पाएंगे । इसके लिए उनहोंने सुनियोजित तरीके से शैवक्क प्रदुषण का सहारा लिया । विदेश में अनेक वि्िविद्यालयों में शोध के नाम पर श्ीराम और रामायण को दलित और नारी विरोधी सिद्ध करने का शोध आरमभ किया गया । विदेशी वि्िविद्यालयों में उन भारतीय छात्रों को प्रवेश दिया गया जो इस कार्य में उनका साथ दे । रोमिला थापर , इरफ़ान हबीब , कांचा इलैयह आदि इसी रणनीति के पात्र हैं । कुछ उदाहरण देकर हम सिद्ध करेंगे कि कैसे श्ीराम जी को दलित विरोधी , नारी विरोधी , अतय्चारी आदि
सिद्ध किया गया । शमबूक वध की कालपवरक और मिलावटी घटना को उछाला गया और श्ीराम जी के शबरी भीलनी और निषाद राजा केवट से समबनध को अनदेखी जानकर की गई । श्ीराम को नारी विरोधी सिद्ध करने के लिए सीता की अवनिपरीक्् और अहिलय् उद्धार जैसे कालपवरक प्रसंगों को उछाला गया । वीर हनुमान और जामवंत को बनदर और भालू कहकर उनका उपहास किया गया जबकि वे दोनों महान विद््न् , रणनीतिकार और मनुषय थे । इन तरयों की अनदेखी करी गई । रावण को अपने बहन
शूर्पनखा के लिए प्राण देने वाला भाई कहकर महिमामंडित किया गया श्ीराम और उनके भाइयों को राजगद्ी से बढ़कर पर्पर प्रेम को वरीयता देने की अनदेखी करी गई । श्ी कृषण जी के महान चरित्र के साथ भी इसी प्रकार से बेईमानी करी गई । उनहें भी चरित्रहीन , कामुक आदि कहकर उपहास का पात्र बनाया गया । इस प्रकार से नकारातमक खेल खेलकर भारतीय विशेष रूप से दलितों के मन से श्ी राम की छवि को बिगाड़ा गया ।
वरेदों करे सम्न्ध में भ््मक प्रचार
इस चरण का आरमभ तो बहुत पहले यूरोप में ही हो गया था । इस चरण में वेदों के प्रति भारतीयों के मन में बसी आ्र् और वि्ि्स को भ््सनत में बदलकर उसके ्र्र पर बाइबिल को बसाना था । इस चरण में मुखय लक्य दलितों को रखकर निर्धारित किया गया । ईसाई मिशनरी भली प्रकार से जानते है कि गोरक्् एक ऐसा विषय है जिस से हर भारतीय एकमत है । इस एक विषय को समपूणना भारत ने एक सूत्र में उग् रूप से पिरोया हुआ हैं । इसलिए गोरक्् को विशेष रूप से लक्य बनाया गया । हर भारतीय गोरक्् के लिए अपने आपको बलिदान तक करने के तैयार रहता है । उसकी इसी भावना को मिटाने के लिए वेद मनत्रों के भ््मक अर्थ किये गए । वेदों में मनुषय से लेकर हर प्राणिमात्र को मित्र के रूप में देखने का सनदेश मिलता है । इस महान सनदेश के विपरीत वेदों में पशुबलि , मांसाहार आदि जबरद्ती शोध के नाम पर प्रचारित किये गए । इस प्रचार का नतीजा यह हुआ कि अनेक भारतीय आज गो के प्रति ऐसी भावना नहीं रखते जैसी पहले उनके पूर्वज रखते थे । दलितों के मन में भी यह जहर घोला गया । पुरुष सू्त को लेकर भी इसी प्रकार से वेदों को जातिवादी घोषित किया गया । जिससे दलितों को यह प्रतीत हो की वेदों में शुद्र को नीचा दिखाया गया है । इसी वेदों के प्रति अर््र् को बढ़ाने के लिए वेदों के उलटे सीधे अर्थ निकाले गए । जिससे वेद धर्मग्ंर न होकर जादू-टोने की पु्तक , अनधवि्ि्स को बढ़ावा
vizSy 2023 29