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किया गया । इसके बावजूद देश में मौजूद दलित श्ेणी के लोग सामाजिक कारणों से आर्थिक और शैवक्क रूप से पीछे ही रहे और सि्ांगीण विकास की राह देखते रहे ।
कांग्रेस की नीतियों ररे जातिवाद को दिया बढ़ावा
भारत में संवैधानिक आधार पर दलित यानी अनुसूचित जाति की परिभाषा पर धय्र दिए जाए तो अनुसूचित जातियां वह हैं जो सामाजिक कारणों से आर्थिक और शैक्वणक आधार पर पिछड़ती चली गयीI हालांकि ्ितंत्र भारत में अ्पृ्यता के आधार पर दलित समाज तो खड़ा हो गया पर बारहवीं शत््दी के पहले भारत में न तो दलित था न ही अ्पृ्य और न अ्िचछ कार्य के कारण उतपन्न हुई अ्पृ्यता के आधार पर किसी जाति या वयस्त विशेष का मूलय्ंकन किया जाता था । ्ितंत्रता मिलने के बाद सत्् कांग्ेस को मिली और फिर कांग्ेस ने देश की राजनीति को जाति , धर्म और वर्ग के खांचे में बांट दिया । कांग्ेस के नेतृतिकर्ताओं के लिए यही सुविधाजनक राजनीति थी और इसके माधयम से कांग्ेस ने भारतीय दलित वर्ग को उसी अंधेरे में रखा , जिस अंधेरे काल में हिनदू समाज विदेशी मुस्लम आरि्ंताओं के आरिमणों के बाद से रह रहा थाI
वि्मयकारी बात यह भी है कि कई िषयों तक देश की जनता को अपने एजेंडे के दम पर धोखा देने वाले कांग्ेस नेताओं ने उस आपातकाल से भी सबका नहीं लिया , जिस आपातकाल ने इंदिरा गांधी की सत्् को हिला कर रख दिया था । कांग्ेस शासनकाल में दलित समाज को " गरीबी हटाओ " का नारा देकर भ्म में रखा गया , वही धार्मिक आधार पर पक्पात करके उसी " बांटो और राज करो " की नीति अपनायी गयी , जो नीति कांग्ेस को विरासत में अंग्ेजों से मिली थीI कांग्ेस नेता के रूप में इंदिरा गांधी की तानाशाही और जनता की आवाज को पुरजोर तरीके से दबाने के कारण देश ने राजनीतिक संकट एवं अस्ररता को भी देखा और फिर इसी राजनीतिक अस्ररता का परिणाम सत्् के लिए
मची होड़ के रूप में देखा गयाI
सत्् हासिल करने के लिए कांग्ेस ने जातिवाद , वंशवाद , पंथवाद , तुसषटकरण की जिस राजनीति का प्रचार-प्रसार कियाI इसका परिणाम विकास की मुखय धारा से दूर देश के दलित समाज को उतपीड़न और अतय्चार के रूप में उ्ठ्रे के लिए बाधय होने के रूप में मिला , वही तुसषटकरण और पंथवाद ने देश में उन कट्र मुस्लमों को भी एक ऐसी नयी राह दिखाई , जिस राह ने देश में स्मप्रदायिकता को एवं मुस्लम समाज की दुर्दशा के अंधेरे में भटकने के लिए बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ीI देश के दलित एवं मुस्लम समाज में फैला आरिोश और असंतोष , कांग्ेस और उसके नेताओं की अदूरदर्शिता एवं गलत नीतियों का परिणाम कहा जा सकता है ।
परिवर्तन की प्रकिया प्रारमभ हुई 2014 में केंद्र में 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृति में पहली बार भाजपा ने जब पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई तो यह पराजित , हताश , निराश एवं हार से छटपटाते कांग्ेस , वामपंथियों एवं
अनय भाजपा विरोधी दलों के सीने पर सांप लोट गया । ्ितंत्रता के उपरांत ऐसा पहली बार हुआ , जब कांग्ेस विरोधी प्टटी ने केंद्र में अपनी दम पर सरकार बनाने में सफलता हासिल कीI राजनीति के रंगमंच पर अगर धय्र दे तो 70 िषयों के दौरान कांग्ेस कई बार केंद्रीय सत्् से दूर हुई , पर सत्् से दूर रहते हुए भी कांग्ेस ने देश की राजनीति को जोड़तोड़ करके जातिवादी क्ेत्रीय नेताओं को डरा-धमकाकर एवं उनहें भ्वमत करके अपनी इचछ्रुसार चलाया और राजनीतिक विरोधियों पर अपनी पकड़ बनाये रखी । नरेंद्र मोदी के नेतृति में जब भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला तो कांग्ेस और उसके सहयोगी असहज हो गए ।
कांग्ेस , वामपंथी और उनके सहयोगियों के असहाय होने का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि मोदी की जीत के बाद देश की राजनीति में पहली बार जाति , वंश , तुसषटकरण , स्मप्रदायिकता , भ्षट्चार जैसी िषयों पुरानी बीमारियों का अंत होना शुरू हो गया और देश की राजनीति में एक ऐसे मुद्े का जनम हुआ ,
18 vizSy 2023