Sept 2024_DA | Page 7

के नाम पर सत्ा पर कब्ा करने के बाद बांगलादेश में अलपसंख्यक हिन्दुओं को लगातार निशाना बना्या जा रहा है । मीलड्या में आ रहे समाचिार बांगलादेश की गंभीर न्स्लत्यों का खुलासा कर रहे हैं । बांगलादेश के 64 में से 45 जिलों में अलपसंख्यक हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा और तोडफोड की घटनाएं लगातार हो रही है । उनके घरों को जला्या जा रहा है , तोडा जा रहा है , दुकानों को लूटने के साथ ही धार्मिक स्लों को नष्ट लक्या जा रहा है । बांगलादेश में अलपसंख्यक हिन्दुओं के विरुद्ध हो रही हिंसा को अंतरिम सरकार सवीकार करने के स्ान पर ्यह दावा कर रही है कि अलपसंख्यक हिन्दुओं का पूर्ण सुरक्ा दी जा रही है ।
कट्टरपंथियों के निशाने पर अल्पसंख्यक हिन्दू
बांगलादेश में अलपसंख्यक हिन्दुओं के विरुद्ध हो रही हिंसा नई नहीं है । कट्टरपंथी मुस्लिम शन्कत्यों के निशाने पर अलपसंख्यक हिन्दू समाज हमेशा रहा है । कट्टरपंल््यों की हिंसा , अत्याचिार और दबाव के कारण होने वाले अवैध धर्मान्तरण के कारण बांगलादेश में अलपसंख्यक हिन्दुओं की जनसंख्या लगातार कम होती जा रही है । वर्तमान में अलपसंख्यक हिन्दुओं की जनसंख्या बांगलादेश की कुल जनसंख्या में 1951 की अपेक्ा 14 प्लतशत घट हो चिुकी है । कट्टरपंथी शन्कत्यों के कारण हर वर्ष दो लाख से अधिक अलपसंख्यक हिन्दुओं को देश छोडने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है । बांगलादेश में अलपसंख्यक हिन्दुओं की संख्या आठ प्लतशत से भी कम हो गई है ।
बांगलादेश में भारत विरोधी कई कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन हैं । इनमें जमात-ए-इसलामी बांगलादेश भी शामिल हैं , जिस पर लगे प्लतबन्ध को अंतरिम सरकार का गठन होने के बाद हटा लद्या ग्या है । बांगलादेश की सवतंरिता का विरोध करने वाले जमात-ए-इसलामी लगातार अलपसंख्यक हिन्दुओं का निशाना बनाने के लिए कुख्यात हो चिुकी है । जमात के कई नेताओं को 1971 के ्युद्ध के दलौिान हत्या , अपहरण और
बलातकाि के आरोप में स्ा मिल चिुकी है । जमात-ए-इसलामी से समबद्ध छारि संगठन जमात शिबीर के समर्थकों की अलपसंख्यक हिन्दुओं एवं मंदिरों पर हमले में संलल्तता उजागर होती रही है । बांगलादेश में शेख हसीना सरकार के विरुद्ध फैलाई ग्यी अराजकता में भी जमात-ए- इसलामी एवं जमात शिबीर के समर्थकों ने अलपसंख्यक हिन्दुओं का निशाना बना्या , जो ग्ामीण क्ेरिों में लगातार जारी है । बांगलादेश में अलपसंख्यक हिंदुओं की स्थिति भ्यावह होने की तरफ बढ़ रही है ।
भारत के दलित नेताओं की चुप्ी
