April 2023_DA | Page 27

“ जो अधिकार भारतीय दंड विधान के अनुचछेद 96 से 98 और 100 अनुचछेद 99 से नियंत्रित होते हैं । वयस्तगत आतमरक्् का अधिकार का इ्तेमाल अपने हाथों किसी की जान लेने तक वि्त्रित है , लेकिन अपने हाथों अपने आतमरक्् में किसी की जान लेने वाले अभियु्त को यह साबित करना पड़ेगा कि ऐसे हालात मौजूद थे , उसमें वह यदि ऐसा न करता तो , या तो उसकी मृतयु हो जाती या वह गंभीर रूप से घायल हो जाता ”। एक अनय निर्णय में सिवोच् नय्यालय ने यह ्िीकार किया कि “ एक वयस्त को अधिकार होगा कि वह कानून अपने हाथ में ले ले , यदि वह देखता है कि उसके मात-पिता या सगे-संबंधी पर हमला होने वाला है ।
दर्शन सिंह बनाम पजाब राजय और अनय मामले में 15 जनवरी 2010 को नय्यालय ने ्िीकार किया कि “ जब ि््ति में यह आशंका हो कि हमलावर मृतयु या गंभीर चोट का कारण बन सकता है , तो इस स्रवत में बचावकर्ता का वयस्तगत आतमरक्् का अधिकार हमलावर का जान लेने तक वि्त्रित हो सकता है । सिर्फ तर्कसममत आशंका आतमरक्् के अधिकार को प्रयोग में लाने का पर्यापत आधार है , लेकिन कानून की यह सुनिश्चत अवस्रवत है कि आतमरक्् का अधिकार सिर्फ ्िंय की रक्् तक सीमित है , और इसमें सगे-संबंधियों की रक्् शामिल नहीं है । आतमरक्् का अधिकार बदला लेने का अधिकार नहीं देता ”।
रसेल आन रि्इम ( 11वां सं्करण , वालयूम
1 , पेज . 491 ) में कहते हैं कि “ एक वयस्त द््रा किसी भी ऐसे वयस्त का ताकत के साथ प्रतिरोध करना नय्यसंगत है , जिसका साफ तौर पर मंतवय और प्रयत्न हिंसा द््रा अथवा अचनाक हमला बोलकर एक ज््त घोर अपराध उस वयस्त , उसके निवास ्र्र अथवा संपवत् के संदर्भ में करना है । इस स्रवत में वह पीछे हटने को बाधय नहीं है , और न तो सिर्फ हमले का प्रतिरोध करने को बाधय है , जिस स्रवत में वह है , उस स्रवत में वह तक तक अपने विरोधी का मुकावला कर सकता है , जब तक कि खतरा टल न जाए । यदि दोनों के बीच सघर्ष जारी है , तो वह अपने हमलावार की हतय् कर सकता है । इस तरह की हतय् नय्यसंगत है ।”
उपयुना्त वि्लेषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि आतमरक्् का अधिकार र्षट्रीय के साथ-साथ अनतर्नाषट्रीय ्तर पर पूरी तरह मानयता प्रापत अधिकार है । आम आदमी के हाथ में अपने शरीर और संपवत् की रक्् करने के लिए , यह एक असाधारण अधिकार है । भारतीय विधि वयि्र् में यह अचछी तरह ्र्वपत है कि कोई भी उसका / उसकी जान नहीं ले सकता है । दूसरे श्दों में हर नागरिक का यह मौलिक कर्तवय है कि वह अपने शरीर और संपवत् की किसी भी हमले से रक्् करे ।
वर्तमान समय में दलितों पर होने वाले अतय्चारों पर धय्र दिया जाए तो न तो राजय ही पूर्ण रूप से अपने नागरिकों की सुरक्् के लिए ततपर है और न ही नागरिक अपने आतमरक्् के अधिकारों के बारे में जानते हैं , इसलिए यह उचित समय है कि लोग संवैधानिक तरीके से अपनी सुरक्् करना जरूर जाने ।
एक लोकतांत्रिक देश में नागरिकों के शरीर और संपवत् की रक्् करने का पहला कर्तवय राजय का है , और आतमरक्् अधिकार बाद की चीज है , जो अनत में आता है । पहले आपको पुलिस की मदद की प्रतीक्् करना है , यदि यह मदद नहीं मिलती है , तो कृपया अपने और अनयों के शरीर और संपवत् की रक्् करने लिए आतमरक्् के अधिकार का उपयोग कीजिए । �
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