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इस व्यवस्ा को अवैज्ालनक अत्याचिारपूर्ण , संकीर्ण , गरिमाहीन बताते हुए इसकी कटु आलोचिना की । उनके अनुसार ्यह श्म के विभाजन पर आधारित न होकर श्लमकों के विभाजन पर आधारित था । उनके अनुसार भारती्य समाज की चितुर्वर्ण व्यवस्ा ्यूनानी लवचिारक ्लेटो की सामाजिक व्यवस्ा के बहुत निकट है । ्लेटो ने व्यक्ति की कुछ विशिष्ट ्योग्यताओं के आधार पर समाज का विभाजन
करते हुए उसे तीन भागों में विभाजित लक्या । डा . आंबेडकर ने इन दोनों की व्यवस्ाओं की जोरदार आलोचिना की तथा सपष्ट लक्या कि क्मता के आधार पर व्यन्कत्यों का सुसपष्ट विभाजन ही अवैज्ालनक तथा असंगत है । डा . आंबेडकर का मत था कि उन्नत तथा कमजोर वगथों में जितना उग् संघर्ष भारत में है , वैसा लव्व के किसी अत््य देश में नहीं है । ऐतिहासिक आधारों पर डा . आंबेडकर ने ्यह सपष्ट करने
का प्रयास लक्या कि शूद्रों की उतपलत् तथा हीनता का कारण जान-बूझकर लक्या ग्या प्रयास था ।
डा . आंबेडकर ने भारत में जाति-व्यवस्ा की प्मुख विशेषताओं और लक्णों को सपष्ट करने का प्रयास लक्या जिनमें प्मुख निम्न हैं- चिातुर्वर्ण पदसोपानी्य रूप में वगटीकृत है । जाती्य आधार पर वगटीकृत इस व्यवस्ा को व्यवहार में व्यन्कत्यों द्ािा परिवर्तित करना असमभव है । इस व्यवस्ा में का ्यकुशलता की हानि होती है , क्योंकि जाती्य आधार पर व्यन्कत्यों के कार्यो का पूर्व में ही निर्धारण हो जाता है । ्यह निर्धारण भी उनके प्लशक्ण अथवा वासतलवक क्मता के आधार पर न होकर जन्म तथा माता पिता के सामाजिक सति के आधार पर होता है । इस व्यवस्ा से सामाजिक स्ैलतकता पैदा होती है , क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने वंशानुगत व्यवस्ा का अपनी सवेचछा से परिवर्तन नहीं कर सकता । ्यह व्यवस्ा संकीर्ण प्वृलत्यों को जन्म देती है , क्योंकि हर व्यक्ति अपनी जाति के अस्तितव के लिए अधिक जागरूक होता है , अत््य जालत्यों के सदस्यों से अपने समबत्ि दृढ़ करने की कोई भावना नहीं होती है ।
नतीजन उनमें राष्ट्री्य जागरूकता की भी कमी उतपन्न होती है । जाति के पास इतने अधिकार हैं कि वह अपने किसी भी सदस्य से उसके लन्यमों की उललंघना पर दण्डित ्या समाज से बहिष्कृत कर सकती है । अन्तर्जाती्य विवाह इस व्यवस्ा में निषेध होते हैं । सामाजिक विद्ेष और घृणा का प्सार इस व्यवस्ा की सबसे बुरी विशेषता है । इस प्कार डा . आंबेडकर ने ्यह सपष्ट करने का प्रयास लक्या कि जाति- व्यवस्ा भारती्य समाज की एक बहुत बड़ी विकृति है , जिसके दुखभाव समाज के लिए बहुत ही घातक हैं । जाति व्यवस्ा के कारण लोगों में एकता की भावना का अभाव है , अत : भारती्यों का किसी एक विष्य पर जनमत तै्यार नहीं हो सकता । समाज कई भागों में विभकत हो ग्या । उनके अनुसार जाति व्यवस्ा न केवल हिन्दू समाज को दुष्प्भावित नहीं लक्या अपितु भारत के राजनीतिक , आर्थिक तथा नैतिक जीवन में भी जहर घोल लद्या ।
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