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पिता की समपतत् पर से अपना हक छोड़ने के अला्वा एक महिला के पास दूसरा ककोई त्वकलप ही नहीं रह जाता है । इसमें भी यदि ककोई सत्री अपने अधिकारों कको हासिल करने के लिए ककोटटि — कचहरी का सहारा लेती है तको इसमें सामाजिक सहयकोग प्ा्त नहीं हकोता , अलबत्ा उसे जग — हंसाई का ही सामना करना पड़ता है । यहां तक कि कई मामलों में तको अपने हक के लिए कानूनी िड़ाई की राह अपखतयार करने ्वाली महिला कको मायके में सामाजिक बतह्कार भी झेलना पड़ जाता है । जबकि आदर्श पसथति तको यह हकोती कि घर में यदि एक बेटी और एक बहू , दकोनों कको ही अपना पूर्ण अधिकार प्ा्त हको , तब सचमतुच महिलाओं का आर्थिक सतर ऊँचा हकोगा और ्वह अपने फैसले लेने के लिए भी स्वतंत्रता का अनतुभ्व कर सकेगी ।
सम्वति पर अधिकार से वंचित महिलाएं
बीते दिन लखनऊ में आजादी के अममृत महकोत्सव के काय्सकम में प्िानमंत्री नरेनद्र मकोदी ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक रतुदमृढ पहल की घकोरणा की जिसके तहत प्देश के 75 जिलों के 75000 लाभाथियों कको प्िानमंत्री आ्वास यकोजना के तहत दिये गये घरों का मालकिना हक औरतों के नाम पर ही किए जाने की बात कही गई । इस घकोरणा के अर्थ बहतुत गहरे हैं । ्वास्तव में देखें तको समाज का तशतक्त ्वग्स हको या फिर अतशतक्त तबका , किसी भी ्वग्स के िकोग सामानय पसथति में औरतों के नाम अपनी समपतत् नहीं करना चाहते । उदाहरण के तौर पर राजसथान के आंकड़ों कको देखें तको अप्ैि से सितमबर 2021 के बीच प्देश में 2471 करकोि की अचल समपतत् का कय — त्वकय हतुआ जिसमें महिलाओं के नाम पर खरीदी गई समपतत् महज 16.5 प्तिशत थी । यह पसथति तब है जबकि सटामप डयूटी पर औरतों कको छूट हासिल है । महिलाओं का समपतत् पर अधिकार उनहें आर्थिक रुप से मजबूत बनाता है और उनहें अपने त्वचारों कको वयक्त करने की आजादी के साथ ही निर्णय लेने का आत्मविश्वास जगाने में महत्वपूर्ण
भूमिका अदा करता है । लेकिन दतुभा्सग्यवश समाज में वया्त लैंगिक आधार पर भेदभा्वपूर्ण मापद्ि महिलाओं और समपतत् के बीच मजबूत दी्वार बनकर अड़ा — खड़ा है । इसके अला्वा समपतत् पर महिलाओं का अधिकार नहीं हको पाने की कई अनय ्वजहों में नीतियों का आधे — अधूरे मान से तकयान्वयन , नियम — कानूनों के बारे में िकोगों की कम जानकारी और कई तरह का सामाजिक दबा्व भी शामिल है ।
पितृसतिात्मक ढ़ांचा है बडी बाधा
महिला सशक्तिकरण की राह में एक अनय बड़ी बाधा हमारा पितमृरत्ातमक समाजिक ढ़ांचा भी है जको महिलाओं कको समपति का अधिकारी नहीं मानता बपलक उनहें परर्वार में पराया धन ही माना जाता है । बेटियों कको पराया धन मानने की यह पतुरातनपंथी रकोच औरतों कको पतुरुषों के मतुकाबले बराबरी पर नहीं आने देती बपलक दकोयम दजवे पर ही आंकती है । भारत में त्व्वाहित
महिलाओं के 22 प्तिशत की ततुिना में 66 प्तिशत त्व्वाहित पतुरुषों कको संपतत् का मालिकाना अधिकार प्ा्त है । भारत दतुतनया के उन चतुतनंदा देशों में से एक है जहां सं्वैधानिक कानूनों के बा्वजूद भी महिलाएं अपने अधिकारों से ्वंचित हैं । इसका मतुखय कारण सामाजिक दबा्व और पारर्वारिक दबा्व है । जिसके कारण महिलाए स्वयं ही अपने अधिकारों कको छोड़ देती हैं । सामाजिक और मानसिक दबाब की पराका्ठा का सतर दको माह पू्व्स राजयसथान मे हतुई घटना से लगाया जा सकता है जहां रक्ाबंधन पर बहनों से भाई के लिए पिता की संपतत् पर अपने अधिकारों का स्वेचछा से तयाग करने की अपील तहसीलदार कार्यालय से जारी प्ेर नकोट के माधयम से की गई ।
सियासत में महिलाओ ंको हक की तलार् भारत में राजनीति के दमृप्टककोण से महिलाओं
की पसथति कको देखा जाए तको आज भी उनहें
42 दलित आं दोलन पत्रिका uoacj 2021