The Jorney 2020 -21 | Page 113

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GLOBAL PUBLIC SCHOOL 2021

मयाँ कया पल्लू

- फललत सोमानी , 9 C
मां का पललू क्ा पललू ्ा पललू प्रसाि ले आता ्ा ।
स्ब िुख िि्स समेटे रहता ्ा । त्ब पललू की हर गांठो में
कोई ्बचचा ज्ब भी ब्बलख रहा ्बचचे का मन हषा्सता ्ा ।
त्ब पललू ककतना ्लक रहा । ज्ब भी मां भोजन पका रही
त्ब आंचल समान उस पललू में
त्ब पललू सा् ननभाता ्ा । ्बचचा सु्बक- सु्बक के सहज हुआ । स्ब गम्स पतीले को पललू ज्ब कोई मेहमान घर आता ्ा
झट से नीचे पहुंचाता ्ा । ्ोटा ्बचचा , पललू पी्े आता ्ा । ज्ब वपताजी घर को आते ्े पललू की ताकत के ्बल पर ्बचचा
मा्े पर िि्स झलकता ्ा ।
टकटकी लगाकर शरमाता ्ा । त्ब पललू उसको सहज रूप
ज्ब ्बचचा ्बाजार को जाता ्ा अपने में तुरंत समाता ्ा ।
त्ब पललू माग्स दिखाता ्ा । ज्ब कोई ्बुजुग्स घर आता ्ा
ज्ब ठं ड और ्बाररश आती ्ी पललू झट लसर पर जाता ्ा ।
झट पललू ्बचचे पर ्ाता ्ा । मां के म्ा्सदित जीवन को
अपने आगोश में ्बचचे को पललू झट से िशा्सता ्ा ।
मां का पललू ही ्बचाता ्ा । मां का पललू क्ा पललू ्ा
मां मंदिर ज्ब भी जाती ्ी स्ब िुख िि्स समेटे रहता ्ा ।
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