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डॉ . अम्ेडकर के सवर्ण मार्गदर्शक मास्टर आत्ाराम अमृतसरी
डॉ . विवेक आर्य
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शत््दी के आरंभ में हमारे देश में न केवल आज़ादी के लिए संघर्ष हुआ अपितु सामाजिक सुधार के लिए भी बड़े- बड़े आनदोलन हुए । इन सभी सामाजिक आनद्लनों में एक था शिक्् का समान अधिकार । प्रवसद् समाज सुधारक ्ि्मी दयानंद द््रा अमर ग्नर सतय्र्थ प्रकाश में उदघोष किया गया कि राजा के पुत्र से लेकर एक गरीब वयस्त का बालक तक नगर से बाहर गुरुकुल में समान भोजन और अनय सुविधायों के साथ उचित शिक्् प्रापत करे एवं उसका वर्ण उसकी शिक्् प्रापत करने के प्च्त ही निर्धारित हो और जो अपनी संतान को शिक्् के लिए न भेजे , उसे राजदंड दिया जाये । इस प्रकार एक शुद्र से लेकर एक रि्ह्मण तक सभी के बालकों को समान
परिस्रयों में उचित शिक्् दिलवाना और उसे समाज का एक जिममेदार नागरिक बनाना शिक्् का मूल उद्े्य था ।
्ि्मी दयानंद के रि्ंवतकारी विचारों से प्रेरणा पाकर बड़ोदा नरेश शयाजी राव गायकवाड ने अपने राजय में दलितों के उद्धार का वर्चय किया । आर्यसमाज के ्ि्मी नितय्रंद जब बड़ोदा में प्रचार करने के लिए पधारे तो महाराज ने अपनी इचछ् ्ि्मी जो को बताई कि मुझे किसी ऐसे वयस्त की आि्यकता हैं जो शिक्् सुधार के कार्य को कर सके । पंडित गुरुदत विद्य्रटी जो ्ि्मी दयानंद के निधन के प्च्त नास्तक से आस्तक बन गए थे से प्रेरणा पाकर नये नये स््तक बने आतम्राम अमृतसरी ने अंग्ेजी सरकार की नौकरी न करके ्ितंत्र रूप से कार्य करने का वर्चय किया । ्ि्मी नितय्रंद के वरददेश पर अधय्पक की नौकरी
छोड़ कर उनहोंने बड़ोदा जाकर दलित विद्यार्थियों को शिक्् देने का वर्चय किया । एक प्की सरकारी नौकरी को छोड़कर गुजरात के गांव- गांव में दलितों के उद्धार के लिए धूल खाने का निर्णय ्ि्मी दयानंद के सच्् भ्त ही कर सकता था ।
आतम्राम जी बड़ोदा नरेश से मिले तो उनको दलित प््ठशालाओं को खोलने का विचार महाराज ने बताया और उनहें इन प््ठशालाओं का अधीक्क बना दिया गया । म््टर जी ्र्र तलाशने के लिए निकल पड़े । जैसे ही म््टर आतम्राम जी किसी भी ्र्र को पसंद करते तो दलित प््ठशाला का नाम सुनकर कोई भी किराये के लिए उसे नहीं देता । अंत में विवश होकर म््टर जी ने एक भूत बंगले में प््ठशाला ्र्वपत कर दी । गायकवाड महाराज ने कुछ समय के बाद अपने अधिकारी
12 vizSy 2023