April 2023_DA | Page 10

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नाम पर यदि मेरे देश में कुछ लोगों के साथ इस प्रकार का अनय्य हो रहा है तो यह उचित नहीं है । मंदिर के प्रमुख वयि्र्पक को जब उनकी ि््तविक जाति के बारे में ज््र हुआ तो उसने राजा से क्मा याचना की । परंतु राजा महेंद्र प्रताप भी अपने आप में बहुत उच् आदर्श वाले राजा थे । अब वह अपने संकलप से डिगने का नाम नहीं ले रहे थे । उनहोंने मंदिर के भगवान का दर्शन करने से यह कहकर मना कर दिया कि मैं ऐसे भगवान का दर्शन नहीं करूंगा जो जनम के कारण मनुषय का अपमान करता है ।
आजकल के कांग्ेस के नेता चाहे कितनी ही डींगें मार लें कि उनके नेता महातम् गांधी जी ने दलितों के उद्धार के लिए विशेष कार्य किया था । पर सच यह है कि दलित समाज का उद्धार करना कांग्ेस का मौलिक चिंतन नहीं था । महातम् गांधी भी अपने मौलिक चिंतन में अछूतों के प्रति किसी प्रकार से भी उदार नहीं थे । जब कोई वयस्त या कोई संग्ठर किसी उधारी मानसिकता या सोच या चिंतन के आधार पर कार्य करता है तो उसके उधारे चिंतन का कोई उललेखनीय प्रभाव दिखाई नहीं देता है ।
यही कारण रहा कि कांग्ेस के महातम् गांधी के दलित कलय्ण के क्ययों का कोई विशेष प्रभाव दिखाई नहीं दिया । हम कांग्ेस और उसके नेता महातम् गांधी के दलित कलय्ण संबंधी चिंतन को उधारा इसलिए कहते हैं कि कांग्ेस को दलितों के उद्धार के लिए प्रेरित करने वाले आर्य समाज के बड़े नेता महातम् मुंशीराम अर्थात ्ि्मी श्द्ध्रंद जी महाराज थे । जिनहोंने 1913 में दलितोद्धार सभा का ग्ठर किया था । अमृतसर के कांग्ेस अधिवेशन में 27 दिसंबर 1919 को उनहोंने अपने इस विषय को कांग्ेस के मंच से मुखय रूप से उ्ठ्या था और गांधी जी को इस बात के लिए प्रेरित किया था कि वे दलितों के उद्धार के लिए विशेष कार्य करें । यहीं से महातम् गांधी को ्ि्मी श्द्ध्रंद जी के माधयम से दलितों के लिए कुछ कार्य करने की प्रेरणा मिली । उनहोंने जो कुछ भी किया वह केवल समाज को दिखाने के लिए किया । कोई मौलिक योजना उनके पास ऐसी नहीं थी जिससे दलितों का
कलय्ण हो सके या वह उनहें समाज में समम्रजनक ्र्र दिला सकें ।
्ि्मी श्द्ध्रंद जी महाराज ने कांग्ेस के कलकत्् व नागपुर अधिवेशन ( 1920 ) में भी ससममवलत होकर दलितों के उद्धार के क्यनारिम को प्र्तुत किया था । उनहोंने 1921 में दिलली के हिंदुओं को इस बात के लिए प्रेरित किया था कि वह दलित वर्ग के लोग लोगों को अपने कुंए से पानी भरने दें । जिस समय दलितों के हित में कोई बोलने का साहस तक नहीं कर सकता था उस समय हिंदुओं को इस प्रकार की प्रेरणा देना अपने आप में बहुत ही साहसिक पहल थी । जिसे कोई ्ि्मी श्द्ध्रंद ही कर सकता था । उनहोंने इस कार्य को सहर्ष अपने हाथों में लिया । इससे ्ि्मी जी के साहसिक नेतृति , दृढ़ इचछ्शक्त और दलितों के प्रति हृदय से काम करने की प्रबल इचछ् शक्त का पता चलता है ।
हमें यह बात धय्र रखनी चाहिए कि जब जब हिंदू समाज को संगव्ठत करने के प्रयास आर्य समाज या किसी भी हिंदूवादी नेता की ओर
से किए गए हैं तब तब मुसलमानों ने उसमें अड़ंगा डालने का कार्य किया है । जिस समय ्ि्मी जी महाराज दलितों को गले लगाकर उनहें हिंदू समाज की एक प्रमुख इकाई के रूप में जोड़रे का साहसिक कार्य कर रहे थे उस समय भी मुस्लम नेताओं को उनका यह कार्य पसंद नहीं आ रहा था । यही कारण था कि ्ि्मी जी महाराज के इस प्रकार के क्यनारिम में कांग्ेस के मुसलमान नेताओं ने बाधा डालने का प्रयास किया था । जिसमें मोहममद मौलाना अली का नाम विशेष उललेखनीय है । जिसने लगभग 7 करोड दलितों को हिंदू मुस्लम में आधे आधे बांटने की बात भी कही थी । मौलाना अली के इस प्रकार के क्ययों से क्ु्ध होकर ्ि्मी जी ने 9 सितंबर 1921 को गांधी जी को पत्र लिखा था । जिसमें उनहोंने कहा था कि मैं नहीं समझता कि इन तथाकथित अछूत भाइयों के सहयोग के बिना जो ्िराजय हमें मिलेगा , वह भारत र्षट्र के लिए किसी भी प्रकार से हितकारी होगा ।
आज के राजनीतिक दलों को बड़ौदा नरेश और आर्य राजा महेंद्र प्रताप के दलितों के
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