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के खतरनाक करॉकटेल की सबसे भयानक मार जिन मेहनतकश वर्गों , ्वंचितों पर पड़ रही है , उसकी त्वराट बहतुरंखया दलित-आतद्वासी समतुदाय की ही है । ब्ाह्मण्वाद के पतुनरुतथान के दौर में उनके ऊपर हमले और सामाजिक उतपीड़न कई गतुना बढ़ गया है । रा्ट्ीय सतर पर देखें तको दलित महिलाओं , बेटियों के ऊपर यौन हमलों की तको जैसे बाढ़ आ गयी है । ऐसे सारे मामलों में राजय मशीनरी बिना किसी अप्वाद दबंगों के पक् में खड़ी हकोती है । दूसरी ओर अर्थव्यवसथा के कारपकोरेटीकरण के चलते रकोजगार के अ्वरर , सरकारी नौकरियां , आरक्ण सब पर ति्वार लटकती दिख रही है , जको जमीन-जायदाद से ्वंचित दलितों के लिए सशक्तीकरण , जी्वन मे बेहतरी और यहां तक
कि आजीत्वका का एकमात्र साधन रहा है । अंधाितुंध निजीकरण के दौर में बेहद महंगी हकोती गतुण्वत्ापूर्ण शिक्ा , स्वास्थय से्वाएं उनकी पहतुँच से बाहर हकोती जा रही हैं ।
हाशर्ए पर गुम होते वास्तविक मुद्े
हाल ही में मजदूर किसान मंच ने राजधानी दिलिी पसथत करॉपनसटट्ूशन क्लब में एक कन्वेंशन करके यह मांग की कि " ग्ामसभा की ऊसर , परती , मठ ्व ट्सट की जमीन भूमिहीन गरीबों में त्वतरित की जाए । सभी गरीबों और आ्वारत्वहीनों कको आ्वासीय जमीन दी जाए । जंगल की अतिरिक्त ( खाली ) भूमि कको गरीबों कको आ्वंटित किया जाए और
अनतुरूचित जनजाति तथा अनय परमपरागत ्वन तन्वासी ( ्वनाधिकारों की मानयता ) कानून 2006 के तहत आतद्वासियों और अनय परमपरागत ्वन तन्वासियों के अधिकार की रक्ा की जाए ।" दलितों , आतद्वासियों की भूमिहीनता उनकी बहतुआयामी शकोरण , अपमान और संकटों के मूल में है । िरॉ . आंबेडकर ने कभी कहा था , " मेरे ग्ामीण भाइयों पर इसलिए अतयाचार हकोते हैं क्योंकि उनके पास जमीन नहीं है । इसलिए अब मैं उनके लिए जमीन के लिए लड़ूंगा ।” कम्युनिसट पार्टियों तथा नक्सल आंदकोिन ने एक दौर में इसे प्मतुख प्श्न बनाया और अनेक बहादतुराना लड़ाइयां लड़ी । िरॉ . आंबेडकर द्ारा सथातपत रिपब्िकन पाटटी ने भी इसकको लेकर आंदकोिन किया । पर आज यह प्श्न चर्चा से ही गायब हको गया है , बसपा समेत ककोई मतुखयिारा-दल इसे मतुद्ा बनाने कको तैयार नहीं है ।
दलितों का हित सववोपरि रखने की जरूरत
भारतीय समाज के आखिरी पायदान पर खड़ी देश की लगभग चौथाई आबादी- जको दरअसल हमारा त्वराट उतपादक मेहनतकश ्वग्स है- के सममान , आजीत्वका , शिक्ा-स्वास्थय-मान्व त्वकास की गारंटी देश के आितुतनक त्वकास की पू्व्स शर्त है और हमारे िकोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्ा है । कारपकोरेट फासी्वाद और सामप्दायिकता के खिलाफ िकोकतनत्र की लड़ाई में दलित-आतद्वासी प्श्न कको गमभीरता से सम्बोधित करना हकोगा , ्वे उस लड़ाई की प्मतुख ताकत हैं और उनकी मतुपक्त इस लड़ाई का सबसे बड़ा अभी्ट है । दूसरी ओर जिन दलों ने ब्ाह्मण्वाद और न्वउदार्वाद के आगे घतुटने टेक दिए हैं , ्वे दलित-आतद्वासी हितों की रक्ा नहीं कर सकते । इस हकीकत कको झतुठलाया नहीं जा सकता है कि आगामी चतुना्वों में दलित- आतद्वासी एजेंडा , उनके र्वालों-सरकोकारों , समसयाओं और चिंताओं कको मजबूती से आगे बढ़ा कर ही सियासी सफलता की राह पर आगे बढ़ा जा सकता है । �
uoacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 31