Oct 2024_DA | Page 26

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कर्तव्य का भान होने पर मूल की

तरफ जाएगी दृतटि : डा . भागवत

कल्याण कें र कायय कर रहा है ।

हमारा यह जनजातीय समाज है , उसमे इतनी सारी विविधताएं है । खान-पान , रीति-रिवाज , पूजा का दर्शन करने से फिर एक बार समरण होता है कि हम भारत के लोग अपनी सारी विविधताओं को साथ लेकर , सब की विविधताओं का सिीकार करते हुए , मिल जुलकर चलेंगे ्योंकि विविधता हमको ले जाती है । उसके मूल में , जो एकता है , वह पर्यावरण , निसर्ग के प्रति , प्रककृवत के प्रति मित्र भाव , प्रेम भाव , भूमि के प्रति अतयंत भक्त ,

प्रतयेक कण में पवित्रता और चैतनय देखना । इसीलिए तो इतने सारे पूजा के प्रकार होते है । यह सारा सदियों से चलता आ रहा है और इन सब विविध पंथों का रासतों का मूल कहां है , तो बिलकुल आदिकाल से यह जो चलता आया है । वेदों में भी हम देखते है कि नदियों की पहाड़ों की , वायु की , विद्ुत की , अवनि की सतुवत करने वाली ऋचाएं है । यह सब अपने आसपास की जो प्रककृवत है , उसमें भी वही चैतनय है , वहीं पवित्रता है , इस भाव का ही
परिपाक है । उस भाव का प्राचीन काल से अब तक चलता आया हुआ आविष्कार यहां देखने को मिलेगा । उससे अपने आज के कर्तवय का भी भान होगा और अपना जो प्राचीन मूल है , उसके तरफ भी हमारी दृष्टि जाएगी । इसलिए इसका अवलोकन कीजिए और इसका संदेश हृदयंगम कीजिए ।
( सर संघचषािक डषा . मोहन भषारवत कषा राष्ट्ी् कषा््गकतषा्ग सम्मेलन की िषारंपरिक पूजषा पद्धति कषा््गक्रम में शद्षा हुआ संदषेि )
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