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सभपी मूलनिवासपी

भपी हैं भारत के आर्य : डा . आंबेडकर

डा . रेणु कीर

प्त्येक वर्ष 9 अगसत को मना्या जाने वाला लव्व मूलनिवासी दिवस आरमभ से ही विवादित है । भारत में शुरुआत से ही एक विवादित , परंतु अज्ात विष्य रहा है । इसलिए ्यह हमें इस बात की जांचि करने के लिए प्ेरित करता है कि ' मूलनिवासी ' कलौन थे और उनकी उतपलत् भारती्य समाज में कैसे हुई । इस संदर्भ में , डा . बी . आर . आंबेडकर से बेहतर कोई नाम नहीं हो सकता , जिन्होंने अपने लोकप्रिय पुसतक , ' शूद्र कलौन थे ? - वह इंडो-आ ्यन समाज में चिलौ्े वर्ण कैसे बने ' में अत्यंत वैज्ालनक और विसतृत तरीके से इसका लव्लेषण लक्या है । पहली बार 1946 में प्काशित ्यह पुसतक , मुख्य रूप से हिंदू समाज के चिलौ्े वर्ण के रूप में शूद्रों की

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