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भी था । जब वर्णवयि्र् का ्र्र जातिवाद ने ले लिया था । कोई वयस्त रि्ह्मण गुण , कर्म और ्ि्भाव के ्र्र पर नहीं अपितु जनम के ्र्र पर प्रचलित किया गया । इससे पूर्व वैदिक काल में किसी भी वयस्त का वर्ण , उसकी शिक्् प्र्सपत के उपरांत उसके गुणों के आधार पर निर्धारित होता था । इस बिगाड़ वयि्र् में एक रि्ह्मण का बेटा रि्ह्मण कहलाने लगा चाहे वह अनपढ़ , मुर्ख , चरित्रहीन ्यों न हो और एक शुद्र का बेटा केवल इसलिए शुद्र कहलाने लगा ्योंकि उसका पिता शुद्र था । वह चाहे कितना भी गुणवान ्यों न हो । इसी काल में सृसषट के आदि में प्रथम संविधानकर्ता मनु द््रा निर्धारित मनु्मृवत में जातिवादी लोगों द््रा जातिवाद के समर्थन में मिलावट कर दी गई । इस मिलावट का मुखय उद्े्य मनु्मृवत से जातिवाद को ्िीकृत करवाना था । इससे न केवल समाज में विधिंश का दौर प्रारमभ हो गया अपितु सामाजिक एकता भी भंग हो गई । ्ि्मी दयानंद द््रा आधुनिक इतिहास में इस घोटाले को उजागर किया गया । ईसाई मिशनरी की तो
जैसे मन की मुराद पूरी हो गई । दलितों को भड़काने के लिए उनहें मसाला मिल गया । मनुवाद जैसी जुमले प्रचलित किये गए । मनु महर्षि को उस मिलावट के लिए गालियां दी गई जो उनकी रचना नहीं थी । इस वैचारिक प्रदुषण का उद्े्य हर प्राचीन गौरवशाली इतिहास और उससे समबंवधत तरयों के प्रति जहर भरना था । इस नकारातमक प्रचार के प्रभाव से दलित समाज न केवल हिनदू समाज से चिढ़ने लगे अपितु उनका बड़े पैमाने पर ईसाई धर्मानतरण करने में सफल भी रहे ।
इतिहास करे साथ खिलवाड़
इस चरण में बुद्ध मत का नाम लेकर ईसाई मिशनरियों द््रा दलितों को बरगलाया गया । भारतीय इतिहास में बुद्ध मत के अ्त काल में तीन वयस्तयों का नाम बेहद प्रवसद् रहा है । आदि शंकराचार्य , कुमारिल भट् और पुषयवमत्र शुंग । इन तीनों का कार्य उस काल में देश , धर्म और जाति की परिस्रवत के अनुसार महान तप वाला था । जहाँ एक ओर आदि शंकराचार्य ने
पाखंड , अनधवि्ि्स , तंत्र-मंत्र , वयवभचार की दीमक से जर्जर हुए बुद्ध मत को प्राचीन श््त्र्र्थ शैली में पर््त कर वैदिक धर्म की ्र्पना करी गई वहीँ दूसरी ओर कुमारिल भट् द््रा माधयम काल के घनघोर अँधेरे में वैदिक धर्म के पुनरुद्धार का संकलप लिया गया । यह कार्य एक समाज सुधार के समान था । बुद्ध मत सदाचार , संयम , तप और संघ के सनदेश को छोड़कर मांसाहार , वयवभचार , अनधवि्ि्स का प्रायः बन चूका था । ये दोनों प्रयास श््त्रीय थे तो तीसरा प्रयास राजनीतिक था । पुषयवमत्र शुंग मगध राजय का सेनापति था । वह महान र्षट्रभ्त और दूरदृसषट वाला सेनानी था । उस काल में सम्राट अशोक का नालायक वंशज बृहदरथ राजगद्ी पर बै्ठ् था । पुषयवमत्र ने उसे अनेक बार आगाह किया था कि देश की सीमा पर बसे बुद्ध विहारों में विदेशी ग्ीक सैनिक बुद्ध भिक्ु बनकर जासूसी कर देश को तोड़ने की योजना बना रहे है । उस पर तुरंत कार्यवाही करे । मगर ऐशो आराम में म्त बृहदरथ ने पुषयवमत्र की बात पर कोई धय्र नहीं दिया । विवश होकर पुषयवमत्र ने सेना के
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