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पड़ती रहती है । कहने का तातपय्स है कि यह जनतंत्र की ही शक्ति है कि ्वह समाज में सबकको सबकी जरूरत का एहसास दिलाकर एक-दूसरे से जकोिे़ रखता है । एक गां्व में पिछले दिनों राजनीति पर बात करते हतुए एक वृद्ध ने हमसे ठीक ही कहा था , समाज और राजनीति , दकोनों धीमी आंच पर खिचड़ी की तरह पकते रहते हैं , जरूरत हकोती है बस ठीक मात्रा में चा्वि-दाल कको मिलाने की । जनतंत्र हमारी राजनीति में विभिन्न सामाजिक समूहों के ऐसे ही सामाजिक संयकोजन की जरूरत का एहसास कराता रहता है ।
दलित चेहरों का महत्व बढ़ना स्ाभाविक
प्ाय : कहा जाता है कि भारतीय राजनीति में दलित नेताओं के महत्व का बढ़ना मात्र प्तीकातमक है । अगर ऐसा है भी , तब भी मेरा
मानना है कि हर प्तीकातमकता धीरे-धीरे अपनी ठकोर जगह खतुद ही बना लेती है । प्तीकातमक हिसरेदारी धीरे-धीरे ठकोर हिसरेदारी में बदल जाती है । यह तय है कि कांग्ेर अपने दलित आधार की ्वापसी चाहती है । भारतीय राजनीति में बसपा के उभार के पू्व्स दलित समूह का एक बड़ा भाग कांग्ेर का आधार ्वकोट रहा है । इधर जब बसपा और माया्वती का कमजकोर हकोना जारी है , तब कांग्ेर न के्वि पंजाब में , बपलक पूरे देश में ही दलित आधार मत में पैठने की ककोतशश कर रही है । भाजपा भी पिछले दिनों लगातार दलित समूहों में प्भा्वी हकोती गई है । ऐसे में , चतुना्व के ्वक्त दलित चेहरों के महत्व का बढ़ना स्वाभात्वक है ।
पंजाब में रामदसिया बनाम वाल्ीनक
पंजाब में कांग्ेर चरणजीत सिंह चन्ी जैसे दलित चेहरे कको मतुखयमंत्री बनाकर दको तरह के लाभ की अपेक्ा कर रही है- एक , पंजाब में रामदसिया सिख समतुदाय में अपने असर कको सशक्त करना ; दूसरा , पूरे देश की दलित बिरादरी कको राजनीति में उनकी पया्स्त हिसरेदारी देने का संदेश देना । हालांकि पंजाब की राजनीति में कांग्ेर के लिए यह शायद ही बहतुत लाभ का सौदा हको । पंजाब की दलित राजनीति में दको दलित समूह आस-पास की संखयाबल ्वाली जातियां हैं और इन दकोनों में आगे बढ़ने की राजनीतिक ्व जनतांत्रिक प्तिद्ंतद्ता भी चलती रहती है । दकोनों की राजनीतिक पसथति एक-दूसरे से टकराती रहती है । ऐसे में , रामदसिया सिख जको प्ाय : एक त्वशेष सामाजिक समतुदाय से जतुड़े हैं और पहले से ठीक-ठाक संखया में कांग्ेर से जतुड़े रहे हैं , की प्तिद्ंतद्ता में ्वालमीतक समतुदाय कांग्ेर के त्वपक् में खड़े दलों , जैसे अकाली गठबंधन , भाजपा , आम आदमी पाटटी में से किसी की तरफ भी झतुक सकते हैं ।
यूपी में भाजपा की दलितों में मजबूत पैठ पंजाब के बाद उत्र प्देश में भी यह जाट्व
समतुदाय दलितों का प्भा्वी समतुदाय है । किंततु माया्वती जको इसी जाति की अपसमता से जतुड़ी हैं , का अभी तक इस समूह में गहरा आधार है । उनसे इस समूह के जको िकोग अलग भी होंगे , ्वे उत्र प्देश के संदर्भ में न सिर्फ कांग्ेर , ्वरन भाजपा , समाज्वादी पाटटी , चंद्रशेखर आजाद के नेतमृत्व ्वाली आजाद समाज पाटटी की तरफ भी जा सकते हैं । भाजपा अपनी त्वकास यकोजनाओं , सामाजिक कलयाण के कायषों , राजनीतिक-सांस्कृतिक अपसमता की पतुप्ट जैसे अनेक कायषों से दलित समूहों , पिछड़ों और ्वंचितों में अपना आधार मजबूत करने की एक बड़ी यकोजना पर काम कर रही है । दलित समूह से आए नेताओं की भागीदारी उसी यकोजना का एक हिसरा है । इस बार भाजपा गैर-जाट्व दलित समूहों के साथ-साथ जाट्व समूह में भी अपना असर बढ़ाना चाहती है । इसलिए न के्वि बेबी रानी मौर्य , ्वरन इस समूह के ऐसे अनय नेता भी आने ्वाले दिनों में उत्र प्देश में भाजपा की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते दिख सकते हैं ।
राष्टीय पार्टियों में दलितों की भागीदारी र्ुभ संके त
भारत में दलित राजनीति ‘ उत्र बहतुजन ( बहतुजन समाज पाटटी ) राजनीति ’ के दौर में पहतुंच गई है , जिसमें दलितों की स्वायत् राजनीति की संभा्वना कमजकोर हकोगी और रा्ट्ीय पार्टियों में उनकी भागीदारी की राजनीति मजबूत हकोती जाएगी । बहतुत संभ्व है , यह भागीदारी अपने दीर्घकालिक परिणाम में मात्र प्तीकातमक न रहकर ठकोर परिणामों में भी बदले । देखना यह है कि यह प्तकया उनके भीतर न के्वि अपने ही समूह से असंपमृक्त एक शपक्त्वान ्व कुलीन ्वग्स का त्वकास करने तक सीमित हकोकर न रह जाए , ्वरन यह राजनीतिक भागीदारी अंतत : इन सामाजिक समूहों के त्वकास की परियकोजना से गहरे जतुड़े । दलित और सीमांत समूहों कको शपक्त्वान बनाने के लिए यह जरूरी है और ऐसी ही आकांक्ा बाबा साहेब आंबेडकर ने बार-बार की थी । �
uoacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 33