कलय्ण संबंधी क्ययों से प्रेरणा लेनी चाहिए । आज देश में राजयसभा और लोकसभा के कुल मिलाकर लगभग 800 सांसद हैं । पर उनमें से कोई एक भी राजा महेंद्र प्रताप या महाराजा बड़ौदा बनने का साहस नहीं रखता । यह सब आराम तलब हो चुके हैं । ्ि्मी श्द्ध्रंद जी महाराज जैसे महापुरुषों का अनुकरण करने की ओर तो यह आंख उ्ठ्कर तक नहीं देख सकते । इनकी राजनीतिक इचछ्शक्त केवल यहीं तक है कि वह किसी प्रकार हाथ उ्ठ्रे वाले सांसद बनकर लोकसभा या राजयसभा में जाकर बै्ठ जाएं ।
हम ‘ हाथ उ्ठ्रे वाले सांसद ’ उनहें इसलिए कह रहे हैं कि यह किसी राजनीतिक दल के नेता के तलवे चाटकर उससे किसी प्रकार उसकी प्टटी का टिकट लेकर संसद में पहुंचते हैं और वहां फिर अपने नेता को खुश करने के लिए उसके भाषण पर मेज थपथपाते हैं या फिर करतल धिवर से उसकी बातों में अपनी सहमति के ्िर मिलाते हैं । इनका चिंतन और इनकी सोच अपने नेता के चिंतन और सोच में इस
प्रकार लग लिपट जाती है कि उसे अलग करके देखना तक असंभव हो जाता है । इस प्रकार देश का वर्तमान लोकतांत्रिक ढांचा भी राजनीतिक गुलामों को जनम देने में सहायक हुआ है ।
हमारे सांसदों की ‘ यस- मैन ’ होने की प्रवृवत् है । जो केवल अपने नेता के लिए राजयसभा और लोकसभा में काम करते हुए दिखाई देते हैं । देश हित में काम करना उनके एजेंडा में कहीं दूर दूर तक ससममवलत नहीं है । इन जनप्रतिनिधियों को देश के विधान मंडलों में भेजकर हम केवल गुलामों को देश के राजनीतिक विधान मंडलों में भेज रहे हैं । यह सर्वमानय सतय है कि गुलामों से कभी कोई बड़् काम नहीं हो सकता ।
कांग्ेस ने कभी भी दलित से मुसलमान या ईसाई बने लोगों को फिर से हिंदू बनाने का काम नहीं किया । जो लोग हिंदू दलित से इ्ल्म या ईसाइयत में दीवक्त हो गए उनहें कांग्ेस ने जाने दिया । इस प्रकार दलितों को ही मिटाकर और उनहें विधमटी बन जाने देने की खुली छूट देकर कांग्ेस ने देश को तोड़रे की प्रवृवत् को भी बढ़्ि् दिया । इसके विपरीत ्ि्मी श्द्ध्रंद जी महाराज ने दलितों को आर्य समाज में लाकर उनहें सं्क्रित बनाने का कार्य किया । ऐसा करने के पीछे ्ि्मी जी महाराज का एक ही उद्े्य था कि जब वे आर्य समाज में । दीवक्त हो जाएंगे तो हिंदू समाज के लोग उनहें मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति देंगे । पर ऐसा हुआ नहीं । तब ्ि्मी श्द्ध्रंद जी ने बहुत दुखी होकर “ लीडर ” में 11 मई 1924 को लिखा था कि इसका मतलब यह है कि दलित िगयों का कोई भी आदमी जब तक हिंदू समाज और धर्म का परितय्ग नहीं करेगा तब तक अपनी सामाजिक अक्मताओं से छुटकारा नहीं पा सकता ।
अपने दलित भाइयों के साथ छुआछूत भेदभाव और सामाजिक अतय्चार करने वाले हिंदुओं को लत्ड़ते हुए ्ि्मी श्द्ध्रंद जी ने ‘ हिंदू संग्ठर ’ में ( 1924 ) लिखा था कि जो लोग अपने ही समाज के एक तिहाई लोगों को गुलाम बनाए बनाए हुए हैं और उनहें पैरों तले कुचल रहे हैं , उनहें विदेशियों द््रा किए गए
अतय्चारों के विरुद्ध शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है ।
्ि्मी जी महाराज ने मद्रास में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हिंदुओ ! अपने दलित कहे जाने वाले बंधुओं को मान समम्र देकर उनहें अपना अभिन्न अंग समझो । अ्पृ्यता का परितय्ग करो । यह पाप है और यह रोग तुमहें ले डूबेगा । तुम यदि आज इनहें नहीं अपनाओगे तो फिर एक समय ऐसा आएगा जब तुम इनहें अपने में मिलाना चाहोगे परंतु यह तुमह्रे निकट नहीं आएंगे ।
्ि्मी श्द्ध्रंद जी महाराज का उपरो्त कथन आज सतय सिद्ध हो रहा है । हिंदू ने अपनी परंपरागत मूर्खताओं को तय्गने का नाम नहीं लिया और राजनीति दलितों के प्रति पूर्णतया उदासीन बनी रही । उसका परिणाम यह हुआ कि दलित रूपी खेत पूरी तरह इ्ल्म और ईसाइयत को सौंप दिया गया । एक प्रकार से दलितों को इन दोनों विदेशी धर्मावलंबियों को पट्े पर दे दिया गया । अब पट्े पर दी गई चीज को फिर से वापस लेना हिंदू समाज के लिए पूर्णतया असंभव होता जा रहा है । अपने ही लोग अर्थात अपने ही समाज के दलित जब मुस्लम या ईसाई बनते हैं तो वे भारत के लोगों के प्रति और भारतीयता के प्रति बहुत ही अधिक दुर्भाव रखते देखे जाते हैं ।
यदि कांग्ेस समय रहते आर्य समाज के नेता ्ि्मी श्द्ध्रंद जी महाराज के परामर्श को ्िीकार कर लेती और अपनी पूर्ण राजनीतिक इचछ्शक्त का परिचय देते हुए समाज में दलितों के समम्र के लिए जमीन पर लड़्ई लड़ती , देश के राजनीतिक दल इन दलितों को अपने लिए वोट बैंक ना मानकर उनके कलय्ण के लिए कार्य करते और हिंदू समाज व राजनीति मिलकर इनहे इ्ल्म और ईसाइयत को पट्े पर ना देते तो आज देश का हिंदू समाज बहुत अधिक मजबूत होता । समय अभी भी है यदि अब भी हमने स्रवत परिस्रवतयों को संभाल लिया तो आज भी हम एक मजबूत भारत का निर्माण करने में सफल हो सकते हैं ।
( साभार ) vizSy 2023 11