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को क्ेत्रों को अलग करने वाली दीवारों को तोड़ना होगा और ऐसे काय्गरिम सथावपत करने होंगे जो अंतर-विर्यक जांच और संचार को पोवर्त करते हों । उनहें ऐसे पाठ्यरिम तैयार करने चाहिए जो बढ़ती आबादी को सिचछ पानी उपलबध कराने जैसी वयािहारिक समसयाओं को हल करने पर धयान केंद्रित करें । साथ ही उन कदमों को भी उठाया जाना चाहिए जो दलित , पिछड़ी एवं आदिवासी वर्ग की प्रतिभाशाली लड़कियों को उच्च शिक्ा के लिए प्रेरित करे ।
दुर्भागय यह भी हैं कि भारतीय शिक्ा जगत में आप जितने अधिक योगय और अनुभवी होंगे , शिक्ा तंत्र आपको उतना ही लंबी यात्रा पर ले जाएगा । नई राष्ट्ीय शिक्ा नीति की शुरूआत के माधयम से शिक्ा जगत के पाठ्यरिम और संरचना को बदलना एक बहुत ही अनोखा और सराहनीय कदम है , लेकिन लंबे समय में यह वांछित परिणाम नहीं देगा , जब तक कि बिचौलियों को शिक्ा तंत्र से समापत नहीं किया जाता है । शिक्ा जगत में हावी यही तंत्र किसी न किसी सतर पर दलित , पिछड़ी एवं आदिवासी वर्ग की लड़कियों की शिक्ा वयिसथा को सुदृढ़ करने में एक बड़ी बाधा के रूप में देखा जा सकता है ।
वासति में देश की उच्च शिक्ा संरचना को नियुक्तयों , प्रवेश , परिणाम घोर्णा और अनय
दोर्पूर्ण मुद्ों की रुकावटों से बाहर आने की आवशयकता है । कारण यह है कि लंबे समय में यह बच्चों , विशेर्कर समाज के पिछड़े वर्ग की लड़वकयों के कलयाण और विकास को प्रभावित करता है । पिछले दो या तीन दशकों से महिलाओं का शिक्ा क्ेत्र में प्रदर्शन बेहतर तो हुआ है , लेकिन यह शिक्ा और विशेषज्ञता नौकरी बाजार में परिवर्तित नहीं हो रही है जहां अधिक महिलाएं भाग ले सकें । इसका समाधान लंबे समय तक महिलाओं को कार्यबल में उनकी भागीदारी सुवनपशचत करने के लिए सुरवक्त वातावरण प्रदान करना है ।
सरकार ने न केवल महिलाओं बपलक समाज की गरीब , दलित एवं वंचित वर्ग की महिलाओं के लिए उच्च शिक्ा को बढ़ािा देने के लिए कई पहल की हैं । यूजीसी और आईसीएसएसआर जैसे सरकारी शैवक्क निकायों ने छात्रों को उनके वयािसायिक कौशल और प्रतिभा को विकसित करने में मदद करने के लिए कार्यशालाओं , सममेलनों , प्रवशक्ण काय्गरिमों के रूप में कई छोटे और बड़े काय्गरिम आरमभ किया हैं ।
लेकिन भारतीय शिक्ा प्रणाली में समावेशी शिक्ा से संबंधित कई मुद्े और खामियां हैं जिनहें हल करने की आवशयकता है । समावेशी शिक्ा के मामले में , बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि एक गरीब , दलित , पिछड़े और आदिवासी समाज महिलाओं को किस तरह देखता है और
शिक्ा और काम के अवसरों तक उनकी पहुंच कैसे होती है । समाज के निचले तबके की महिलाओं को प्रायः जीवन के कई पहलुओं से पूिा्गग्ह का सामना करना पड़ता है । यहीं पर शिक्ा और लिंग संवेदीकरण की भूमिका सामने आती है - महतिाकांक्ी महिलाओं को शीर््ग पर लाने के लिए समाज को और अधिक तैयार करने के लिए उठाए गए विभिन्न कदम या उपाय ।
लैंगिक संवेदनशीलता को लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को अपने वयिहार और मानयताओं को संशोधित करने के लिए प्रोतसावहत करने की प्रवरिया के रूप में परिभावर्त किया जा सकता है । सभी िगथों की महिलाओं ( विशेर् रूप से हाशिए पर रहने वाले समाज की महिलाओं को ) को गुणवत्ापूर्ण शिक्ा के साथ लैंगिक संवेदनशीलता प्रदान करने से उनहें वयप्तगत सुरक्ा के साथ-साथ जीने और खुद को ऊपर उठाने के लिए सममान की भावना मिलती है । इसलिए यह देखना आवशयक होगा कि नई राष्ट्ीय शिक्ा नीति के अंतर्गत शिक्ा क्ेत्र में जारी सुधार प्रकिया में गरीब , दलित , पिछड़े एवं आदिवासी वर्ग की लड़कियों को किस तरह से शिक्ा से जोड़ा जाए ्योंकि अगर आधी आबादी शिक्ा से वंचित रहेगी तो भारत को विकसित राष्ट् बनाने का सिप्न कैसे पूरा किया जा सकेगा ? �
16 vDVwcj 2024