Sept 2025_DA | Page 29

निर्माण और दरेशभक्त के कार्य को कररेगा । इसके लिए हमें समाज के कोनरे-कोनरे तक पहुंचना होगा । भौगोलिक दृष्टि सरे सभी स्थानों और समाज के सभी ्गषों एवं सतरों में संघ की शाखा पहुंचानी होगी । संघ मानता है कि समाज में सद्ा्ना लानी होगी और एक सोच विकसित करनी होगी ।
उन्होंनरे कहा कि संघ नरे भारत के विभाजन का विरोध किया थिा और इस विभाजन के दुष्परिणाम आज अलग हुए पड़ोसी दरेशों में दिखाई दरे रहरे हैं । " भारत अखंड है- यह जीवन का एक सतय है । पूर्वज, संसकृधत और मातृभूमि हमें एक करतरे हैं । अखंड भारत केवल राजनीति नहीं, िसलक जनचरेतना की एकता है । जब यह भावना जागृत होगी, तो सभी सुखी और शांतिपूर्ण होंगरे । उन्होंनरे कहा कि एक गलत धारणा फैलाई गई कि संघ किसी के विरुद्ध है । यह पर्दा हटाना होगा और संघ को वैसा ही दरेखना चाहिए, जैसा वह है । हम ' हिन्दू ' कहतरे हैं; आप इसरे ' भारतीय ' कह सकतरे हैं- अथि्ण एक ही है । हमाररे पूर्वज और संसकृधत एक हैं । उन्होंनरे सपष्ट किया कि पूजा पद्धति अलग- अलग हो सकती हैं, लरेधकन पहचान एक ही रहती है । धर्म बदलनरे सरे समुदाय नहीं बदलता । दोनों पक्षों को विश्ास का निर्माण करना होगा ।
हिन्दुओं को अपनी शक्त जागृत करनी होगी और मुसलमानों को यह डर तयागना होगा कि एक साथि आनरे सरे इसलाम समापत हो जाएगा ।
उन्होंनरे कहा कि भारत में स्थानों का नाम आरिमणकारियों के नाम पर नहीं रखा जाना चाहिए; इसका मतलब यह नहीं है कि यह मुसलमानों के नाम पर नहीं हो सकता, िसलक अबदुल हमीद, अशफाकउलला खान और एपीजरे अबदुल कलाम जैसरे सच्चरे नायकों के नाम पर रखा जाना चाहिए जो सभी को प्ररेरित करतरे हैं ।
उन्होंनरे दृढ़ता सरे कहा कि यदि संघ हिंसक संगठन होता, तो हम 75 हज़ार स्थानों तक नहीं पहुंच पातरे । संघ के किसी स्यंसरे्क द्ारा हिंसा में शामिल होनरे का एक भी उदाहरण नहीं है । इसके विपरीत, संघ के सरे्ा कायषों को दरेखना चाहिए, जो स्यंसरे्क बिना किसी भरेदभाव के करतरे हैं । नरेताओं की सरे्ानिवृधत् आयु के प्रश्न पर उन्होंनरे कहा कि संघ में ऐसी कोई अवधारणा नहीं है । उन्होंनरे कभी नहीं कहा कि मैं एक धनसशचत आयु में सरे्ानिवृत् हो जाऊंगा या किसी को होना चाहिए । संघ में सभी स्यंसरे्क हैं । यदि मैं 80 वर्ष का हो जाऊं और शाखा चलानरे का दायित् दिया जाता है, तो मुझरे करना ही होगा । संघ जो भी कार्य सौंपता है, उसरे करतरे हैं । सरे्ानिवृधत् का प्रश्न यहां लागू नहीं होता ।
संघ में, विवाहित स्यंसरे्क भी स्वोच्च पदों पर पहुंच सकतरे हैं ।
उन्होंनरे कहा कि अपना दरेश है । उस दरेश की जय-जयकार होनी चाहिए । उस दरेश को विश् में एक अग्गणय स्थान मिलना चाहिए । लरेधकन ्यों मिलना चाहिए? अग्गणय स्थान तो एक ही दरेश प्रापत कररेगा और विश् में सैकड़ों दरेश हैं । उसके लिए भी एक नई सपधा्ण उतपन् करनी है ्या? तो ऐसा कोई इरादा नहीं है । लरेधकन उसके पीछे एक सतय है । दुनिया में इतनरे दरेश हैं, ्यों हैं? विश् बहुत पास आ गया है । अभी गलोिल बात होती है । विश् पास आ गया है, इसलिए गलोिल विचार करना ही पड़ता है । तो एक दरेश के बड़े होनरे का महत्् ्या है? तो यद्धप, साररे विश् का जीवन एक है, मानवता एक है, फिर भी वो एक जैसी नहीं है । उसके अलग-अलग रूप है, अलग-अलग रंग है और ऐसा होनरे के कारण विश् की सुंदरता बढ़ी है, ्योंकि हर एक रंग का अपना-अपना कंट्ीबयूशन है, योगदान है । संघ के चलनरे का प्रयोजन भारत है और संघ की साथि्णकता, भारत के विश् गुरु बननरे में है ्योंकि भारत का एक योगदान दुनिया में है । वह योगदान उसको दरेना है, उसका समय आ गया है । �
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