fparu
सामाजिक समरसता से होगा भेदभावमुक्त समाज का निममाण
OXf . dUþ ¹ f Àfû ³ fIYSX VffÀÂfe
भमी समाज में सामाजिक एकता के लिए समरसता का होना नितांत
किसमी
आवशयक है । पीढ़ियों से चले आ रहे सामाजिक नियमों के दायरों से बाहर आकर और लोगों कमी सोच में परिवर्तन से हमी सामाजिक समरसता को हासिल किया जा सकता है । वासिि में देखा जाए तो सामाजिक समरसता एक बहुवयापमी आयाम है । मानव , पशु-पक्षी , जड़-चेतन आदि सभमी में सामंजसय हेतु समरसता अपरिहार्य है । मानव समाज निर्माण में संगठन बनाये रखने के लिए यह परम आवशयक परिकसथवि है । वर्ण , वर्ग , जाति , स्मूह , समिति , संसथा , धर्म , समप्रदाय , सभयिा , संस्कृति सभमी में अनुवांशिक समरसता होने पर हमी समाज का सिरूप संगठित , सुवयिकसथि एवं समृद्धशािमी बना रह सकता है । इस आधार पर संसार में सामाजिक समरसता कमी अवधारणा एक महत्िपमूण्ख एवं विचारणामीय विषय है । सामाजिक समरसता कमी अवधारणा का आधार प्रककृवि ,
प्राककृविक नियम तथा प्रककृविजनय विधाओं पर आधारित प्राककृविक जमीिन-पद्धति है ्योंकि जिस प्रकार प्रककृवि किसमी के साथ भेदभाव नहीं कििमी है , उसमी प्रकार से प्रककृविजनय जमीिन- पद्धति में भमी भेदभाव का कोई सथान नहीं है । भाििमीय लोक-जमीिन में मानव , जमीि-जनिु एवं प्रककृवि के संिक्ण तथा उनका वयािहारिक सिरूप है । इसलिए इसमें सामाजिक विषमताओं
का कोई सथान नहीं है ।
बाह्य शक्ियों के शासनकाल से पहले भाििमीय समाज में किसमी तरह के भेदभाव एवं विषमता का अवगुण नहीं था , परनिु वाह्य शक्ियों द्ािा हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए कुचक्र रचे गए तथा बल का भमी प्रयोग किया गया । परिणामसिरूप समाज में उच्-निम्न का भेदभाव , कुिमीवियाँ एवं कुप्रथाओं ने जन् लिया ,
14 uoacj 2024