May-June 2024_DA | Page 13

क्षेत्ीय दल दशकों से देश की बहुसंखयक हिनदू जनता को जाति-वर्ग के नाम पर विभाजित करके राजनीतिक सफलता हासिल करते रहे हैं । बहुसंखयक हिनदू समाज को जाति , वर्ग और धर्म के नाम पर विभाजित करके सवतहि पोतर्ि राजनीति की जनक वह कांग्ेस है , जिससे सविंत्िा मिलने के बाद देश की सत्ा संभाली । उसके बाद दशकों तक देश के बहुसंखयक हिनदू जनता को जाति-वर्ग में विभाजित करके एक आम आदमी के रूप में परिवर्तित कर दिया गया , जिसका प्रभाव देश की सभी राजयों पर पड़ा । पूर्व से पसशचम-उत्ि से दक्षिण तक जाति-वर्ग और तुसष्र्करण की चरिवयूह को 2014 के बाद प्रधानमंत्ी मोदी के नेतृतव वाली सरकार ने तोड़ दिया और विकासवाद की जिस नई राजनीतिक अवधारणा को जनता के सामने रखा , उसकी परिणाम है कि विपक्ष सहित सभी
शसकियां मोदी विरोध में खुल कर मैदान में आ चुकी हैं ।
मोदी सरकार के दस वर्ष
केंद्र में प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी के नेतृतव वाली सरकार ने अपने कार्यकाल के दस वर््ण पूरे कर लिए हैं । दस वर््ण पहले जब मोदी सरकार सत्ा में नहीं आयी थी , उस वकि देश की जनता घोर्ालों , घपलों और भ्रष्र्ाचार से त्सि हो चुकी थी । 26 मई 2014 में केंद्र की सत्ा कांग्ेस के हाथ से निकल कर भाजपा नीत एनडीए गठबंधन के हाथ में आई तो प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी पर सभी की दृसष्र् तर्क गई । भाजपा नेता नरेंद्र मोदी जिस तरह से पार्टी को पूर्ण बहुमत दिलाने के बाद केंद्र की सत्ा तक पहुंचे तो देश की जनता , खासतौर पर दलित , गरीब और किसानों को ऐसा लगा कि अब वासिव में उनकी भी सुधि
ली जाएगी और विकास के जिन पैमानों से उनहें सालों तक वंचित रखा गया , वह अब उनहें भी नसीब हो सकेगा । प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी ने विकास के लिए अपना जो दृसष्र् पत् ( रोड मैप ) सामने रखा था , उसमें उनहोंने कहा था कि " सरकार वो है , जो गरीबों के बारे में सोचे , गरीबों की सुने और गरीबों के लिए हो । इसलिए उनकी सरकार करोड़ों युवाओं , गरीबों , माताओं , बहनों और जो अपने सवातभमान एवं सममान के लिए संघर््णिि है , उनको समर्पित है I " और दस साल के कार्यकाल में अपनी नीतियों और योजनाओं के माधयम से प्रधानमंत्ी मोदी से जो वादा किया था , जिसे पूरा करने के लिए जोर लगाया और सुखद परिणाम सामने दिखने लगे हैं ।
दशकों तक सिर्फ नाम की राजनीति
गरीबों और दलितों के उदाि के नाम पर देश में सिर्फ और सिर्फ राजनीति की जाती रही है , परंतु सवाधीनता के 68 वर्षों में डा . अंबेडकर , लोहिया , जगजीवनराम सरीखे नेताओं के प्रयासों के बावजूद दलित-दलित ही बन रहे और गरीब केवल गरीब । यह प्रश्न किसी ने उठाया कि गरीब , दलित , ओबीसी , अलपसंखयक कलयाण के जिन दावों के नाम पर कांग्ेस सहित अनय दल राजनीति करते रहे , फिर भी दलित को दलित और गरीब को गरीब ही बने रहना है तो उनके नाम पर राजनीति से दलितों और गरीबों को कया लाभ ? यही वजह रही कि दशकों बाद देश में एक ऐसी राजनीति की आवशयकता महसूस की जा रही थी जो दलितों , पिछड़ा , गरीब , वनवासी के दायरे से ऊपर उठकर समसि राष्ट् कलयाण के लिए काम कर सके । दलितों , पिछड़ा , गरीब , वनवासी वर्ग को समाज में सममानजनक सथान दिलाए , उनकी सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक ससथति को मजबूत करे । यह बात एकदम साफ है कि जिस प्रकार पेर् के सवसथ होने से शरीर सवसथ रहता है , उसी प्रकार आर्थिक रूप से सबल होने से कोई भी समुदाय या वर्ग सामाजिक और राजनीतिक
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