बांगलादेश के अलपसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे हमलों , अत्याचिारों एवं मानवाधिकार हनन की वीभतस न्स्लत्यों पर भारत में चिु्पी का माहलौल है । हैरत की बात ्यह है कि भारत के वह तमाम नेता जो स्वयं को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताते हैं , वह भी बांगलादेश में अलपसंख्यक हिन्दुओं के विरुद्ध हो रही हिंसा पर चिुप बैठे हुए हैं । जबकि बांगलादेश में रहने वाले अलपसंख्यक हिन्दुओं में अधिकांश दलित वर्ग के हैं । भारत में दलित-मुस्लिम राजनीतिक गठजोड़ की वकालत करने वाले दलित नेताओं की छुपी निराशाजनक होने के साथ ही उनके कथित दलित कल्याण के दावे की असलल्यत भी सामने रखती है । बांगलादेश में बचिे हुए 90 प्लतशत हिंदू दलित हैं , लेकिन भारत में विपक् वोट बैंक की राजनीति के कारण उनकी दुर्दशा के बारे में चिुप है ।
दलितों का उपयोग के वल सत्ा प्ाप्ति के लिए
देश के अंदर अगर सत्ा समबत्िी रणनीति पर राजनीतिक दलों , विशेष रूप से कांग्ेस , वामपंथी और कुछ क्ेरिी्य दलों पर अगर दृन्ष्ट जाए तो कहना अनुलचित नहीं लगता कि वषथों से एक षड्ंरि के रूप में हिन्दू समाज को बांटकर , उसका उप्योग सत्ा हल््याने के लिए लक्या ग्या । वर्तमान कांग्ेस पाटटी को जिस कालखंड
में बना्या ग्या था , उस सम्य देश परतंरि था और अंग्ेज इस देश की पावन भूमि को रौंदते हुए अपनी सत्ा के माध्यम से देश को बुरे ढंग से लूटने में लगे थे । ततकालीन सम्य में पूरे देश ने जब अंग्ेजों की सत्ा और देश विरोधी कार्यों का विरोध शुरू लक्या तो बड़ी सफाई के साथ , ततकालीन दलौि के चिंद कुलीन वगथों के लोगों को साथ में लेकर 28 दिसंबर 1885 को अखिल भारती्य कांग्ेस नामक एक संगठन खड़ा लक्या ग्या । अंग्ेज शासकों के हितों और उनकी आकांक्ाओं की पूर्ति के लिए बनाए गए कांग्ेस संगठन में एक विदेशी तथाकथित नेता ए ओ ह्ूम की महतवपूर्ण भूमिका रही । प्ािंभिक दलौि में कांग्ेस विदेशी लुटेरे अंग्ेजी हितों के लिए काम करती रही ।
सवतंरिता के उपरांत कांग्ेसी प्िानमंरिी नेहरू ने अंग्ेजों के सत्ा अनुभव से सबक लेते हुए जाति व्यवस्ा को इस तरह से भारत में पुष्ट लक्या कि जातिगत आधार पर देश के हर राज्य में नए-नए संगठन खड़े होते चिले गए । इन जाति आधारित संगठनों के कथित नेताओं का लक््य अपनी जाति का समपूण्य विकास और कल्याण कभी नहीं रहा और वो केवल कांग्ेस की कठपुतली बनकर सत्ा की मलाई चिाटते हुए बस सवलहत में ही लगे रहे । पूर्व प्िानमंरिी नेहरू ने जाति को सत्ा से जिस तरह जोड़ लद्या था , उस रणनीति का अनुसरण इंदिरा गांधी ने भी लक्या । आखिर क्या कारण है कि वषथों तक " गरीबी हटाओ " का नारा देने के बावजूद देश से गरीबी क्यों नहीं समा्त हुई ? आखिर क्या वजह रही कि संवैधानिक रूप से आिक्ण की सुविधा मिलने के बावजूद आज भी देश का दलित समाज स्वयं को अभावग्सत महसूस करता है ? वह कलौन से कारण हैं , जिनकी वजह से दलितों और जातिगत हितों के लिए जो नेता सामने आ्ये , वह अपने समाज का समपूण्य विकास करने में असफल सिद्ध हुए ?
कांग्ेस ने पोषित किया जातिवाद को
ऐसे अनेकानेक प्श्नों का उत्ि बहुत सपष्ट flracj 2024 7