Vaastu Vigyan Volume I | Page 7

2 - फिर बारी आती है उत्तर दिशा की, जैसा हम जानते है उत्तर दिशा में उत्तरी ध्रुव होने के कारण चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। जिसके आसानी से भवन में प्रवेश हेतु ही भवन निर्माण के समय इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान व ढाल रखना चाहिए।यह चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी है शयद इसी लिए शास्त्र में उत्तर को माँ लक्ष्मी और कुबेर की दिशा कह कर समान्नित किया गया है तो अपने प्रभाव स्वरुप यह दिशा स्वास्थ्य के साथ ही यह धन व आर्थिक इस्थिति को भी प्रभावित करती हैं। यहाँ जल क्षेत्र बनाया जाना लाभ देता है |

3 - उपरोक्त दोनों दिशाओ की महत्ता से आप इन दोनों के समिश्रण से बनी उपदिशा की महत्ता को भी स्वीकार अवश्य करेंगे | अत: इसी कारण से उत्तर-पूर्व दिशा अर्थात ईशान कोण में देवी - देवताओं का स्थान होने की बात शास्त्र में कही गई है, इस दिशा में चुम्बकीय तरंगों के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। जहाँ किसी भी व्यक्ति को प्रात; काल स्नान से निर्वित्त हो कर कुछ समय ध्यान में अवश्य व्यतीत करना चाहिए | ईशान कोण से घर का मुख्य प्रवेश द्वार सम्पन्नता, समृद्धि लेकर आता हैं, वास्तुशास्त्र में इसे विशेष शुभ व लक्ष्मी के द्वार की संज्ञा दी गई है। विद्यार्थी यदि इस स्थान पर पूर्व या उत्तर मुख हो कर अध्यन करेंगे तो अच्छे अंक अर्जित करने के साथ उत्तम व उज्जल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।