खेतीहर मजदूर के रूप में आज भी शोषण का शिकार हो रहा है । इसके अलावा लाखों की तादाद में बंधुआ मजदूर के रूप में दलित शोषित हो रहा है । जिन परिवारों के पास अपनी हकदारी का आवास न होने की बात सरकार मानती है उनमें से जय्दातर दलित तबके के ही लोग हैं । गांवों में भूमि-सुधार की जो पहल आजादी के
बाद की गई थी , ( विनोबा भावे ने एक सार्थक पहल आजादी के बाद भूमि-सुधार को लेकर बिहार और दूसरे कई राजयों में की थी जिसके सार्थक परिणाम निकले थे ) वह कारगर नहीं हो पाई , जिसका परिणाम यह हुआ कि गांव का दलित आज भी तमाम कोशिशों के बावजूद खेती के काबिल जमीन से लगभग महरूम है । गांव- गांव में पानी के संकट से निजात दिलाने के लिए केंद्र और राजय सरकारों ने चापाकल ( हैंडपंप ) लगवाने की जो योजनाएं लागू की उससे बहुत बड़ी तादाद में दलितों को लाभ तो हुआ है , लेकिन अभी भारत के हजारों दलित
गांव ऐसे हैं , जहां रहने वाले दलित तमाम सम्य् का सामना करने के लिए मजबूर हैं ।
यह सच है कि अभी भी दलित समाज भारतीय समाज के दूसरे तबकों से कई मायने में बहुत पीछे है , लेकिन यह भी सच है कि आजादी के बाद दलित समाज को जो सरकारी , संवैधानिक , सामाजिक , आर्थिक और शैवक्क अधिकार हासिल हुए वे हजारों िषयों में पहली बार हासिल हुए । इसलिए दलित संग्ठरों को अपनी आरिमकता के ि्त इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि दलित उतर्र और उनकी बेहतर स्रवत जो अब है , वह भारत के इतिहास में कभी भी नहीं थी । गांवों में जहां उनहें कुएं का पानी भरना दूर , कुएं पर चढ़रे की भी मनाही थी , वहां पर अब वह निडर होकर ( कुछ अपवादों को छोड़ दे ) पानी भरता है । जहां पर वह शादी-्य्ह में शान-शौकत नहीं दिखा सकता था , अब वह अपनी मजटी से खूब धूमधाम से विवाह संपन्न कराता है । दलित शासन और प्रशासन के उस ऊंचाई पर पहुंच गया है , जहां आजादी के पहले उसके पूर्वज कभी ्िप्न में भी शायद सोचे होंगे ।
आजादी के बाद से ही दलितों के किसी आयु-वर्ग के वयस्त के साथ भेदभाव करना एक बहुत बड़् अपराध माना गया । इसे बाकयदे संविधान में शामिल किया गया । जो अधिकार दलितों के बच्ों और महिलाओं को आजादी के बाद हासिल हुए , वे उनहें हर तरह से आगे बढ़रे की गारंटी और सुरक्् दोनों देते हैं । इसी तरह दलित लड़वकयों और लड़कों के शिक्् और नौकरी के लिए शासन ने जो सुविधाएं दी हुईं है , यह उनके प्रति शासन की सहिषणुता और उनके प्रति संवेदना नहीं तो ्य् कहा जाएगा ? मतलब ऐसा कोई क्ेत्र नहीं है जहां दलितों को विशेष दर्जा न हासिल हो । इसके बावजूद दलितों पर अतय्चार देश के हर वह्से में होते रहते हैं । इस पर केंद्र और राजय सरकारों को वसद्त से सोचना होगा ।
बाबा साहब भीम राव अमबेडकर ने दलितों की अतयंत खराब स्रवत के कारण ही संविधान में इनके लिए जगह-जगह आरक्ण की वयि्र् की थी । उसका फायदा इनहें शासन , प्रशासन ,
शिक्् , रोजगार , रोटी , कपड़् और मकान में लगातार मिलता आ रहा है । आज दलितों की बेहतर होने स्रवत के लिए डॉ . अमबेडकर का दलित समाज श्ेणी है । लेकिन अभी भी समाज में इनहें वह बेहतर स्रवत हासिल करनी है जो बाबा साहब चाहते थे । लेकिन इनहें हासिल करने के लिए आरिमकता की जगह बुद्धि और विवेक से आगे बढ़र् जय्दा मुफीद होगा । डॉ अमबेडकर ने वशवक्त हो , आगे बढ़ो , और संषर्घ करो का जो नारा दिया था , उसमें आरिमकता की कोई जगह नहीं है । गांधी जी भी हिंसा या आरिमकता के जरिए धन , अधिकार और समम्र हासिल करने के हमेशा खिलाफ थे । इसीलिए वे किसी भी सम्य् का हल ढूढ़रे में हमेशा अहिंसा और सतय्ग्ह का ही सहारा लेते थे । यह सही है कि आजादी के बाद अहिंसा और सतय्ग्ह के जरिए शासन तक अपनी बात पहुंचाने की गुजाइश बहुत कम हो गई है , लेकिन यह भी सही है कि हिंसा या आरिमकता किसी सम्य् का संपूर्ण और अंतिम हल नहीं है । इसलिए दलितों के हक की लड़्ई लड़ते ि्त दलित पार्टियां और संग्ठर आरिमक रुख अपनाने से पीछे नहीं हटते हैं ।
अचछ् यह हो कि दलित संग्ठरों को दलितों की सम्य्ओं , उनके साथ हो रहे अनय्य और शोषण की चर्चा करते ि्त संविधान और शासन द््रा दी गई मदद और मिले अधिकारों की भी बात को ्िीकार करना चाहिए । इससे ही दलितों के प्रति जहां एक ्ि्र नजरिया बनेगी वहीं पर सम्य्ओं को उ्ठ्रे पर उसे शासन और प्रशासन के अलावा जन सहयोग भी पूरी तरह से वसद्त के साथ मिल सकेगा । आज दलित वर्ग का वयस्त लोक सभा अधयक् से लेकर गवर्नर तक जैसे महतिपूर्ण पदों तक पहुंच चुका है । यानी हर क्ेत्र में दलित समाज आगे कदम बढ़् चुका है , बावजूद उनके साथ भेदभाव और अतय्चार अभी खतम नहीं हुए हैं । समाज के इस सबसे निचले तबके के साथ जब तक पूरा समम्र और सद्भावना नहीं हासिल होता , इनके साथ नय्य नहीं हो सकता ।
( साभार ) vizSy 2023 35