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जन्मदिवस पर शविषेष

केंद्र सरकार ने पंडित दीनदयाल जी के विचारों के अनुरूप अपने कार्य की प्राथमिकता में रखा है ।
देखा जाए तो कांग्ेस की नीतियों के कारण आजादी के 70 साल बाद भी भारत अपने सामाजिक लक्यों को पूरा नहीं कर पाया । इसका मुखय कारण लमबे समय तक आर्थिक विर्मता को समापत न कर पाना रहा । दुर्भागयपूर्ण यह भी है कि दशकों से दलित समाज के साथ घटने वाली विर्मताओं को देश में पूरी तरह से समापत नहीं किया गया है । इसके विपरीत भाजपा समतामूलक समाज की सथापना के लिए , सभी प्रकार की सामाजिक विर्मताओं को समापत करने के लिए एवं दलितों को विकास की धारा
पं पंडित दीन द्षाि जी कषा ध्येय वषाक् ’’ चरैवषेशत- चरैवषेशत '' रषा , जो रषाजनीति में िरषातषार दषेिशित में कषाम करनषे कषा प्रषेरणषादषा्ी आव्हान रषा । जो दषेिशित की इच्छा में दषेिभककत कके सकंलि कके िषार समषाज को एकषातमतषा कके भषाव कके िषार जोड़कर िरषातषार कषाम करनषे को प्रषेरित करतषा है । 52 वर्ष की उम्र में पंडित दीनद्षाि चिषे र्षे , पर अपनषे पीछे इतनषा कुछ छोड़ र्षे कि इस दषेि कके रषाषट्वषादी उनकके ऋण िषे कभी उऋण नहीं हो सकेंरषे । एकषातम मषानववषाद कके मंत्रद्रष्टा पंडित दीनद्षाि उिषाध्याय रषाजनीति में भषारतीय संस्कृति एवं परंपरषा कके प्रतिनिधि रषे ।
में पूरी तरह से शामिल करने के लिए समरसता के भाव को वयापक बना रही है , जिसका लक्य सामाजिक नयाय को समाज के हाशियें पर खड़े वयप्त के लिए भी हासिल करना है । देश के आर्थिक रूप से कमजोर , पिछड़े किसान , दलित एवं जनजाति वर्ग को विकास से जोड़ने के लिए भाजपा सरकार ने पहली बार जमीनी सतर पर अपने अभिनव प्रयासों के द्ारा देश में लमबे समय से चले आ रहे अवरोधों को तोड़ा है ।
पंडित दीन दयाल जी का धयेय वा्य ’’ चरैवेति-चरैवेति '' था , जो राजनीति में लगातार देशहित में काम करने का प्रेरणादायी आवहान था । जो देशहित की इचछा में देशभक्त के
सकंलप के साथ समाज को एकातमता के भाव के साथ जोड़कर लगातार काम करने को प्रेरित करता है । 52 िर््ग की उम्र में पंडित दीनदयाल चले गये , पर अपने पीछे इतना कुछ छोड़ गये कि इस देश के राष्ट्िादी उनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकेंगे । एकातम मानववाद के मंत्रद्रष्टा पंडित दीनदयाल उपाधयाय राजनीति में भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के प्रतिनिधि थे । उनका सथान सनातन भारतीय प्रज्ा प्रवाह को आगे बढ़ानेवाले प्रज्ा-पुरुर्ों में अग्गणय है । सादा जीवन उच्च विचार की प्रतिमूर्ति पंडित उपाधयाय के विचारों में देश की मिट्टी की सुवास को अनुभव किया जा सकता है ।
वह वासति में , राजनीति में ऋवर् परंपरा के
मनीर्ी थे । भारतीय जनसंघ से जुड़े होने के बावजूद वह दलीय संकीर्णताओं से ऊपर थे । राजनीति उनके लिए साधय नहीं , बपलक समाज सेवा का साधन मात्र थी । वह राजनीति को सुविधा का सौदा नही समझते थे | सत्ा देश उतथान का माधयम है धयेय नही ? यही उनका जीवन मनत्र था | पंडित दीनदयालजी ने 50 साल पूर्व जो दर्शन दुनिया के सामने रखा , उसे तब बेशक लोगों ने नहीं माना पर दुनियाभर के हो रहे बदलावों में उनकी दूरदर्शिता आज दिखाई दे रही है । ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंसटन चर्चिल और दुनियाभर के तमाम ऐसे लोग जो भारत को एक ककृवत्रम राष्ट् बताते रहे , आज भारत को
परम वैभव की तरफ बढ़ते देख ग़लत साबित हो रहे हैं ।
यह माना जा सकता है कि दुनियाभर के घटनारिम पर दीनदयालजी की पैनी नजर थी । इसी कारण दीनदयालजी की साफ राय थी कि समाजवाद हो , पूंजीवाद हो या सामयिाद से समसयाओं का समाधान नहीं होना है , भटकाव ही होना है । यह सब भौतिकवाद की तरफ ले जाते हैं । मानव को पूंजीवाद या सामयिाद में बांट कर एक खुशहाल समाज या राष्ट् नहीं बनाया जा सकता है , इसीलिए उनहोंने मानववाद की अवधारणा दुनिया के सामने रखी । यानी सभी विचारधाराओं और वादों में मानव को केंद्र में रखा जाए । मानव के विकास के लिए एकातम दर्शन की उनहोंने पूरी वयाखया भी की । उनहोंने अपने एक लेख में लिखा था कि भारत का राष्ट् जीवन युग-युग में भिन्न-भिन्न सिरूप में वय्त हुआ है , किंतु उसके मूल में उसकी धर्म भावना रही है , इसीलिए अनेक विद्ानों ने कहा भी है कि भारत धर्मप्राण देश है ।
आज अपनी इस आतमा की प्रेरणा को अवचेतन से चेतन के क्ेत्र में लाने पर ही राष्ट् जीवन में जो विककृवत दिखाई देती है , जो विक्ुबध , संघर््गमय , अवनपशचतता की अवसथा है , वह दूर की जा सकती है । अपनी इसी अवधारणा को विकसित करने के लिए उनहोंने समाजवाद और पूंजीवाद के प्रभाव से दूर रहने का संदेश दिया । फिलहाल देखा जाए तो पंडित दीनदयाल जी का समपूण्ग चिंतन समाज के समग् विकास पर केंद्रित कहा जा सकता है , और इसके लिए उनहोंने दलितों , पिछड़ों और वंचितों पर धयान देने की जरुरत पर जोर दिया । इस आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर देश के दलितों , पिछड़ों और वंचितों को विकास की मुखय धारा से जोड़ दिया जाए तो वह दिन दूर नहीं होगा जब भारत अपने उसी वैभवशाली रूप में नजर आने लगगे , जिस वैभवशाली भारत को किसी समय सोने की चिड़ियां कहा जाता था और जिस दिन ऐसा हो जाएगा , वह दिन भारत भूमि के लिए एक नए सिण्गकाल का पहला दिन होगा | �
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