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बलातक्र करना हो
चौथा : ऐसा हमला , जिसका मंतवय अप्राकृतिक कामुकता की चाह को पूरा करना हो
पांचवा : ऐसा हमला , जिसका मंतवय अपहरण करना हो
छ्ठ्ं : एक ऐसे मंतवय से किया गया हमला , जिसका लक्य वयस्त को अनधिकृत रूप से कैद करना हो , जिसमें जिस वयस्त को कैद किया जा रहा है , उसे तर्कसममत रूप में यह लगना चाहिए कि सार्वजनिक प्राधिकारी सं्र्एं उसे मु्त करान में अक्म हैं ।
इन 6 हालातों में भारतीय दंड विधान का अनुचछेद 100 वयस्त को इस बात की अनुमति देता है कि वह हमलावर की हतय् भी कर सकता है । यदि कोई वयस्त इस अधिकार का उपयोग इन हालतों के इतर करता है तो वह भारतीय दंड विधान के अनुचछेद 100 के तहत यथोचित प्रावधानों के तहत दंड पाने का अधिकारी होगा ।
जब वयस्तगत निजी संपवत् की रक्् का अधिकार , हतय् का कारण बनने तक वि्त्रित हो जाता है ।
भारतीय दंड संहिता के अनुचछेद 99 में उललेखित प्रतिबंधों के भीतर वयस्तगत संपवत् की रक्् का अधिकार वयस्त की वयस्तगत संपवत् को नुकसान पहुंचाने वाले की हतय् या अनय नुकसान पहुंचाने के अधिकार तक वि्त्रित होता है । यदि वयस्तगत संपवत् को नुकसान पुहंचाने की कोशिश निम्न रूपों में की गई है :
डकैती , रात को घर में सेंधमारी , किसी भवन , टेनट या पानी के जहाज या बड़ी नाव में आग लगाने का उपद्रव करना , जिस भवन , टेनट या जहाज या बडी नाव का इ्तेमाल मानव निवास ्र्र के रूप में किया जाता हो , या संपवत् रखने की जगह के रूप में हो , चोर , उपद्रवी या घर में अनाधिकार प्रवेश करने वाला , इस हालात में बहुत सारे तर्कसममत आशंका के कारण होते हैं , जिसेक परिणाम ्िरूप मृतयु या गंभीर चोट पुहंच सकती है , यदि वयस्तगत आतमरक्् के अधिकार को अमल में न लाया जाए ।
आतमरक्् के अधिकार के प्रति नय्वयक नजरिया
उड़ीसा उच् नय्यलय की पूर्णपी्ठ ने उड़ीसा राजय बनाम रविनद्रनाथ दलाई और अनय के 1973 रिीवमरल लॉ जर्नल के मामले में इस बात को ्िीकार किया कि “ एक सभय समाज में प्रतयेक सद्य के वयस्तगत शरीर और उसकी संपवत् की सुरक्् करना , राजय का उत्रदायिति है । इस कारण से प्रतयेक वयस्त की यह जिममेदारी बन जाती है कि यदि वह अपने वयस्तगत शरीर या संपवत् को फौरी खतरा महसूस करे तो , राजय द््रा उपल्ध सहातया ले , लेकिन उसे यदि इस प्रकार की फौरी सहायता उपल्ध ने हो तो , उसे वयस्तगत आतमरक्् का अधिकार उपल्ध है
सिदेच् नय्यलय ने अपने हाल के एक निर्णय में एक ्िीकार किया है कि एक वयस्त दूसरे वयस्त की हतय् कर सकता है / कर सकती है , यदि उस वयस्त द्रारा मृतयु की आशंका के तर्कसममत कारण हो । यह निर्णय दीपक मिश्् और के . एस . राधाकृषणर की पी्ठ ने दिया था । नय्यलय ने कहा कि “ आतमरक्् का अधिकार का तब तक अपराधकर्ता के खिलाफ नहीं इ्तेमाल नहीं किया जा सकता , जब तक कि संबंधित वयस्त को इस बात की तर्कसममत आंशका न हो कि यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो , या तो उसकी मृतयु हो सकती है , या वह गंभीर रूप में घायल हो सकता है , इस स्रवत में वयस्त को आतमरक्् करने के सभी उपाय प्रयोग मे लाने के अधिकार होगें ।”
26 vizSy 2023