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जन्म जयंती पर शविषेष

आदि कवि महर्षि वालमीवक

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रत हमेशा से ही महान लोगों और विद्ानों का देश रहा है । हमारे देश की इस पवित्र धरती पर कई प्रमुख और महान लोगों ने जनम लिया है , इसलिए भारत को विद्ानों का देश कहा जाता है । महवर््ग वालमीवक हमारे देश के उन महानतम लोगों मे से एक थे । वह एक संत थे और वो एक साधारण जीवन और उच्च विचार रखने वाले वयप्त थे । वह बहुत ज्ानी होने के साथ-साथ एक महान वयप्तति वाले वयप्त थे । वह पूरे देश मे काफी प्रसिद्ध है ्योंकि वह भारत के प्राचीन काल के महानतम कवियों मे से एक थे ।
महवर््ग वालमीवक का जनम भृगु गोत्र के एक हिनदू परिवार मे हुआ था । वह चारशानी और सुमाली के पुत्र थे । उनका जनम अपशिन माह की पूर्णिमा को हुआ था । उनका नाम रत्ाकरदाह था , लेकिन अपने महान काययो के कारण वो महवर््ग वापलमकी के नाम से चर्चित हुए । संत वालमीवक को '' महवर््ग '' और '' आदि कवि '' नामक उपाधियों से भी सममावनत किया गया है , जहां ‘ महवर््ग ’ का अर्थ ‘ महान संत ’ या ‘ महान ऋवर् ’ है और ‘ आदि कवि ’ का अर्थ है ‘ प्रथम कवि ’। आपने ही संस्कृत के पहले छनद या शलोक के बारे मे बताया । यह हिनदू महाकावय
के महान पवित्र पुसतक '' रामायण '' के रचयिता भी हैं ।
इस िर््ग महवर््ग वालमीवक जयंती ( परगट दिवस के रुप मे भी जाना जाता है ) 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी । यह हिनदू धर्म के प्रसिद्ध तयोहारों मे से एक है । यह दिन महान ऋवर् वालमीकी के जनमवदिस के अवसर के रुप मे मनाया जाता है । यह पूरे चांद के दिन यानी कि पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । देश में महवर््ग वालमीवक के कई मंदिर और कई तीर्थ सथल है , ज कि वालमीवक के जनम दिवस के अवसर पर सजाए जाते हैं और यह तयोहार पूरे जोश और उतसाह के साथ पूरे भारत मे मनाया जाता है ।
महवर््ग वालमीवक सतयुग के एक महान ऋवर् थे । उनहोंने अपने पहले छंद की रचना गंगा नदी के तट पर की थी । उनका पहला शलोक था- मा वनर्ाद प्रतिष्ठां तिमगमः शाशितीः समाः । यतरिौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥ अर्थात अनंत काल तक आपको अपने कार्य से मुक्त नही मिलेगी । तुमहारे लिए एक पक्ी को पयार और बेददसी से मार ड़ाला ।
उपरोख शलोक महवर््ग वालमीवक द्ारा लिखा पहला शलोक है । उनहोंने गंगा किनारे दैनिक धयान करते हुए इसकी रचना की थी । जब वह
गंगा के तट गए थे , तब उनहोने एक रिेन के जोड़े के मिलन को देखा । वह इसे देखकर वहुत प्रसन्न हुए और इस दृशय का आनंद लेने लगे । लेकिन यह घटना जयादा देर तक न चला और एक शिकारी ने नर साथी को पकड़ लिया और मादा साथी अपने पयार को खोने के दर्द मे चिललाकर सदमे से मर गई । इस घटना को देखकर शिकारी पर रिोवधत होते हुए उनहोंने इन पंक्तयों की रचना कर ड़ाली । फिर इनके आश्रम में भगवान ब्रह्ा जी ने प्रकट होकर कहा कि मेरी प्रेरणा से ही ऐसी वाणी आपके मुख से निकली है । इसलिए आप शलोक रूप में ही श्रीराम के संपूर्ण चरित्र का वर्णन करें । इस प्रकार ब्रह्ािी के कहने पर महवर््ग वालमीवक ने रामायण महाकावय की रचना की ।
महवर््ग वालमीवक उत्र कांड मे अपनी प्रमुख भूमिका के लिए प्रसिद्ध है । उनहोंने अपने जीवन के घटनाओं के माधयम से जीवन में अनुशासन और जीवन जीने के तरीके के बारे मे बताया है । ऋवर् नारद ने उनहें मोक् के मार्ग पर चलने का मंत्र बताया था । रत्ाकरदाह ने कई वर्षो तक इस मंत्र का जाप किया और आखिरकार भगवान राम उनसे प्रसन्न हुए , जोकि भगवन विष्णु के अवतार थे और तभी से रत्ाकरदाह वालमीवक कहलाने लगे । महवर््ग वालमीवक ने रामायण में बहुत ही महतिपूर्ण भूमिका निभाई । वह इस महान पवित्र पुसतक के लेखक थे । उनहोंने ही रामायण की कथा को अपने शिष्यों , लव और कुश को सुनाई थी जोकि माता सीता की संतान थे । माना जाता है कि जब प्रभु श्रीराम ने माता सीता का तयाग कर दिया था । तब माता सीता कई वर्षों तक महवर््ग वालमीवक के आश्रम में ही रही थीं । यहीं पर उनहोंने लव और कुश को जनम दिया । यहीं पर उनहें वन देवी के नाम से जाना गया । प्रतयेक िर््ग महवर््ग वालमीवक जयंती को महान ऋवर् वालमीवक का जनमवदिस के रुप मे मनाया जाता है ।
( िषाभषार )
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