अपने विचार कहे थे । समग् रूप से पढ़े तो हर समाज सुधारक का उद्े्य समाज सुधार करना था । जहाँ कबीर हिनदू पंडितों के पाखंडों पर जमकर प्रहार करते है वहीं मुसलमानों के रोजे , नमाज़ और क़ुरबानी पर भी भारी भरकम प्रवतवरिया करते है । गुरु नानक जहाँ हिनदू में प्रचलित अंधवि्ि्सों की समीक्् करते है , वहीँ इ्ल्वमक आरि्ंता बाबर को साक््त शैतान की उपमा देते है । इतना ही नहीं सभी समाज सुधारक वेद , हिनदू देवी-देवता , तीर्थ , ई्िर आराधना , आस्तकता , गोरक्् सभी में अपना वि्ि्स और समर्थन प्रदर्शित करते हैं । ईसाई मिशनरियों ने भक्त आंदोलन पर शोध के नाम पर सुनियोजित षड़यंत्र किया । एक ओर उनहोंने समाज सुधारकों द््रा हिनदू समाज में प्रचलित अंधवि्ि्सों को तो बढ़ा चढ़ा कर प्रचारित किया वहीँ दूसरी ओर इ्ल्म आदि पर उनके द््रा कहे गए विचारों को छुपा दिया । इससे दलितों को यह दिखाया गया कि जैसे
भक्त काल में संत समाज रि्ह्मणों का विरोध करता था और दलितों के हित की बात करता था वैसे ही आज ईसाई मिशनरी भी रि्ह्मणों के पाखंड का विरोध करती है और दलितों के हक की बात करती है । ईसाई मिशनरी के इन प्रयासों में भक्त काल में संतों के प्रयासों में एक बहुत महतिपूर्ण अंतर है । भक्त काल के सभी हिनदू समाज के महतिपूर्ण अंग बनकर समाज में आई हुई बुराइयों को ्ठीक करने के लिए श्म करते थे । उनका हिंदुति की मुखय विचारधारा से अलग होने का कोई उद्े्य नहीं था । जबकि वर्तमान में दलितों के लिए कलय्ण कि बात करने वाली ईसाई मिशनरी उनके भड़का कर हिनदू समाज से अलग करने के लिए सारा श्म कर रही है । उनका उद्े्य जोड़ना नहीं तोड़ना है ।
डॉ अम्बेडकर और दलित समाज
ईसाई मिशनरी ने अगर किसी के चिंतन का सबसे अधिक दुरूपयोग किया तो वह संभवत डॉ अमबेडकर ही थे । जब तक डॉ डॉ अमबेडकर जीवित थे , ईसाई मिशनरी उनहें बड़े से बड़ा प्रलोभन देती रही कि किसी प्रकार से ईसाई मत ग्हण कर ले ्योंकि डॉ अमबेडकर के ईसाई बनते ही करोड़ों दलितों के ईसाई बनने का र््त् सदा के लिए खुल जाता । उनका प्रलोभन तो ्य् ही ्िीकार करना था । डॉ अमबेडकर ने खुले श्दों के ईसाइयों द््रा साम , दाम , दंड और भेद की नीति से धर्मानतरण करने को अनुचित कहा । डॉ अमबेडकर ने ईसाई धर्मानतरण को र्षट्र के लिए घातक बताया था । उनहें ज््त था कि इसे धर्मानतरण करने के बाद भी दलितों के साथ भेदभाव होगा । उनहें ज््त था कि ईसाई समाज में भी अंग्ेज ईसाई , गैर अंग्ेज ईसाई , सवर्ण ईसाई , दलित ईसाई जैसे भेदभाव हैं । यहाँ तक कि इन सभी गुटों में आपस में विवाह आदि के समबनध नहीं होते है । यहाँ तक इनके गिरिजाघर , पादरी से लेकर कवरि्त्र भी अलग होते हैं । अगर ्र्रीय ्तर पर ( विशेष रूप से दवक्ण भारत ) दलित ईसाईयों के साथ दूसरे ईसाई भेदभाव
करते है । तो वि्ि ्तर पर गोरे ईसाई ( यूरोप ) काले ईसाईयों ( अफ्ीका ) के साथ भेदभाव करते हैं । इसलिए केवल नाम से ईसाई बनने से डॉ अमबेडकर ने ्पषट इंकार कर दिया । जबकि उनके ऊपर अंग्ेजों का भारी दबाव भी था । डॉ अमबेडकर के अनुसार ईसाई बनते ही हर भारतीय भारतीय नहीं रहता । वह विदेशियों का आर्थिक , मानसिक और धार्मिक रूप से गुलाम बन जाता है । इतने ्पषट रूप से वरददेश देने के बाद भी भारत में दलितों के उतर्र के लिए चलने वाली सभी सं्र्एं ईसाईयों के हाथों में है । उनका संचालन चर्च द््रा होता है और उनहें दिशा वरददेश विदेशों से मिलते है ।
सरेवा करे नाम पर धम्ांतरण
ईसाई मिशनरी दलितों को हिंदुओं के अलग करने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही हैं । इनका प्रयास इतना सुनियोजित है कि साधारण भारतीयों को इनके षड़यंत्र का आभास तक नहीं होता । अपने आपको ईसाई समाज मधुर भाषी , गरीबों के लिए दया एवं सेवा की भावना रखने वाला , विद्यालय , अनाथालय , चिकितस्लय आदि के माधयम से गरीबों की सहायता करने वाला दिखाता है । मगर सतय यह है कि ईसाई यह सब कार्य मानवता कि सेवा के लिए नहीं अपितु इसे बनाने के लिए करता है । वि्ि इतिहास से लेकर वर्तमान में देख लीजिये पूरे वि्ि में कोई भी ईसाई मिशन मानव सेवा के लिए केवल धर्मानतरण के लिए कार्य कर रहा हैं । यही खेल उनहोंने दलितों के साथ खेला है । दलितों को ईसाईयों की क्ठपुतली बनने के ्र्र पर उन हिंदुओं का साथ देना चाहिए जो जातिवाद का समर्थन नहीं करते है । डॉ अमबेडकर ईसाईयों के कारनामों से भली भांति परिचित थे । इसीलिए उनहोंने ईसाई बनना ्िीकार नहीं किया था । भारत के दलितों का कलय्ण हिनदू समाज के साथ मिलकर रहने में ही है । इसके लिए हिनदू समाज को जातिवाद रूपी सांप का फन कुचलकर अपने ही भाइयों को बिना भेद भाव के ्िीकार करना होगा । �
vizSy 2023 33