयों को जनमानस के सामने लाना आि्यक है ।
डॉ अमबेडकर राजनीति के एक वैचारिक आयाम भी हैं । उनकी सोच और समझ के आधार पर राजनीतिक दलों का निर्माण हुआ और राजनीतिक दल प्रवत्पधटी होते हैं । ऐसे में उनके विचारों का दुरूपयोग न होने पाए ्योंकि इतिहास इस प्रकार के उदाहरणों से भरा हुआ है । कार्ल म््सना की 1888 ई में मृतय हो गयी और उसके विचारों की वय्खय् और पुर्नवय्खय् के आधार पर एक र्तरंजित इतिहास मानव समाज ने देखा है । बहुत कम लोग होंगें , जिनहोंने म््सना की मौलिक रचना पढ़ी होगी । लेकिन वय्खय्कारों ने निजी ्ि्र्थ में म््सना के विचारों का उपयोग किया । दूसरा प्रमुख उदहारण , भारत के सनदभना में महातम् बुद्ध से है । भगवान बुद्ध को वय्खय् के आधार पर सनातन धर्म के विरोध में खड़ा कर दिया जबकि बौद्ध धमां सनातन परमपरा में ही विकसित हुआ विचार है । बौद्ध धमां का आधार ग्नर त्रिपिटिक है । त्रिपिटिक में सभी वैदिक देवता का सकारातमक उललेख है । इसलिए डॉ . अमबेडकर को भी उनके मौलिकता और समग्ता में पढ़ने और लिखने आि्यकता है , ्योंकि उनके विचारों के निकट एक मिथक का निर्माण हो रहा है जिसका उपयोग र्षट्र विरोधी ततिों द््रा किया जा सकता है । अतिरेक महानता से मिथकीय ततिों निर्माण होता है ।
( लेखक , डॉ . अम्ेडकर इंटरनेशनल सेंटर , नररी दिल्ली में सह आचार्य हैं ।)
vizSy 2023 37