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त्विायिका में हर सतर पर आरक्ण का लाभ देने पर राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति नहीं बन पाई है । कहने कको तको हर दल महिलाओं कको संसद में आरक्ण देने के पक् में है लेकिन इस घकोरणा में ईमानदारी कम और दिखा्वा ही अधिक रहता है । यही ्वजह है कि महिला आरक्ण त्विेयक आज भी संसद की दहलीज पर धूल फांक रहा है । राजनीति में महिलाओं कको झांसा देने की परंपरा आजादी के बाद गठित पहली संसद से ही शतुरू हको गई थी । आजादी के बाद पहली सरकार पंडित ज्वाहरलाल नेहरू की थी जिसमें 20 केनद्रीय मंत्रालयों में से के्वि एक स्वास्थय मंत्रालय ही अममृत कौर कको मिला । बाकी सभी पदों पर पतुरुषों की ही नियतुपक्त हतुई । इसके बाद लाल बहादतुर शासत्री की सरकार में महिलाओं कको एक भी मंत्रालय नही दिया गया । इंदिरा गांधी के नेतमृत्व में गठित देश की पांच्वी , छठी ्व न्वीं कैबिनेट मे एक भी महिला केनद्रीय मंत्री नही थी । राजी्व गांधी के मंत्रिमंडल में भी
के्वि एक महिला मकोहसिन किद्वई कको ही शामिल किया गया था । इस मामले में मौजूदा मकोदी सरकार मे महिलाओं की पसथति में रतुिार हतुआ है । 2014 में मकोदी सरकार के कार्यकाल में कुल नौ महिला सांसदको कको कैबिनेट और राजयमंत्री बनाया गया । 16्वीं िकोकसभा में कुल 61 महिला उममीद्वार जीती हैं । इस बार प्िानमंत्री मकोदी ने अपनी सरकार में गयारह महिलाओं कको मंत्री बनाया है जको कि तनपशचत तौर पर एक बडी उपलब्ि है ।
राजनीतिक तौर पर जागरूक होने की जरूरत
बेशक मौजूदा मकोदी सरकार ने महिलाओं पर बहतुत अधिक भरकोरा जताया है और पहले कार्यकाल में त्वदेश और मान्व संधासन सरीखे महतपूण्स त्वभागों की जिममेदारी महिलाओं कको देने के बाद इस दूसरे कार्यकाल में भी वित्त सरीखा सबसे महत्वपूर्ण त्वभाग निर्मला सीतारमण के रूप में एक महिला के ह्वाले करने में उनहोंने हिचक नहीं दिखाई है । लेकिन फिर भी इसे यह मान लेना गलत हकोगा कि महिलाओं कको उनका पूरा अधिकार मिल गया है । इसे धयान में रखने के जरूरत है कि देश की आधी आबादी महिलाओं की है और ्वे बढ़ — चढ़कर मतदान के अधिकार का उपयकोग भी कर रही हैं । चतुना्व दर चतुना्व महिला मतदाताओ की संखया में लगातार वृद्धि हतुई है और 1980 मे महिला मतदाताओं की संखया 51 प्तिशत थी जबकि 2014 में 66 प्तिशत महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इसतेमाल किया । लेकिन इस पसथति कको बहतुत बेहतर नहीं माना जा सकता क्योंकि यह आंकडा अभी भी कम है । साथ ही महिला किस पाटटी कको ्वकोट देंगी यह फैसला आज भी अधिकांशत : घर के पतुरुषों द्ारा ही किया जाता है और ्वह उसी पाटटी कको ्वकोट देने के लिए बाधय हको जाती है । हालांकि गुप्त मतदान की व्यवसथा के कारण महिलाएं जिसे चाहें उसे ्वकोट दे सकती हैं लेकिन कहीं ना कहीं राजनीतिक तौर पर महिलाओं कको अभी अधिक जागरूक हकोने की
जरूरत है ्वना्स मतदान के अपने अधिकार का पूरा सदतुपयकोग ्वे कैसे कर पाएंगी ? राजनीतिक क्ेत्र में महिला सशक्तिकरण की अ्विारणा कको किस हद तक जमीनी सतर पर साकार किया जा सका है इसके उदाहरण के रूप में हम ग्ाम पंचायतों कको देखते हैं तको पाते हैं कि महिलाएं मतुतखया और सरपंच तको बन जाती हैं परंततु उसके कामकाज घर के पतुरुषों द्ारा संपादित किए जाते हैं । महिला के्वि नाम मात्र की जन — प्तिनिधि बनकर रह जाती है जबकि अधिकारों और हनक का इसतेमाल मतुतखयापति और सरपंचपति करते देखे जाते हैं ।
सशक्तिकरण के लिए बनाना होगा वातावरण
यदि हम सही मायने में महिला सशक्तिकरण करना चाहते है तको हमे सामाजिक ्व मानसिक ्वाता्वरण बनाने की जरूरत है जिसमें महिलाओं की आधी जनसंखया कको अपना पूरा हक हासिल करने के लिए अलग से रकोचना या कुछ करना ना पड़े । यदि सभी माता पिता अपनी िड़तकयों कको खतुद ही अपनी समपति में से उनका हक देना आरंभ कर दें और इसे परंपरा के तौर पर समाज द्ारा अपना लिया जाए तको लैंगिक सतर पर आर्थिक त्वरमता धीरे धीरे स्वयं ही समा्त हको जाएगी । तब महिलाएं अपने अधिकारों का उपयकोग कर एक नए और बेहतर समाज की नीं्व रख पाएंगी जिसमे लिंग के आधार पर समाज का त्वकास प्भात्वत ्व संचालित नहीं हकोगा बपलक समाज का हर ्वग्स रतुरतक्त ्व आतमतनभ्सर हकोगा । इस दिशा में एक पहल ' बेटी बचाओ बेटी पढाओ ' अभियान के रूप में अ्वशय हतुई है लेकिन अभी इस दिशा में बहतुत कुछ करने की आ्वशयकता है । भारत कको लैंगिक भेदभा्व रहित देश बनाने के लिए सरकार और समाज के साथ ही परर्वार और वयपक्त कको भी अपनी भूमिका ईमानदारी से निभानी हकोगी और इस दिशा में जको प्यास हको रहे हैं उसकी गति बेशक धीमी है लेकिन दिशा एकदम सही है । �
uoacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 43