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Hindi Poetry
औरत
र�न सागर औरत बहता झरना िखलता गुलशन है , गंगा की पावन धारा खुशबू से भरा आंगन है । ये नदी सी बहती चलती है ये सागर सी शांत है , प�त� पर ओंस की बूंद� सी िज�दगी का सावन है । है म�त हवा का झ�का �य़ार की गहरी छांव है , ये है �याग की देवी ये देव� के समान है । सुबह की उजली धूप सी उ�मीद� का चांद है , मोह��त की रोशनी एक हसीन जहाँ है । तपते रेगी�तान पर ये बािरश की फु हार है , औरत िज�दगी है ये िज�दगी की पहचान है ।
र�न सागर