काय्णरिम में सरसंघचालक डा. मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्ात्रेय होसबलरे सहित सैकड़ों गणमान्य लोगों नरे हिससा लिया । इस अवसर पर सरसंघचालक डा. मोहन भागवत नरे संघ की 100 वर्ष की अविसमरणीय यात्ा और इसके अनुभवों पर प्रकाश डाला ।
भारत में आरक्षण सरे जुड़े मुद्दे पर सरसंघचालक डा. भागवत नरे कहा कि आरक्षण तर्क का नहीं, िसलक सं्रेदनशीलता का विषय है । यदि अन्याय हुआ है, तो उसरे अवशय सुधारा जाना चाहिए । संघ नरे सदैव संवैधानिक रूप सरे मान्य आरक्षण का समथि्णन किया है और आगरे भी करता रहरेगा । जब तक लाभाधथि्णयों को इसकी आवशयकता महसूस होगी, संघ उनके साथि खड़ा रहरेगा । अपनों के लिए तयाग करना ही धर्म है ।
उन्होंनरे कहा कि 1972 में, संतों नरे सपष्ट रूप सरे कहा थिा कि हिन्दू धर्म में छुआछूत और जाति-आधारित भरेदभाव का कोई स्थान नहीं है । यदि कहीं जाति-भरेद का उल्लेख मिलता है, तो उसरे गलत वयाखया समझा जाना चाहिए । हिन्दू किसी एक धर्मग्रंथ का पालन नहीं करतरे हैं, न ही ऐसा है कि सभी लोग एक ही धर्मग्रंथ के अनुसार जीवन जीतरे हों । आचरण के दो मानदंड हैं- एक शासत्, दूसरा लोक । जो लोग स्ीकार करतरे हैं, वही आचरण बन जाता है और भारत के लोग जातिगत भरेदभाव का विरोध करतरे हैं । संघ सभी समुदायों के नरेताओं को एक साथि आनरे के लिए प्ररेरित करता है, और साथि मिलकर उन्हें अपना और पूररे समाज का धयान रखना चाहिए । धार्मिक और सामाजिक काय्णरिमों सरे लोगों में गुणवत्ा और मूलयों का विकास होना चाहिए, और संघ इसी दिशा में कार्य करता है ।
भारत में भाषा सरे जुड़े मुद्ों पर सरसंघचालक डा. भागवत नरे कहा कि भारत की सभी भाषाएं राष्ट्ीय भाषा हैं, लरेधकन आपसी संवाद के लिए हमें एक वय्हार भाषा की आवशयकता है- और वह विदरेशी नहीं होनी चाहिए । आदर्श और आचरण हर भाषा में समान होतरे हैं, इसलिए विवाद की कोई आवशयकता नहीं है । हमें अपनी मातृभाषा जाननी चाहिए, हमें अपनरे क्षेत्र की
भाषा में बातचीत करनरे में सक्षम होना चाहिए, और हमें रोज़मर्रा के वय्हार के लिए एक भाषा अपनानी चाहिए । यही भारतीय भाषाओं की समृद्धि और एकता का मार्ग है । इसके अलावा, दुनिया की भाषा सीखनरे में कोई बुराई नहीं है ।
उन्होंनरे कहा कि संघ एक विकासशील संगठन है, लरेधकन यह तीन बातों पर दृढ़ है । वयस्तगत चररत् निर्माण सरे समाज के आचरण में परिवर्तन संभव है, और यह सिद्ध कर दिखाया है । समाज को संगठित करें, बाकी सभी परिवर्तन अपनरे आप हो जाएंगरे और भारत एक हिन्दू राष्ट् है । इन तीनों के अलावा, संघ में बाकी सब कुछ बदल सकता है । बाकी सभी मामलों में लचीलापन है ।
सरसंघचालक डा. भागवत नरे कहा कि मथिुरा और काशी के बाररे में हिन्दू समाज की भावनाओं का सममान किया जाना चाहिए । उन्होंनरे सपष्ट किया कि संघ नरे राम मंदिर आंदोलन में सधरिय रूप सरे भाग लिया थिा, लरेधकन अब वह किसी भी अन्य आंदोलन में प्रतयक्ष रूप सरे भाग नहीं लरेगा । राम मंदिर हमारी मांग थिी और उस
आंदोलन का समथि्णन किया थिा, लरेधकन संघ अब अन्य आंदोलनों में भाग नहीं लरेगा । फिर भी, हिन्दू जनमानस में काशी, मथिुरा और अयोधया का गहरा महत् है- दो जन्मभूमि हैं, एक निवास स्थान है । इसके लिए हिन्दू समाज का आग्ह करना स्ाभाविक है ।
उन्होंनरे कहा कि सभी मंदिर सरकार के पास नहीं हैं; कुछ निजी हैं और कुछ ट्सटों के पास हैं । उनकी स्थिति को ठीक सरे बनाए रखा जाना चाहिए । राष्ट्ीय मानस मंदिरों को भ्तों को वापस सौंपरे जानरे के लिए तैयार है, लरेधकन उचित वय्स्था भी होनी चाहिए । जब मंदिर वापस किए जाएंगरे, तो स्थानीय सरे लरेकर राष्ट्ीय सतर तक अनुष्ठानों, ध्त् और भ्तों के हित में वय्स्था तैयार होनी चाहिए, ताकि अगर अदालतें कोई फैसला दें, तो तैयार रहें ।
सरसंघचालक डा. भागवत नरे कहा कि भारत एक हिन्दू राष्ट् है और इसके लिए किसी औपचारिक घोषणा की आवशयकता नहीं है । ऋषियों और मुनियों नरे पहलरे ही भारत को हिन्दू राष्ट् घोषित कर दिया है । यह किसी अधिकृत
flracj 2025 27