fjiksVZ
स्ाटता फोन की अनिवार्यता बनी परेर्ानी
अ़धययन में यह भी पाया गया कि इन इलाकों मे जको परर्वार अपने बच्ों कको निजी सकूिों में पढ़ा रहे थे उनमें से एक चौथाई परर्वारों ने अपने बच्ों का सरकारी सकूि में दाखिला कर्वा दिया । ऐसा उनहें या तको आर्थिक दिक्कतों की ्वजह से करना पड़ा या फिर ऐसा करने की बड़ी ्वजह बनी कई परर्वारों के पास समाटटि रकोन उपि्ि नहीं हकोना । ऐसे में ऑनलाइन शिक्ा का दायरा सीमित हकोना स्वाभात्वक ही था । खास तौर से ग्ामीण इलाकों में पाया गया की करीब 50 फीसदी परर्वारों के पास समा्सटरकोन नहीं था । यहां तक कि जिन परर्वारों में समा्सटरकोन था ऐसे ग्ामीण परर्वारों में भी तकरीबन 15 फीसदी बच्े ही पढा़ई में इसका इसतेमाल कर पाए जबकि शेष परर्वारों में बच्ों कको समाटटि रकोन का इसतेमाल करने की इजाजत नहीं मिली क्योंकि उस रकोन का इसतेमाल घर के बड़े करते थे । काम पर जाते समय परर्वार के मतुतखया कको रकोन साथ में लेकर जाना पड़ता था और ऐसे में समाटटि रकोन बच्ों कको नहीं मिल पाता था जिसकी ्वजह से घर में समाटटि रकोन हकोने के बा्वजूद बच्ों कको ऑनलाइन कक्ाओं का लाभ नहीं मिल सका । ऐसा भी नहीं है कि यह तस्वीर सिर्फ ग्ामीण इलाकों में देखी गई है बपलक
अधययन में पाया गया कि शहरी इलाकों में भी समाटटि रकोन की अतन्वार्यता के कारण बड़ी तादाद में बच्े ऑनलाइन कक्ाओं का लाभ नहीं उठा सके । हालांकि गां्वों की अपेक्ा शहरों में ककोरकोना काल में शिक्ा से ्वंचित रहे बच्ों की तादाद कम रही और आंकड़ों के मतुताबिक जहां एक ओर ग्ामीण इलाकों में नियमित ऑनलाइन शिक्ा पाने ्वाले बच्ों की संखया सिर्फ आठ फीसदी ही रही ्वहीं शहरी इलाकों में यह संखया तकरीबन 24 के आसपास पाई गई । लेकिन चमकीले और तड़क — भड़क ्वाले शहरों का एक सयाह सच्ाई यह भी सामने आई है कि यहां 100 में से 76 बच्े नियमित रूप से ऑनलाइन पढाई नहीं कर पाए । अलबत्ा ग्ामीण इलाकों में समाटटि रकोन ्वाले घरों के सिर्फ 15 फीसदी बच्े नियमित ऑनलाइन पढाई कर पाए जबकि शहरों में यह संखया 31 प्तिशत रही ।
त्ासदी की सबसे बडी मार कमजोर वर्ग पर
स्वाभात्वक तौर पर कुल मिलाकर इस पसथति का असर बच्ों की लिखने और पढने की क्मता पर पड़ा है । सर्वो रिपकोटटि के मतुताबिक शहरी इलाकों में 65 फीसदी और ग्ामीण इलाकों में 70 फीसदी अभिभा्वकों कको लगता है कि ककोरकोना काल में उनके बच्ों के लिखने पढ़ने की क्मता में गिरा्वट आई है । त्वपदा की बड़ी मार झेलने
के लिए मजबूर हतुए समाज के कमजकोर तबके के िकोग अपने बच्ों के भविष्य पर इसका असर पड़ने कको लेकर बेहद चिंतित हैं । यही ्वजह है कि ग्ामीण और शहरी दकोनों ही इलाकों में 90 फीसदी से जयादा गरीब और रतुत्विात्वहीन अभिभा्वक चाहते हैं कि अब सकूि प्ाथमिक सतर में भी खकोिे जाऐं , लेकिन कई राजयों में मधयम ्वग्स के परर्वार बच्ों कको सकूि भेजने में डर रहे हैं । भारत में अभी तक 18 साल से कम उम्र के बच्ों के लिए ककोत्वि 19 के खिलाफ टीकाकरण शतुरू नही हको पाया है । ऐसे में बच्ों कको सकूि भेजने कको लेकर अभिभा्वकों के एक बड़े ्वग्स में दिख रहे असमंजस कको सिरे से गलत भी नहीं कहा जा सकता । लेकिन इस सबके बीच ताजा सर्वे की जको रिपकोटटि सामने आई है उससे सप्ट है कि ऑनलाइन पढ़ाई से बच्ों का भला कम हतुआ और पढ़ाई की क्ति अधिक हतुई है । खास तौर से समा्सटरकोन के अभा्व में ्वचतु्सअल कक्ाएं प्भात्वत हतुई हैं । रिपकोटटि बताती है कि तकरीबन आठ फीसदी दलित आतद्वासी समतुदायों की अगली पीढ़ी ककोरकोना की आपदा का शिक्ा व्यवसथा पर पड़े असर से सीधे तौर पर बतुरी तरह प्भात्वत हतुई है । उलिेखनीय है कि यह सर्वे चर्चित अर्थशासत्री जयां द्रेज की अगतु्वाई में रीतिका और शकोिाथटी त्वपतुि पैकरा की टीम ने 15 राजयों और केंद्र शासित क्ेत्रों में जमीन पर जाकर और िकोगों से बातचीत करके किया है । इस रिपकोटटि में यह सप्ट हको गया है कि ककोरकोना महामारी के कारण उतपन् पररपसथतियों की चतुनौतियों ने नौनिहालों की एक पूरी पीढ़ी के भविष्य कको संकट में डाल दिया है । हालांकि ऐसी रिपकोटटि सामने आने की आशंका पहले से ही थी क्योंकि यह स्वाभात्वक तथ्य है कि ककोई भी महामारी हमेशा कमजकोर ्वग्स कको ही सबसे अधिक नतुकसान पहतुंचाती है । ककोरकोना महामारी भी इसका अप्वाद नहीं है और इस कालखंड में भी ऐसा ही हतुआ जको किसी त्रासदी से कम नहीं है । यह कहना मुश्किल है कि दलित आतद्वासी समाज के बच्ों कको हतुए नतुकसान की भरपाई हको भी पाएगी या नहीं । �
40 दलित आं दोलन पत्रिका uoacj 2021