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GLOBAL PUBLIC SCHOOL 2021
धीरे ््ो- हहमया््ी ्ोक कथया
-गौरी पी , 8 C
निी के तट पर एक लभक्ु में वहां ्बैठे एक वृद्ध से पू्ा ्हां से नगर ककतनी िूर है ? सुना है , सूरज ढलते ही नगर का दवार ्बंि हो जाता है । अ्ब तो शाम होने ही वाली है । क्ा मैं वहां पहुंच जाऊँ गा ?
वृद्ध ने कहा “ िीरे चलो तो पहुंच भी सकते हो ।” लभक्ु ्ह सुनकर हैरत में पड़ ग्ा । वह सोचने लगा कक लोग कहते हैं कक जलिी से जाओ , पर ्ह तो ववपरीत ्बात कह रहा है । लभक्ु तेज़ी से भागा लेककन रासता ऊ्बड़- खा्बड़ और प्रीला ्ा । ्ोड़ी िेर ्बाि ही लभक्ु लड़खड़ा कर धगर पड़ा ।
ककसी तरह वह उठ तो ग्ा लेककन िि्स से परेशान ्ा । उसे चलने में काफी दिककत हो रही ्ी । वह ककसी तरह आगे ्बढ़ा लेककन त्ब तक अंिेरा हो ग्ा । उस सम् वह नगर से ्ोड़ी ही िूर पर ्ा । उसने िेखा कक िरवाज़ा ्बंि हो रहा है ।
उसके ठछीक पास से एक व्जकत गुज़र रहा ्ा । उसने लभक्ु को िेखा तो हँसने लगा । लभक्ु ने नाराज़ होकर कहा ,” तुम हँस क्ों रहे हो ?”
व्जकत ने कहा ,” आज आप की जो हालत हुई , वह कभी मेरी भी हुई ्ी । आप भी उस ्बा्बाजी की ्बात नहीं समझ पाए जो निी ककनारे रहते हैं ।”
उसकी उतसुकता ्बढ़ गई । उसने पू्ा ” साफ-साफ ्बताओ भाई ।” उस व्जकत ने कहा “ ज्ब ्बा्बा जी कहते हैं िीरे चलो तो लोगों को अटपटा लगता है । असल में वह ्बताना चाहते हैं कक रासता गड़्बड़ है । अगर संभल कर चलोगे तो सम् से पहुँच सकते हो ।
“ जजंिगी में लसफ्स तेज भागना ही काफी नहीं है । सोच समझकर संभल कर चलना ज्ािा काम आता है ।“
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