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दलित समस्ा के समाधान के लिए सार्थक पहल की आवश्यकता
अखिलेश आरयेन्दु
श के विभिन्न वह्सों में प्रायः ns
दलितों के साथ होने वाले
अतय्चार अभी भी जारी हैं । ऐसे में एक सवाल बार-बार उ्ठ्या जाता है कि आखिर कब तक दलित उच् िगयों के जरिए उतपीवड़त किए जाते रहेंगे । कब वे दूसरी जातियों की तरह आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहतर होंगे और वह भी समाज में उसी तरह समम्र के साथ निडर होकर जी सकेंगे जैसे समाज के अगड़े जी रहे हैं । इसी के साथ शासन की लापरवाही कार्यप्रणाली को लेकर भी सवाल उ्ठ्ए जा रहे हैं । ्य् कारण है कि आजादी के 70 िषयों के बाद भी दलितों पर उतपीड़र जारी है । इसी के साथ दलितों की हितों को लेकर अनेक संग्ठर धरना-प्रदर्शन करके अपना विरोध दर्ज कराने में लगे हैं । देखा जाए तो दलितों के लिए केंद्र और राजय सरकारों द््रा लागू की गईं योजनाओं के अपेवक्त परिणाम वैसे नहीं आ रहे हैं जैसे आने चाहिए । जिस आरि्मकता के साथ दलित सम्य्ओं को उ्ठ्या जा रहा है , उससे यह साफ हो गया कि अब दलितों के प्रति बरती जा रही उपेक्् को जय्दा दिन तक दलित समाज और संग्ठर बर्ना्त नहीं करेगा । इससे यह बात साफ हो गई है कि सरकारी और गैरसरकारी प्रयासों की समीक्् बिना किसी आग्ह या दुर्ग्ह के करने का ि्त आ गया है ।
भारत में सामाजिक जातिगत और आर्थिक विषमता इस कदर गहरी है कि ऐसे बहुत कम लोग हैं जो दलितों को सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहतर होते हुए खुश होते हों । केंद्र और राजय सरकारों द््रा दलितों की बेहतरी के लिए
जो योजनाएं लागू की जाती हैं , वे अधिकांशतः भ्षट्चार का शिकार हो जाती हैं । इसलिए सरकार द््रा जरूरतमंदों के लिए जारी धन इतनी देर में और इतने कम तादाद में पहुंच पाता है कि उससे उनकी बेहतरी की आशा नहीं की जा सकती है । उदाहरण के तौर पर मनरेगा को ही ले लें । सरकार द््रा गांव के बेरोजगारों को 100 दिन की रोजगार की गारंटी देने वाली इस योजना के लिए आवंटित धन अधिकांश जिलों में जरूरतमंद लोगों के पास नहीं पहुंच पा रहा है और इ्तेमाल के पहले ही भ्षट्चार का शिकार हो जाता है । इसे ग््मीण विकास मंत्रालय की
संसदीय समिति के सिदेक्ण रपट में भी ्िीकार किया गया है । इसी तरह दलितों के मैला ढोने के कार्य को समापत करने की तमाम घोषणाओं के बावजूद अभी भी बड़ी तदाद में शहरों और क्बों की दलित महिलाएं इस अमानवीय-प्रथा से मजबूरीवश लगी हुई हैं । जबकि केंद्र और राजय सरकारें इस कुप्रथा को जड़ से ही खतम करने के दावे करतीं रहीं हैं । जाहिर है जब तक राजय और केंद्र सरकार इनके रोजगार और आय के दूसरे साधनों की मुकममल वयि्र् नहीं करते , इस घृणित-प्रथा से उनहें छुटकारा दिला पाना मुश्कल का काम है । गांवों में दलित
34 vizSy 2023