में बड़ा साहब के जीवन और विचार के अनेकों पक् ऐसे हैं , जो आज भी अतयंत योगयता के साथ समाज का मार्गदर्शन करने का सामरयना रखते हैं । उनहोंने दलितों से आह््हन किया था कि वशवक्त बनों , संगव्ठत रहो तथा संघर्ष करो का नारा दिया था । यह मात्र एक नारा नहीं हैं , बसलक यह दलितों को उनकी सम्य् से मुक्त दिलाने का बीजमंत्र था ।
आदर्श समाज का प्रतीक है हिनदू धर्म धर्म के आधार पर भारतीय सं्कृवत और विशिषट जीवन शैली को समपूणना , मानव समाज में हमेशा एक आदर्श समाज के रूप में देखा गया । हिनदू सं्कृवत का आधार वह भारतीय जीवन-पद्धति है , जो प्रकृति प्रदत् है । यह प्रकृतिधर्मा इसलिए कहलाती है ्योंकि हिनदू धर्म प्राकृतिक मानकों पर आधारित सामाजिक वयि्र्ओं का सिद्धानत
है । हिनदू धर्म के उसके सम्त उपांग या लक्ण प्राकृतिक नियमों का अनुपालन करते हैं और सनातन मानवीय आधय्सतमक ऊर्जा को बचाए रखते हैं । हिनदू सं्कृवत के उतर्र के संघर्ष एवं प्रयास को आज देश में चाहे जिस दृसषट से देखा जाए , किनतु हिनदुओं के इस प्रयास के पीछे भी वि्ि कलय्ण का ही भाव निहित है । भारतीय समाज-संरचना में जाति एक विशिषट परिघटना के रूप में देखी जा सकती है , जिसका उद्भव हिनदू धर्म की वर्ण-वयि्र् से समबनद्ध है । इस वयि्र् के आधार पर हिनदू समाज को चार िणयों ' रि्ह्मण , क्वत्रय , वै्य एवं शूद्र ' में विभ्त किया गया और यह विभाजन कर्म के आधार पर होता था । इसके विपरीत मौजूदा जाति- वयि्र् में कर्म की प्रधानता को अलग कर जनम आधारित वयि्र् का रूप दे दिया गया ।
समयांतराल के साथ जनम पर आधारित जाति वयि्र् विषमता मूलक होती चली गयी और इसे जनम आधारित और वंशानुगत बना दिया गया ।
्ितंत्रता के बाद उममीद की जाती थी कि समाज से जाति वयि्र् का उनमूलन हो जायेगा , पर ऐसा नहीं हुआ और मौजूदा जाति वयि्र् का परिणाम उच् और निम्न जाति के रूप में किए गए हिनदू समाज के बंटवारे के रूप में देखा जा सकता है । इस बंटवारे के कारण जाति के रूप में जनम पर आधारित पहचानों को और मजबूत किया गया और इनके आधार पर सामुदायिक गोलबंदी की गयी । अ्िचछ एवं अपवित्र वयिसायों पर जीवनयापन करने वाली एवं निम्न समझी जाने वाली जातियों को ‘ दलित ’ श्ेणी के अनतगनात संगव्ठत करने का प्रयास भी
vizSy 2023 17