दलित शबद का शाब्दिक अर्थ है दबा्या हुआ , कुचिला हुआ , गरीब एवं शोषित । दलित लचित्तक कंवल भारती दलित शबद को परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि वासतव में दलित व्यक्ति वही हो सकता है जो सामाजिक एवं आर्थिक दोनों दृन्ष्ट्यों से दीन-हीन है , जिस पर असपृ््यता का लन्यम लागू लक्या ग्या , जिसे कठोर एवं गंदे कर्म करने के लिए बाध्य लक्या ग्या , जिसे शिक्ा ग्हण करने एवं सवतंरि व्यवसा्य करने से मना लक्या ग्या , जिस पर सामाजिक निर्योग्यताओं की संहिता लागू की हो , वही और सिर्फ वही दलित है । इसके अन्तर्गत वह जालत्यां आती हैं , जिन्हें शासकी्य शबदावली में अनुसूलचित जाति कहा जाता है । अतः ्यहां पर दलित और अनुसूलचित जाति को समाना्टी के रुप में प्रयोग लक्या ग्या है ।
दलितों के उत्ान से तात्पर्य है उनका सामाजिक-आर्थिक , राजनीतिक , शैलक्क एवं सांसकृलतक विकास से है । 21वीं शताबदी में दलितों की स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर प्काश डालना अतिआवश्यक है-
भारती्य संविधान और दलित आिक्ण : डा . भीमराव आंबेडकर की मलौलिक देन आिक्ण व्यवस्ा है । उनका मानना था कि दलितों की स्थिति में सुधार केवल आिक्ण के द्ािा ही संभव है । आिक्ण व्यवस्ा भारती्य संविधान की अनोखी विशेषता है , जो सलद्यों से शोषित और दबे कुचिले वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लाने का अवसर प्दान करता है । समाज में उपलबि अवसरों को किसी वर्ग विशेष के लिए उपलबि कराना ्या अवसरों के लिए निर्धारित
मापदणडों में किसी विशेष वर्ग के लिए छटूट देना ही आिक्ण कहलाता है । भारती्य संविधान नागरिकों के बीचि भेदभाव का निषेध करता है तो फिर आिक्ण की आवश्यकता एवं औलचित्य क्या है ? राष्टीं्य सवतंरिता आन्दोलन के दलौिान ही ्यह अनुभव कर लल्या ग्या था कि राष्ट्र के समग् विकास के लिए आर्थिक तथा सामाजिक दृन्ष्ट से पिछड़े तथा शोषित वगथों का उत्ान आवश्यक है । भारती्य संविधान निर्माता इस तथ्य से परिलचित थे , इसलिए उन्होंने दलितों के लिए आिक्ण की वकालत की । वैसे भारत में दलित आिक्ण की शुरुआत पूना पैकट 1932 से होती है , लेकिन ्यह केवल विधाल्यका के क्ेरि में था । व्यापक आिक्ण की शुरुआत संविधान लागू होने के बाद होती है ।
विधाल्यका में आिक्ण : विधि निर्माण में दलितों की सहभागिता सुलनन््चित हो इसके लिए संविधान के अनुचछेद 330 के तहत लोकसभा तथा अनुचछेद 332 के तहत राज्य की विधानसभाओं में अनुसूलचित जालत्यों को उनके जनसंख्या के अनुपात में आिक्ण प्दान लक्या ग्या है ।
सरकारी नलौकरि्यों में आिक्ण : संविधान के अनुचछेद 161 / 441 / 2 के अनुसार “ राज्य सामाजिक तथा शैलक्क दृन्ष्ट से पिछड़े वगथों के लिए लन्युन्कत्यों और पदों के आिक्ण के लिए विशेष उपबन्ध कर सकता है ्यलद उसकी रा्य में उन वगथों का राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्लतलनलितव नहीं है । इसी के आधार पर अनुसूलचित जालत्यों को सरकारी नलौकरि्यों में आिक्ण लद्या ग्या है । इस प्कार आिक्ण की दो शतदे निर्धारित की गई है- राज्य के अधीन सेवाओं में उकत वर्ग का पर्याप्त प्लतलनलितव न हो तथा वह वर्ग सामाजिक तथा शैलक्क दृन्ष्ट से पिछड़ा हुआ हो ।
लशक्ण संस्ाओं में आिक्ण : संविधान के अनुचछेद 15 / 4 में कहा ग्या है कि राज्य सामाजिक तथा शैलक्क दृन्ष्ट से पिछड़े नागरिकों ्या अनुसूलचित जाति ्या अनुसूलचित जनजाति की उन्नति तथा शिक्ा संस्ाओं में प्वेश के लिए विशेष प्ावधान कर सकता है । इसके अलावा
flracj 2024 21