May-June 2024_DA | Page 9

कर पाई भाजपा ? गरीब , दलित , वनवासी , पिछड़ा वर्ग के कलयाण के लिए दस वर्षों में अभूतपूर्व कार्य करने वाली मोदी सरकार से अबकी बार जनता दूर कयों हो गई ? आखिर कया कारण रहे कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वाली सीर्ों पर भाजपा को 2014 और 2019 जैसी सफलता नहीं मिली ? ग्ामीण क्षेत्ों की सीर्ों में अप्रतयातशि कमी कयों हुई ? ऐसे कई प्रश्न भाजपा के बड़े पदाधिकारियों से लेकर जमीनी सिि पर काम करने वाले एक साधारण से कार्यकर्ता के लिए तनाव का तवर्य बने हुए हैं ।
वैसे अबकी बार का चुनाव भाजपा के लिए नई उममीद भी लेकर आया है । ओडिशा ,
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे पूर्व और दक्षिण के नए क्षेत्ों ( गठबंधन के कारण ) के साथ ही केरल , तमिलनाडु और पंजाब में बढे हुए मत-प्रतिशत ने भविष्य के लिए बेहतर संकेत दिए हैं । लेकिन उत्ि प्रदेश , राजसथान जैसे राजयों से आए परिणाम निराश करने वाले रहे हैं ।
आरक्षित सीटों पर विपषि को मिली बढ़त
देश की लोकसभा सीर्ों में 84 सीर् अनुसूचित जाति एवं 47 सीर् अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं । अबकी बार चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जाति के लिए
आरक्षित सीर्ों में 30 पर विजय हासिल हुई है , जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीर्ों में 26 भाजपा को मिली हैं । पार्टी के लिए यह बड़ा झर्का है । 2019 के चुनाव में अनुसूचित जाति की 46 और अनुसूचित जनजाति वाली 31 सीर् भाजपा को मिली थी । आरक्षित सीर्ों पर कांग्ेस ने अप्रतयातशि बढ़त बनाते हुए अनुसूचित जाति की 19 और अनुसूचित जनजाति की 12 सीर् पर विजय हासिल की । आरक्षित सीर्ों में मिली हार भाजपा के लिए एक बड़े संकर् के संकेत के रूप में देखा जा सकता है । साथ ही इससे यह भी पता चलता है कि अंततः कांग्ेस नेतृतव वाला गठबंधन गरीब , दलित , पिछड़ा और वनवासी वर्ग के बीच भ्रम की उस ससथति को बनाने में सफल रहा , जिसके कारण दलित जनता भ्रम का शिकार होकर भाजपा से दूर हो गई और इसका पूरा लाभ विपक्ष ने उठाया । * जातिगत समीकरण में उलझी भाजपा * कांग्ेस के नेततव वाले विपक्षी दलों ने भाजपा के सोशल इंजीनियरिंग मॉडल से सीख लेकर अपने सामाजिक गठबंधन में विविधता लाई । इसका नतीजा यह निकला कि दलित , पिछड़े और वनवासी वर्ग के मधय विपक्षी दलों ने अपने- अपने राजनीतिक समीकरण बनाए , जो गैर-यादव , गैर-जार्व राजनीतिक भागीदारी पर आधारित रहा । पारंपरिक रूप से विपक्ष का मुससलम-पिछड़ा और मुससलम दलित वाली राजनीति के साथ ही विपक्षी दलों ने गैर-यादव , गैर-मुससलम समुदायों को तर्कर् देकर उनके बीच अपना आधार बढ़ाया । इसे समझने में भाजपा को देर लगी । उधर आरक्षण और संविधान जैसे संवेदनशील मुद्े को विपक्षी दलों ने जमकर भुनाया । ग्ामीण क्षेत्ों में भाजपा से दूर हुई पिछड़ा , दलित और वनवासी वर्ग कीजनता के मधय यह प्रचारित किया गया कि अगर अबकी बार उनहोंने भाजपा को वोर् दिया तो उनहें मिल रहे सभी सरकारी लाभ बंद कर दिए जाएंगे । जाति और धर्म पर आधारित मुद्ों से पैदा हुए भ्रम को दूर करने में भाजपा को असफलता मिली । विपक्ष ने यह चुनाव संगठित तरीके से लड़ा । संविधान , आरक्षण और अनय मुद्ों के बारे
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