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दलित गोलबंदी की राजनीति

फिर सरे आता दिख रहा दलित राजनीति का दौर

पिछले दिनों मायावती के नेतृत्व में बहुजन राजनीति का प्रभाव काफी कमजोर हुआ है । ऐसे में , फिर दलित गोलबंदी की राजनीति उत्तर भारत में बहुजन राजनीति के उभार के पूर्व के ढररे पर लौटती दिख रही है । आज फिर तवदभन् राष्ट्रीय दलों में दलित नेताओं को महत्व मिलना , उस महत्व का राष्ट्रीय विमर्श में महत्वपूर्ण होकर उभरना इस बात का सूचक है ।
बद्री नारायण
लित गकोिबंदी की राजनीति का

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स्वरूप फिर नया मकोड़ ले रहा है ।
1990 का दशक एक प्कार से अपसमताओं के उभार का दौर था । इसी दशक में उसमें स्वायत् दलित राजनीति का नारा देते हतुए पंजाब से उभरे रामदसिया सिख समतुदाय से जतुड़े कांशीराम ने दलितों में दलितों की अपनी राजनीति की आकांक्ा त्वकसित की थी । उनहोंने तब दलित-बहतुजनों की राजनीतिक पाटटी के रूप में बहतुजन समाज पाटटी का गठन किया था । उनके और माया्वती के नेतमृत्व में दलित राजनीति लगभग दको दशकों तक आकामक रूप से एक नया मकोड़ लेकर न सिर्फ उत्र प्देश में , बपलक देश की राजनीति में भी प्भा्वी बनी रही । उस ्वक्त दूसरे राजनीतिक दलों में भी दलित नेता तको रहे , पर उनहें दलित-बहतुजन राजनीति में जयादा महत्व नहीं मिल सका । पिछले दिनों माया्वती के नेतमृत्व में बहतुजन राजनीति का प्भा्व काफी कमजकोर हतुआ है । ऐसे में , फिर दलित गकोिबंदी की राजनीति उत्र भारत में बहतुजन राजनीति के उभार के पू्व्स के ढरवे पर लौटती दिख रही है । आज फिर विभिन्न रा्ट्ीय दलों में दलित नेताओं कको महत्व मिलना , उस महत्व का रा्ट्ीय त्वमर्श में महत्वपूर्ण हकोकर उभरना इस बात का सूचक है ।
अपने को दोहरा रहा इतिहास
अभी हाल ही में कांग्ेर पाटटी ने पंजाब में
रामदसिया सिख समतुदाय , जको प्ाय : दलित समाज से जतुड़ा समतुदाय है , के चरणजीत सिंह चन्ी कको मतुखयमंत्री बनाया है । ्वहीं भाजपा ने भी उत्र प्देश के चतुना्व के मद्ेनजर जको चतुना्व संचालन की शीर्ष टीम बनाई है , उसमें अनय जातियों के साथ-साथ बेबी रानी मौर्य कको , जको दलित समतुदाय से जतुड़ी हैं , महत्वपूर्ण सथान दिया है । यहां
इतिहास अपने कको दकोहरा रहा है । स्वायत् दलित राजनीति की जगह ‘ सबकी राजनीति के बीच दलित राजनीति ’ का दौर फिर से आता दिख रहा है । जनतंत्र का खेल निराला है । यहां सबकको कभी न कभी सबकी जरूरत पड़ती है । दलित कको र्वण्स की , र्वण्स कको दलित की , पिछड़ों कको दलित की , दलित कको पिछड़ों की जरूरत
32 दलित आं दोलन पत्रिका uoacj 2021