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इसलाम का शासन हैं, ्वहीं उसका अपना त्व््वास है । दूसरदे शबिों में, इसलाम एक सच्चदे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिनिुओं को अपना निकट समबनधी माननदे की इर्ाजत नहीं िदेता । सम्भवतः यही ्वजह थी कि मौलाना मुहममि अली जैसदे एक महान भारतीय, परनतु सच्चदे मुसलमान नदे, अपनदे, शरीर को हिनिुसतान की बजाए यदेरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया ।
एक सामप्दायिक और राषट्रीय मुसलिमान में अनिर देख पाना मुश्किल-
लीग को बनानदे ्वालदे सामप्रदायिक मुसलमानों और राष्ट्र्वादी मुसलमानों के अनतर को समझना ्त्ठन है । यह अतयनत संदिगध है कि राष्ट्र्वादी मुसलमान किसी ्वास्तविक जातीय भा्वना, लक्य तथा नीति सदे कांग्रदेस के साथ रहतदे हैं, जिसके फलस्वरूप ्वदे मुशसलम लीग् सदे पृथक पहचानदे जातदे हैं । यह कहा जाता है कि ्वास्तव
में अधिकांश कांग्रदेसजनों की धारण है कि इन दोनों में कोई अनतर नहीं है, और कांग्रदेस के अनिर राष्ट्र्वादी मुसलमानों की शसथति सामप्रदायिक मुसलमानों की सदेना की एक चौकी की तरह है । यह धारणा असतय प्रतीत नहीं होती । जब कोई वयशकत इस बात को याद करता है कि राष्ट्र्वादी मुसलमानों के नदेता स्वगजीय ्लॉ. अंसारी नदे सामप्रदायिक निर्णय का त्वरोध करनदे सदे इंकार किया था, यद्यपि कांग्रदेस और राष्ट्र्वादी मुसलमानों द्ारा पारित प्रस्ताव का घोर त्वरोध होनदे पर भी मुसलमानों को पृथक तन्वामाचन उपलबध हुआ ।( पृ. 414-415)
भारत में इस्लाम के बीज मुस्लिम आक्ांिाओं ने बोए-
मुशसलम आरिांता निस्संदेह हिनिुओं के त्वरुद्ध घृणा के गीत गातदे हुए आए थदे । परनतु ्वदे घृणा का ्वह गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगा कर ही ्वापस नहीं लौटडे । ऐसा होता तो यह ्वरदान माना जाता । ्वदे ऐसदे नकारातम्
परिणाम मात् सदे संतुष्ट नहीं थदे । उनहोंनदे इसलाम का पौधा लगातदे हुए एक सकारातम् कार्य भी किया । इस पौधदे का त्व्ास भी उल्लेखनीय है । यह ग्रीष्म में रोपा गया कोई पौधा नहीं है । यह तो ओक( बांज) ्वृक् की तरह त्वशाल और सुदृढ़ है । उतिरी भारत में इसका स्वामातध् सघन त्व्ास हुआ है । एक के बाद हुए दूसरदे हमलदे नदे इसदे अनयत् कहीं को भी अपदेक्ा अपनी‘ गाद’ सदे अधिक भरा है और उनहोंनदे तनष््ठा्वान मालियों के तु्य इसमें पानी िदेनदे का कार्य किया है । उतिरी भारत में इसका त्व्ास इतना सघन है कि हिनिू और बौद्ध अ्वशदेर झाड़ियों के समान होकर रह गए हैं; यहां तक कि सिखों की कु्हाडी भी इस ओक( बांज) ्वृक् को काट कर नहीं गिरा सकी ।”( पृ. 49)
मुसलिमानों की राजनीतिक दांव-पेंच में गुंडागददी- तीसरी बात, मुसलमानों द्ारा राजनीति में
अपराधियों के तौर-तरीके अपनाया जाना है ।
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