किया, बल्् मनुसमृति में कई सथानों पर शूद्रों के लिए अतयंत सममानजनक शबि आए हैं ।
महार्षि मनु की दृष्टि में ज्ान और शिक्ा के अभा्व में शूद्र समाज का सबसदे अबोध घटक है, जो पररशसथतत्वश भटक सकता है । अत: ्वदे समाज को उसके प्रति अधिक सहृदयता और सहानुभूति रखनदे को कहतदे हैं ।
कुछ और उदात्त उदाहरण देखें –
3 / 112: शूद्र या ्वै्य के अतिथि रूप में आ जानदे पर, परर्वार उनहें सममान सहित भोजन कराए ।
3 / 116: अपनदे सदे्व्ों( शूद्रों) को पहलदे भोजन करानदे के बाद ही दंपतति भोजन करें ।
2 / 137: धन, बंधू, कुल, आयु, कर्म, श्रदेष्ट त्वद्या सदे संपन्न वयशकतयों के होतदे हुए भी ्वृद्ध
शूद्र को पहलदे सममान दिया जाना चाहिए । मनुसमृति ्वदेिों पर आधारित: ्वदेिों को छोड्र अनय कोई ग्रंथ मिला्वटों सदे बचा नहीं है । ्वदेि ईश्वरीय ज्ान है और सभी त्वद्याएँ उसी सदे निकली हैं । उनहीं को आधार मानकर ऋषियों नदे अनय ग्रंथ बनाए । ्वदेिों का सथान और प्रमाणिकता सबसदे ऊपर है और उनके रक्ण सदे ही आगदे भी जगत में नए सृजन संभ्व हैं । अत: अनय सभी ग्रंथ समृति, ब्राह्ण, महाभारत, रामायण, गीता, उपनिषद, आयुर्वेद, नीतिशासत्, दर्शन इतयाति को परखनदे की कसौटी ्वदेि ही हैं । जहां तक ्वदे ्वदेिानुकूल हैं ्वहीं तक मानय हैं ।
मनु भी ्वदेिों को ही धर्म का मूल मानतदे हैं( 2 / 8-2 / 11)
2 / 8: त्वद्ान मनुष्य को अपनदे ज्ान चक्ुओं
सदे सब कुछ ्वदेिों के अनुसार परखतदे हुए, कर्तवय का पालन करना चाहिए ।
इस सदे साफ है कि महार्षि मनु के त्वचार, उनकी मूल रचना ्वदेिानुकूल ही है और मनुसमृति में ्वदेि त्वरुद्ध मिलनदे ्वाली मानयताएं प्रतक्पत मानी जानी चाहियें ।
शूद्रों को भी ्वदेि पढनदे और ्वैदिक संस्ार करनदे का अधिकार:
्वदेि में ईश्वर कहता है कि मदेरा ज्ान सबके लिए समान है चाहदे पुरुष हो या नारी, ब्राह्ण हो या शूद्र सबको ्वदेि पढनदे और यज् करनदे का अधिकार है ।
िदेखें – यजुर्वेद 26 / 1, ऋग्वदेि 10 / 53 / 4, निरुकत 3 / 8 इतयाति और मनुसमृति भी यही कहती है । महार्षि मनु नदे शूद्रों को उपनयन( त्वद्या आरंभ) सदे ्वंचित नहीं रखा है | इसके त्वपरीत उपनयन सदे इंकार करनदे ्वाला ही शूद्र कहलाता है ।
्वदेिों के ही अनुसार मनु शासकों के लिए त्वधान करतदे हैं कि ्वदे शूद्रों का ्वदेतन और भतिा किसी भी पररशसथति में न काटें( 7 / 125-126, 8 / 216)।
संषिेप में
महार्षि मनु को जनमना जाति व्यवसथा का जनक मानना निराधार है । इसके त्वपरीत महार्षि मनु मनुष्य की पहचान में जनम या कुल की सखत उपदेक्ा करतदे हैं । महार्षि मनु की ्वणमा व्यवसथा पूरी तरह गुणवत्ता पर टिकी हुई है । प्रत्येक मनुष्य में चारों ्वणमा हैं – ब्राह्ण, क्तत्य, ्वै्य और शूद्र । महार्षि मनु नदे ऐसा प्रयत् किया है कि प्रत्येक मनुष्य में त्वद्यमान जो सबसदे सशकत ्वणमा है – जैसदे किसी में ब्राह्णत्व जयािा है, किसी में क्तत्यत्व, इतयाति का त्व्ास हो और यह त्व्ास पूरदे समाज के त्व्ास में सहायक हो । महार्षि मनु पर जातत्वाद का समर्थक होनदे का आक्षेप लगाना मूर्खता हैं कयूंत् दोष मिला्वट करनदे ्वालो का हैं न की मनु महार्षि का ।
( इस लदेख को लिखनदे में अतनि्वीर ्वदेबसाइट का सहयोग लिया गया है)
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