April 2023_DA | Page 32

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निरीक्ण के समय बृहदरथ को मौत के घाट उतार दिया । इसके प्च्त पुषयवमत्र ने बुद्ध विहारों में छिपे उग्ि्वदयों को पकड़ने के लिए हमला बोल दिया । ईसाई मिशनरी पुषयवमत्र को एक खलनायक , एक हतय्रे के रूप में चित्रित करते हैं । जबकि वह महान देशभ्त था । अगर पुषयवमत्र बुद्धों से द्ेष करता तो उस काल का सबसे बड़ा बुद्ध ्तूप न बनवाता । ईसाई मिशनरियों द््रा आदि शंकराचार्य , कुमारिल भट् और पुषयवमत्र को निशाना बनाने के कारण उनकी रि्ह्मणों के विरोध में दलितों को भड़काने की नीति थी । ईसाई मिशनरियों ने तीनों को ऐसा दर्शाया जैसे वे तीनों रि्ह्मण थे और बुद्धों को विरोधी थे । इसलिए दलितों को बुद्ध होने के नाते तीनों रि्ह्मणों का बहिषक्र करना चाहिए ।
हिन्ू त्ोहारों और दरेवी-दरेवताओं करे नाम पर भ््मक प्रचार
ईसाई मिशनरी ने हिनदू समाज से समबंवधत
तयोहारों को भी नकारातमक प्रकार से प्रचारित करने का एक नया प्रपंच किया । इस खेल के पीछे का इतिहास भी जानिए । जो दलित ईसाई बन जाते थे । वे अपने रीति-रिवाज , अपने तयोहार बनाना नहीं छोड़ते थे । उनके मन में प्राचीन धर्म के विषय में आ्र् और श्द्ध् धर्म परिवर्तन करने के बाद भी जीवित रहती थी । अब उनको कट्र बनाने के लिए उनको भड़काना आि्यक था । इसलिए ईसाई मिशनरियों ने वि्िविद्यालयों में हिनदू तयोहारों और उनसे समबंवधत देवी देवतों के विषय में अनर्गल प्रलाप आरमभ किया । इस पषड़यंत्र का एक उदहारण लीजिये । महिषुर दिवस का आयोजन दलितों के माधयम से कुछ विश्िद्य्लयों में ईसाईयों ने आरमभ करवाया । इसमें शोध के नाम पर यह प्रवसद् किया गया कि काली देवी द््रा अपने से अधिक शक्तशाली मूलनिवासी राजा के साथ नौ दिन तक पहले शयन किया गया । अंतिम दिन मदिरा के नशे
में देवी ने शुद्र राजा महिषासुर का सर काट दिया । ऐसी बेहूदी , बचकाना बातों को शौध का नाम देने वाले ईसाईयों का उद्े्य दशहरा , दीवाली , होली , ओणम , श््िणी आदि पियों को पाखंड और ई्टर , गुड फ््इडे आदि को पवित्र और पावन सिद्ध करना था । दलित समाज के कुछ युवा भी ईसाईयों के बहकावें में आकर मूर्खता पूर्ण हरकते कर अपने आपको उनका मानसिक गुलाम सिद्ध कर देते है ।
हिंदुत्व सरे अलग करररे का प्रयास
ईसाई समाज की तेज खोपड़ी ने एक बड़ा सुनियोजित धीमा जहर खोला । उनहोंने इतिहास में जितने भी कार्य हिनदू समाज द््रा जातिवाद को मिटाने के लिए किये गए । उन सभी को छिपा दिया । जैसे भक्त आंदोलन के सभी संत कबीर , गुरु नानक , नामदेव , दादूदयाल , बसवा लिंगायत , रविदास आदि ने उस काल में प्रचलित धार्मिक अंधवि्ि्सों पर निषपक् होकर
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