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दलितों कबे धमाांतरण में चर्च की सांलिप्तता

डॉ विवेक
रत के दलित क्ठपुतली के समान

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नाच रहे है , विदेशी ताकतें विशेष
रूप से ईसाई विचारक , अपने अरबों डॉलर के धन-समपदा , हज़ारों कार्यकर्ता , राजनीतिक शक्त , अंतर्षट्रीय ्तर की ताकत , दूरदृसषट , एनजीओ के बड़े तंत्र , वि्िविद्यालयों में बै्ठे शिक््विदों आदि के दम पर दलितों को नचा रहे हैं और इसका तातक्वलक लाभ भारत के कुछ राजनेताओं को मिल रहा है और इससे हानि हर उस देशवासी की की हो रही हैं जिसने भारत देश की पवित्र मिटटी में जनम लिया है । अंग्ेजों द््रा भारत छोड़ने पर अंग्ेज पादरियों ने अपना वब्तर-बोरी समेटना आरमभ ही कर दिया था ्योंकि उनका अनुमान था कि भारत अब एक हिनदू देश घोषित होने वाला है । तभी भारत सरकार द््रा घोषणा हुई कि भारत अब एक से्युलर देश कहलायेगा । मुरझायें हुए पादरियों के चेहरे पर ख़ुशी कि लहर दौड़ गई । ्योंकि से्युलर राज में उनहें कोई रोकने वाला नहीं था ।
वैचारिक प्रदूषण
ईसाई पादरियों ने सोचा कि सबसे पहले दलितों के मन से उनके इषट देवता विशेष रूप से श्ी राम और रामायण को दूर किया जाये । ्योंकि जब तक राम भारतियों के दिलों में जीवित रहेंगे तब तक ईसा मसीह अपना घर नहीं बना
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