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32 फीसदी दलित आबादी कको चरणजीत सिंह चन्ी के सहारे एकजतुट कर अपने पाले में लाने की ककोतशश की सफलता संदिगि ही है । अव्वल तको इसकी सबसे बड़ी ्वजह पंजाब की दलित आबादी में ्वापलमकी , अधर्म मू्वमेंट या रत्वदासी , कबीरपंथी और मजहबी सिख जैसे दर्जनों दलित
गतुटों के बीच दूरियों का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि आपस में रकोटी-बेटी का रिशता रखना भी इनके लिए किसी अपराध से कम नहीं है । साथ ही पंजाब में दलित के्वि जातिगत नहीं बपलक धार्मिक और राजनीतिक आधार पर भी बंटे हतुए हैं । चन्ी मूल रूप से रामदसिया समतुदाय से आते हैं और ्वास्तविक तौर पर धर्मांतरित इसाई हैं । ऐसे में चन्ी के समर्थक दलित गतुट कितने प्भा्वी होंगे और उनसे दलित कितना खतुद कको जोड़ पाएंगे इसे सहज ही समझा जा सकता है । ्वास्तव में चन्ी कको आगे करके दलितों कको सममान देने का कांग्ेर का दिखा्वा एक छकोटे से धर्मांतरित रामदसिया समूह के अला्वा समूचे दलित समाज कको तचढ़ाने ्वाला कदम ही है । उसमें नीम चढ़े करेले ्वाली बात यह है कि दलित एजेंडा सेट करने की ककोतशश में करीब 20 फीसदी आबादी ्वाले एकजतुट जाट सिख मतदाता कांग्ेर से छिटकते दिख रहे हैं । ऐसे में यह कहना गलत नहीं हकोगा कि चन्ी कको मतुखयमंत्री बनाने के अपने जिस फैसले कको कांग्ेर मासटर सट्रोक समझ रही है ्वह ्वास्तव
देश भर में दलित एजेंडा सेट करने शुरूआत कांग्ेस ने पंजाब से ही की जहां कथित तौर पर मास्टर स्ट्ोक लगाते हुए उसने दलित समुदाय के बताए जानेवाले चरणजीत सिंह चन्ी को मुख्यमंत्ी बना दिया । चन्ी का चेहरा आगे करके कांग्ेस भले ही दलित वोट बैंक पर पूरा हाथ साफ करने के सपने देख रही हो लेकिन जमीनी हकीकत तो यही है कि पंजाब की करीब 32 फीसदी दलित आबादी को चरणजीत सिंह चन्ी के सहारे एकजुट कर अपने पाले में लाने की कोशिश की सफलता संदिग्ध ही है ।
में सेलर गकोि ही साबित हकोने ्वाला है ।
गुजरात में रेत पर खडा कांग्रेस का दलित एजेंडा
कांग्ेर की नजर गतुजरात के पाटीदार और दलित समतुदाय के मतदाताओं पर टिकी है ।
गतुजरात में करीब 7 फीसदी दलित समतुदाय के िकोग हैं और उनके लिए यहां की 13 त्विानसभा सीटें आरतक्त हैं । 2017 के त्विानसभा चतुना्व में इन सभी 13 में से जयादातर सीटों पर भाजपा ने परचम लहराया था । के्वि जिग्ेश मे्वानी कांग्ेर के समर्थन से निर्दलीय प्तयाशी के तौर पर ्विगाम सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे । सबसे पहले जिग्ेश उस समय चर्चा में आए थे जब ऊना में गौ रक्ा के नाम लेकर दलितों कको पीट दिया गया था । और उस हिंसा के बाद जब त्वरकोि आंदकोिन हतुआ था उसकी अगतुआई जिग्ेश मे्वानी ने ही की थी । इसमें दलितों ने गौ के श्व हटाने की अपने पारंपरिक नौकरी से मतुंह मोड़ लेने की प्तिज्ा कर लिया था । जिग्ेश मे्वानी ने दलितों के सममान के लिए और उतथान के लिए सरकार से जमीन की मांग की थी । इसके बाद ्वर्ष 2017 का त्विानसभा चतुना्व आया जिसमें जिग्ेश मे्वानी ने एक चतुना्वी रैली में अपने भाषण के दौरान जनता से जैसे ही “ अलिाह हतु अकबर ” का नारा लगाने कको कहा तको ्वहां मौजूद भीड़ ने जिग्ेश मे्वानी कको ज्वाब देते हतुए “ मकोदी मकोदी ” के नारे लगाना शतुरु कर दिया । हालांकि उस चतुना्व में जिग्ेश का समर्थन करते हतुए कांग्ेर ने अपना प्तयाशी खड़ा नहीं किया जिसके नतीजे में उनकी बडगाम में जीत हको गई । अब जिग्ेश ने सैदांतिक तौर पर कांग्ेर का दामन थाम लिया है और ऐलान किया है कि अगला चतुना्व ्वे कांग्ेर के टिकट पर ही िड़ेंगे । लेकिन त्विायकी पर खतरा ना हको इसलिए रक्ातमक राजनीति करते हतुए जिस जिग्ेश ने कांग्ेर की औपचारिक सदसयता लेने से परहेज बरत लिया है ्वह पाटटी के लिए आगे कितने भरकोरेमंद साबित होंगे और निजी हितों के समक् पाटटी के हितों कको कितनी त्वज्जको देंगे इसे आसानी समझा जा सकता है । ्वैसे भी चतुना्वी रैली में अलिाहू अकबर का नारा लग्वाने की नाकाम ककोतशश करके अपनी किरकिरी करा चतुके जिग्ेश के चेहरे कको आगे करने से कांग्ेर का ररॉफट हिन्दुत्व में सीधे तौर पर खतरे में ही आएगा और उस पर हजारों र्वाल उठेंगे । ऐसे में यह समझना
uoacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 19