April 2023_DA | Page 30

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देने वाली पु्तक लगे । यह सब योजनाबद्ध रूप में किया गया । इसी समबनध में वेदों में आर्य- द्रविड़ युद्ध की कलपर् करी गई जिससे यह सिद्ध हो की आर्य लोग विदेशी थे ।
बौद्ध मत को बढ़ावा
वेदों के विषय में भ््सनत फैलाने के प्च्त ईसाईयों ने सोचा कि दलित समाज से वेदों को तो छीनकर उनके हाथों में बाइबिल पकड़ाना इतना सरल नहीं है । उनकी इस मानयता का आधार उनके पिछले 400 िषयों के इस देश में अनुभव था । इसलिए उनहोंने इतिहास के पुराने प््ठ को ्मरण किया । 1200 िषयों में इ्ल्वमक आरि्नतों के समक् धर्म परिवर्तन हिनदू समाज में उतना नहीं हुआ जितना बौद्ध मतावली में हुआ । अफग्वर्त्र , प्वक्त्र , बांगल्देश इंडोनेशिया , जावा , सुमात्रा तक फैला बुद्ध मत तेजी से लोप होकर इ्ल्म में परिवर्तित हो गया । जबकि इ्ल्म की चोट से बुद्ध मत भारत भूमि से भी लोप हुआ , मगर हिनदू धर्म बलिदान देकर , अपमान सहकर किसी प्रकार से अपने आपको सुरवक्त रखा । ईसाई मिशनरी ने इस इतिहास से यह निषकषना निकाला कि दलितों को पहले बुद्ध बनाया जाये और फिर ईसाई बनाना उनके लिए सरल होगा । इसी कड़ी में डॉ अमबेडकर द््रा बुद्ध धर्म ग्हण करना ईसाईयों के लिए वरदान सिद्ध हुआ । डॉ अमबेडकर के नाम के प्रभाव से दलितों को बुद्ध बनाने का कार्य आज ईसाई करते है । इस कार्य को सरल बनाने के लिए विदेशी विश्िद्य्लयों में महातम् बुद्ध और बुद्ध मत पर अनेक पी्ठ ्र्वपत किये गए । यह दिखाने का प्रयास किया गया कि भारत का गौरवशाली इतिहास महातम् बुद्ध से आरमभ होता है । उससे पहले भारतीय जंगली , असभय और बर्बर थे । पतंजलि योग के ्र्र पर बुवद्ध्ट धय्र अर्थात विप्यर् को प्रचलित किया गया । कुल मिलाकर ईसाई मिशनरियों का यह प्रयास दलितों को महातम् बुद्ध के खूंटे से बांधने का था ।
सम््ट अशोक को बढ़ावा
इस चरण में ईसाई मिशनरियों द््रा श्ी राम
चंद्र के ्र्र पर सम्राट अशोक को बढ़ावा दिया गया । राजा अशोक को मौर्या वश का सिद्ध कर दलितों का राजा प्रदर्शित किया गया और राजा राम को आययों का राजा प्रदर्शित किया गया । इस प्रयास का उद्े्य श्ी राम आययों के विदेशी राजा थे और अशोक मूलनिवासियों के राजा था । ऐसा भ््मक प्रचार किया गया । इस प्रकार का मुखय लक्य श्ी राम से दलितों को दूर कर सम्राट अशोक के खूंटे से जोड़ना था । इस कार्य के लिए अशोक द््रा कलिंग युद्ध के प्च्त बुद्ध मत ्िीकार करने को इतिहास बड़ी घटना के रूप में दिखाना था । अशोक को महान समाज सुधारक , जनता का सेवक , कलय्णकारी प्रदर्शित किया गया । कुएं बनवाना , अतिथिशाला बनवाना , सड़कें बनवाना , रुगण्लय बनवाना जैसी बातों को अशोक राज में महान कार्य बताया गया । जबकि इससे बहुत काल पहले राम राजय के सदियों पुराने नय्यप्रिय एवं चिरकाल से ्मरण किये जा रहे उच् शासन की कसौटी को भुलाने का प्रयास किया गया । यह बहुत बड़ा छल था । जबकि अशोक राज के इस तरय को छुपाया गया कि अशोक ने राज सेना को भंग करके सभी सैनिकों को बौद्ध भिक्ुक बना दिया गया और राजकोष को बौद्ध विहार बनाने के लिए खाली कर दिया था । अशोक की इस सनक से तंग आकर मंत्रिमंडल ने अशोक को राजगद्ी से हटा दिया था और अशोक के पौत्र को राजा बना दिया था । अशोक के छदम अहिंसावाद के कारण संसार का सबसे शक्तशाली राजय मगध कालांतर में कलिंग के राजा खारवेला से हार गया था । यह था क्वत्रयों के हथियार छीनकर उनहें बुद्ध बनाने का नतीजा । इस प्रकार से ईसाईयों ने श्ी राम की महिमा को दबाने के लिए अशोक को खड़ा किया ।
आययों को विदरेशी बताना
यह चरण सफ़ेद झू्ठ पर आधारित था । पहले आययों को विदेशी और ्र्रीय मूल निवासियों को ्िदेशी प्रचारित किया गया । फिर यह कहा गया कि विदेशी आययों ने मूलनिवासियों को युद्ध में पर््त कर उनहें उत्र से दवक्ण भारत में भगा
दिया । उनकी कनय्ओं के साथ जबरद्ती विवाह किया । इससे उत्र भारतीयों और दवक्ण भारतीयों में दरार डालने का प्रयास किया गया । इसके अतिरर्त नाक के आधार पर और रंग के आधार पर भी तोड़ने का प्रयास किया । इससे दाल नहीं गली तो हिनदू समाज से अलग प्रदर्शित करने के लिए सिणयों को आर्य और शूद्रों को अनार्य सिद्ध करने का प्रयास किया गया । सतय यह है कि इतिहास में एक भी प्रमाण आययों के विदेशी होने और हमलावर होने का नहीं मिलता ।
ब््ह्मणवाद और मनुवाद का जुमला
यह चरण बेहद आरिोश भरा था । दलितों को यह दिखाया गया कि सभी सवर्ण जातिवादी है और दलितों पर हज़ारों िषयों से अतय्चार करते आये है । जातिवाद को सबसे अधिक रि्ह्मणों ने बढ़ावा दिया है । जातिवाद कि इस विष लता को खाद देने के लिए रि्ह्मणवाद का जुमला प्रचलित किया गया । हमारे देश के इतिहास में मधय काल का एक अंधकारमय युग
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