सबके सामनदे मुझसदे नमस्ते मत कहा कर । तदेरदे दोसत कया कहेंगदे?’ उस समय मदेरा बाल मन आंटी की बात की गहराई नहीं समझता था । बस मन में अजीब सी कौंध रह गई कि आंटी मुझदे नमस्ते करनदे सदे मना कयों करती है? जब बडी हुई तो मुझदे उनकी बात समझ आई और समाज के प्रति घृणा साथ-साथ अफसोस भी हुआ ।
दिल्ली में घट रही थीं ये घटनाएं
यदे सभी घटनाएं किसी सुदूर गां्व की नहीं, बल्् िदेश की राजधानी दि्ली की हैं । दि्ली का पुन्वामास एरिया‘ शकूरबसती’ में मदेरा जनम हुआ । घर में बड़े भाई के बाद हम चार बहनें । हमारदे घर के सामनदे एक संभ्रांत ्वगमा सदे आनदे ्वाली आंटी रहती थीं । ्वह न्वरात्ी में कनयाओं को पूजतीं, सभी को बुलातीं और मुझदे हल्वा- पूडी अपनी थाली में नहीं िदेतीं । मुझदे अपनी थाली लदे्र उनके यहां जाना होता । बचपनदे में मैंनदे भी तपाक सदे उनसदे पूछ लिया आप और सबको तो प्लेट लानदे को नहीं कहतीं, मुझदे ही कयों
कहती हैं । मैं उसके बाद सदे कभी उनके घर नहीं गई । बाद में आंटी जोर-जोर सदे कहती रहीं-‘ लड्ी का रुबाब तो िदेखो जाति छोटी नखरदे बड़े ।’
पिता ने होटलि में साफ किए बर्तन
मां नदे लडना चाहा, लदेत्न पापा नदे रोक लिया । घर में पापा हमारदे आदर्श थदे । उनहोंनदे कभी भाई-बहनों के बीच भदेिभा्व नहीं किया । हम यह जानतदे थदे कि हमारदे पिता बहुत प्रतिभा्वान हैं, कबड्ी, कु्ती और फुटबलॉल के प्लेयर हैं । उनकी मदेहनत की कमाई उनकी ट्रलॉतफयां िदेख हम बच्चों की छाती भी ग्वमा सदे भर जाती । पापा एक बड़े होटल में शदेफ हैं । पापा की जिंदगी में हमें यही मालूम था, लदेत्न उनकी उनकी मृतयु के बाद मालूम हुआ कि ्वदे उस बड़े सदे होटल में शदेफ नहीं बल्् जातीय भदेिभा्व के चलतदे ्व दस्वीं तक पास होनदे के बा्वजूद होटल में बर्तनों की सफाई की नौकरी करतदे रहदे, जिसदे होटल
की भाषा में हैंडीमैन( handyman) कहा जाता है । पिता कैसदे हम पांच भाई-बहनों का पदेट भरतदे, हमें नहीं मालूम । पर कभी हमें किसी चीज की कमी नहीं होनदे दी । उनहोंनदे तो यह भी नहीं बताया कि उनकी नौकरी बर्तन धोनदे की है, कयोंकि ्वो यह नहीं चाहतदे थदे कि मदेरदे बच्चों में मदेरदे प्रति ग्वमा की जो भा्वना भरी है उसमें किसी तरह की कमी आए ।
12वीं पास करते ही हो गई शादी
दि्ली के सरकारी स्ूल सदे ही मैंनदे जब 12्वीं पास की तो घर में शादी के लिए दबा्व डाला जानदे लगा । इसी बीच स्ूल में मदेरी मुलाकात गुलाब( हसबैंड) सदे हुई । गुलाब नदे शादी का प्रस्ताव रखा और मदेरदे घर ्वालदे मान- मनौव्वल के बाद मान गए । एक गरीब, दलित और उस पर सत्ी के संघरगों का अंत कभी नही होता शायद इसीलिए तमाम मुश््लों के बाद भी हिममत नहीं हारी । पढ़ाई पूरी की । शादी और बच्चों की जिम्मेदारी भी संभाली ।
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